इन दिनों भारत में नवरात्र चल रहा है. नवरात्र में बहुत से लोग व्रत रखते हैं. उसमें राजगिरा, सिंघाड़े का आटा, कुट्टू आटा, साबुदाना और सामक चावल जैसी चीजें जरूर खाई जाती हैं. इसमें सामक चावल को बहुत से भ्रम की स्थिति रहती है. कुछ लोग इसको चावल कहते हैं लेकिन ये चावल तो बिल्कुल भी नहीं है. कुछ लोग इसे मिलेट अनाज भी कहते हैं. तो ये आखिर है क्या. कैसे पैदा होता है. और कैसे व्रत में खाया जाने वाला आहार बन गया.
सामक मिलेट परिवार का सदस्य है. कुछ लोग इसको सूडो राइस यानि नकली चावल कहा जाता है. ये बहुत हल्का होता है. जल्दी पचने वाला होता है. डायबिटीज के रोगियों के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. ये प्रोटीन, आयरन और फाइबर से भरपूर होता है. ग्लूटेन-फ्री होता है. व्रत में इसका उपयोग काफी ज्यादा होता है. व्रत में सामक खिचड़ी, पुलाव और खीर विशेष रूप से बनाई जाती है.

विज्ञान कहता है अनाज, धर्म कहता है व्रत आहार
सामक घास परिवार (Poaceae) का सदस्य है लेकिन खेती के इतिहास में इसे “मुख्य अन्न” माना गया है. विज्ञान की दृष्टि में सामक छोटा अनाज है पर मुख्य नहीं. धर्म में इसका इस्तेमाल शरीर को हल्का रखने और पाचनतंत्र को आराम देने के लिए भी होता है. हालांकि धर्म सामक को अनाज की श्रेणी से बाहर रखता है.
कब और कैसे बना व्रत का आहार?
सामक चावल का उपयोग व्रत में आज से नहीं बल्कि हजारों वर्षों से हो रहा है. भारत में इसके समेत सभी मिलेट्स (बाजरा, रागी आदि) की खेती और खाने का इतिहास 5000 सालों से ज्यादा पुराना माना जाता है. हिंदू ग्रंथों में मिलेट्स को ‘शुद्ध’ विकल्प के रूप में स्वीकार किया गया है, जबकि चावल-गेहूं जैसे अनाज व्रत में वर्जित हैं.
कृष्ण – सुदामा से जुड़ी है इसकी कहानी
एक प्रसिद्ध कथा कृष्ण-सुदामा से जुड़ी है. सुदामा ने कृष्ण को सामक से बने पोहे भेंट किए. जो महाभारत काल की घटना मानी जाती है यानि करीब 3000 -5000 साल पुरानी. इस तरह ये धार्मिक कथाओं के जरिए व्रत का हिस्सा बना. नवरात्र में यह ‘व्रत के चावल’ के रूप में लोकप्रिय हो गया, इस वजह से इसको चावल बोलने लगे.
क्यों ये चावल नहीं माना जाता?
सामक चावल वास्तव में चावल नहीं है. ये एक बीज (सीड) है, जो घास परिवार का मिलेट है. व्रत के नियमों में ‘अन्न’ (जैसे चावल, गेहूं) को तामसिक या भारी माना जाता है, इसलिए इन्हें खाने की मनाही रहती है लेकिन मिलेट्स को ‘फल’ या ‘बीज’ की श्रेणी में रखा जाता है, जो हल्के और सात्विक होते हैं. तकनीकी रूप से मिलेट्स भी ग्रेन हैं, लेकिन धार्मिक संदर्भ में इन्हें अलग माना जाता है. इसलिए व्रत में चावल की जगह सामक इस्तेमाल होता है.
कैसे होती है इसकी पैदावार?
बार्नयार्ड मिलेट की खेती भारत में सदियों से हो रही है, खासकर कम उपजाऊ, सूखी और कठिन मिट्टियों में. ये मजबूत, तेजी से बढ़ने वाला और कम पानी वाली फसल है, जो वर्षा आधारित खेती के लिए आदर्श है. भारत इसका दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. ये समुद्र तल से 2700 मीटर तक उगाया जा सकता है.
सामक एक छोटे समय वाली फसल है. इसके लिए बहुत ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, ये सूखी जगहों पर भी उग आता ही. कठिन पर्यावरणीय परिस्थितियों में अच्छी पैदावार देती है. भारत में इसकी खेती करीब 0.96 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है. हर साल इसका 0.73 लाख टन उत्पादन होता है. हर हेक्टेयर में ये करीब 758 किग्रा होती है. जहां कोई और फसल नहीं उग पाती, वहां ये हो जाती है.
बुआई का समय क्या है
इसकी बुआई का समय क्षेत्र के अनुसार बदलता है. अगर तमिलनाडु में ये समय सितंबर-अक्टूबर या फरवरी-मार्च है तो उत्तराखंड या उत्तर-पूर्व में अप्रैल-मई. सामान्य तौर पर इसे मानसून से पहले या उसके दौरान बोते हैं. इसको ज्यादा उर्वरक की जरूरत भी नहीं होती. दो से ढाई महीने में इसकी फसल तैयार भी हो जाती है.
प्रोसेस कैसे होता है
फसल पकने पर पौधे पीले-भूरे हो जाते हैं. तब फसल को काटकर पौधों को पीटकर या मशीने से थ्रेश करके इसके बीज अलग किए जाते हैं. फिर बीजों को धूप में सुखाते हैं ताकि इसके अंदर की नमी निकल जाए. सफाई के बाद इसे नमी-रोधी बैग में पैक कर देते हैं.
इस मिलेट के व्रत के व्यंजन जैसे खिचड़ी, पुलाव, खीर, पोहा तो बनते ही हैं. इसके रोटी, पराठा, डोसा, इडली, लड्डू, मफिन या केक बनाए जाते हैं. अब तो इसके पापड़, बिस्किट भी बनने लगे हैं.
तो अब आप समझ गए होंगे कि सामक चावल क्यों चावल नहीं है. ये मुख्य अन्न भी नहीं है. मुख्य तौर पर ये बीज माना जाता है और मिलेट्स में शामिल किया जाता है.
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https://hindi.news18.com/news/knowledge/navratra-food-why-samak-eaten-during-navratri-called-fake-rice-what-exactly-it-story-ws-ekl-9669056.html