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Utpanna Ekadashi 2025: वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने जानकारी देते हुए कहा कि मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है. इस एकादशी का व्रत रखने से सात जन्म के दरीद्रता नाश हो जाती है. घर में सुख समृद्धि की वृद्धि होती है. बैद्यनाथ पंचांग के अनुसार, 15 नवंबर को देर रात 12 बजकर 49 मिनट पर अगहन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि शुरू होगी. वहीं, 16 नवंबर को देर रात 02 बजकर 37 मिनट पर मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त होगी.
देवघरः कार्तिक महीने की समाप्ति के बाद मार्गशीर्ष का महीना शुरू हो चुका है. मार्गशीर्ष महिना भगवान श्री कृष्ण को समर्पित रहता है. मार्ग सिर्फ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी यानी पहली एकादशी अत्यंत ही खास रहती है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि को देवी एकादशी की उत्पत्ति हुई थी, इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी एकादशी कहते हैं. इस व्रत और पूजा से पाप मिटेंगे, पुण्य और मोक्ष प्राप्त होगा. तो आइए देवघर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के तीर्थपुरोहित प्रमोद श्रृंगारी से जानते है की कब है उत्पन्ना एकादशी और क्या है पूजा विधि?
क्या कहते है बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के तीर्थपुरोहित :
बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के तीर्थपुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने Bharat.one के संवाददाता से बातचित करते हुए कहा की अगर आप किसी भी एकादशी का व्रत नहीं रख पा रहे हैं तो मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत अवश्य रखें. क्योंकि इस व्रत को करने से जीवन में दरिद्रता समाप्त हो जाती है. सभी दुखों का नाश हो जाता है. धार्मिक शास्त्र के अनुसार सुदामा ने उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा था जिससे उनकी दरिद्रता समाप्त हो गई थी.
कब है उत्पन्ना एकादशी
बैद्यनाथ पंचांग के अनुसार, 15 नवंबर को देर रात 12 बजकर 49 मिनट पर अगहन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि शुरू होगी. वहीं, 16 नवंबर को देर रात 02 बजकर 37 मिनट पर मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त होगी. सनातन धर्म में उदया तिथि से गणना होती है. इसके लिए 15 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाएगी.इस तिथि पर साधक व्रत रख विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा कर सकते हैं.
कैसे करे उत्पन्ना एकादशी के दिन पूजा विधि
एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को एक दिन पूर्व यानि दशमी की रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए. एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए.इसके बाद भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए और उन्हें पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत अर्पित करना चाहिए. इस दिन केवल फलों का ही भोग लगाना चाहिए और समय-समय पर भगवान विष्णु का सुमिरन करना चाहिए. रात्रि में पूजन के बाद जागरण करना चाहिए. अगले दिन द्वादशी को पारण करना चाहिए. किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दान-दक्षिणा देना चाहिए. इसके बाद स्वयं को भोजन ग्रहण करके व्रत खोलना चाहिए.
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