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Margashirsha Maas Jeera: हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष मास का विशेष महत्व बताया गया है और यह मास भगवान श्रीकृष्ण को बेहद प्रिय है. इस मास को लेकर शास्त्रों में कुछ नियम बताए गए हैं, इन्हीं नियमों का ध्यान रखते हुए कार्य करने से हर तरह की परेशानी से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु की भी कृपा बनी रहती है. आइए जानते हैं आखिर अगहन मास में जीरा क्यों नहीं खाना चाहिए…
हिंदू पंचांग में मार्गशीर्ष माह (अगहन मास) को भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय महीना कहा गया है. श्रीमद्भगवद्गीता में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि ‘महीनों में मैं मार्गशीर्ष माह हूं.’ इस मास में पूजा-पाठ, व्रत और सात्त्विक भोजन का विशेष महत्व बताया गया है. शास्त्रों में कहा गया है कि इस समय व्यक्ति को अपने आहार-विहार और पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि यह महीना तप और भक्ति का प्रतीक होता है. आर्युवेद में बताया गया है कि अगहन मास में जीरा भूलकर भी नहीं खाना चाहिए. अगर आप इस मास में जीरा खाते हैं तो इससे ना सिर्फ आपकी सेहत खराब होगी बल्कि कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है. आइए जानते हैं आखिर अगहन मास में जीरा खाना आखिर वर्जित क्यों है…
इसलिए नहीं खाया जाता जीरा – पुराणों और आयुर्वेदिक ग्रंथों में बताया गया है कि अगहन मास में जीरा खाने से शरीर में अग्नि (पाचन शक्ति) अत्यधिक बढ़ जाती है. चूंकि यह महीना शीत ऋतु का होता है, इसलिए जीरा जैसी तासीर में गर्म वस्तु का सेवन संतुलन बिगाड़ सकता है. धर्मशास्त्र के अनुसार, अगहन मास में शरीर और मन को संयमित रखने की सलाह दी गई है. जीरा का सेवन इंद्रियों को उत्तेजित करता है, इसलिए इसे व्रत या पूजन काल में त्यागने की परंपरा बनी. जीरा को रजोगुण को बढ़ाने वाला पदार्थ माना गया है यानी यह ध्यान, एकाग्रता और ध्यान में बाधा डाल सकता है.
लोक मान्यता और धार्मिक दृष्टि – गांवों और पारंपरिक परिवारों में यह माना जाता है कि अगहन मास में जीरा खाने से लक्ष्मी-कृपा कम होती है. यह महीना श्रीहरि विष्णु की उपासना का है और श्रीहरि को सात्त्विक अन्न प्रिय है. जीरा को तामसिक या उष्ण गुण वाला मानकर इससे परहेज़ किया जाता है. कई पूजा-विधियों में (विशेषकर मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक) किचन में जीरे का प्रयोग रोक दिया जाता है. इसके स्थान पर लोग हींग या काली मिर्च का उपयोग करते हैं.
आयुर्वेद की दृष्टि से – आयुर्वेद के अनुसार जीरा शरीर में पित्त, उष्ण वीर्य बढ़ाता है. अगहन मास में पित्त दोष पहले ही थोड़ा अधिक सक्रिय हो जाता है, इसलिए इस मास में जीरा का सेवन वर्जित बताया गया है. अगर आप इस मौसम में जीरे का सेवन करते हैं तो त्वचा रोग, सिरदर्द या पाचन में गड़बड़ी हो सकती है. इसलिए यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं बल्कि स्वास्थ्य से भी जुड़ी है. इस मास में जीरा खाने से ध्यान भटकना, नींद का प्रभावित होना और मानसिक शांति भी गायब हो जाती है.
