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Uttarakhand: इस पहाड़ी डिश के बिना अधूरी है दावत, सरसों के दानों का तड़का बनाता है इसे स्पेशल, जानें रेसिपी – Uttarakhand News

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Uttarakhand Traditional Food: उत्तराखंड का पारंपरिक पीले खीरे का रायता सिर्फ एक डिश नहीं, बल्कि पहाड़ के स्वाद, संस्कृति और सेहत का मेल है. बागेश्वर से लेकर अल्मोड़ा तक हर दावत की शान बनने वाला यह रायता अपनी देसी खुशबू, सरसों के तड़के और ठंडक देने वाले स्वाद के लिए जाना जाता है. गर्मियों में शरीर को तरोताजा रखता है और सर्दियों में स्वाद बढ़ाता है. यही वजह है कि यह साधारण नहीं, बल्कि उत्तराखंड की परंपरा से जुड़ा खास व्यंजन बन चुका है.

उत्तराखंड अपने पारंपरिक व्यंजनों के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. यहां का खानपान न केवल पौष्टिक होता है बल्कि देसी स्वाद से भरपूर भी होता है. बागेश्वर, अल्मोड़ा और चंपावत जैसे पहाड़ी इलाकों में आज भी लोग पुराने पारंपरिक व्यंजनों को बनाना पसंद करते हैं. बाहरी राज्यों से आने वाले सैलानी भी इन पहाड़ी पकवानों के दीवाने हो जाते हैं. इनमें से एक खास डिश है पीले खीरे का रायता जो किसी भी दावत या भोज का स्वाद कई गुना बढ़ा देता है.

उत्तराखंड में किसी भी पारंपरिक भोज या शादी-ब्याह के आयोजन में रायता विशेष रूप से परोसा जाता है. दाल-भात, झोल, आलू की सब्जी और मंडुवे की रोटी के साथ इसका संयोजन स्वादिष्ट और पचने में हल्का होता है. खास बात यह है कि पहाड़ी लोग इसे सिर्फ भोजन के साथ नहीं, बल्कि दिनभर के भोजन का अहम हिस्सा मानते हैं. इसकी खटास और ताजगी पूरे खाने का संतुलन बनाए रखती है.

पहाड़ी रायते की खासियत उसका मुख्य घटक पीला खीरा है. यह खीरा मैदानों में पाए जाने वाले सामान्य खीरे से अलग होता है. इसका स्वाद हल्का मीठा और खुशबूदार होता है. यह खास तौर पर बागेश्वर, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा जिलों में उगाया जाता है. इसमें पानी की मात्रा अधिक होती है, जो शरीर को ठंडक प्रदान करती है. पाचन में मदद करती है. यही वजह है कि इसे गर्मियों में खूब खाया जाता है.

इस रायते में मसालों की भूमिका बहुत खास होती है. पहाड़ी सरसों, लाल मिर्च, हल्दी और नमक जैसे साधारण मसाले ही इसे लाजवाब बना देते हैं. कुछ लोग इसमें भूनी हुई मेथी या जखी (स्थानीय मसाला) भी डालते हैं, जिससे स्वाद और बढ़ जाता है. इन देसी मसालों की खुशबू और सरसों के तड़के की चटक इस डिश को स्पेशल बनाती है.

इस रायते का असली स्वाद तब आता है, जब इसमें पहाड़ी सरसों के दानों का तड़का डाला जाता है. सरसों को तेल में हल्का भूनकर जब दही और खीरे के मिश्रण में डाला जाता है, तो खुशबू पूरे घर में फैल जाती है. यह तड़का न केवल स्वाद बढ़ाता है, बल्कि इसे पचाने में भी आसान बनाता है. यही कारण है कि लोग कहते हैं तड़का ही रायते की जान है.

पहाड़ी पीले खीरे का रायता बनाना बहुत आसान है. पहले खीरे को छीलकर बारीक कद्दूकस करें. इसमें स्वादानुसार नमक, हल्दी और लाल मिर्च डालें. अब इसमें फेंटा हुआ दही मिलाएं और ऊपर से सरसों का तड़का डालें. कुछ जगहों पर लोग इसमें थोड़ा धनिया या पुदीना भी डालते हैं. इस रायते को ठंडा करके परोसें यह चावल, दाल और रोटी सभी के साथ शानदार लगता है.

यह रायता स्वाद के साथ सेहत से भी भरपूर है. पीला खीरा विटामिन, खनिज और फाइबर से भरपूर होता है, जो शरीर को हाइड्रेट रखता है और पाचन सुधारता है. दही में मौजूद प्रोबायोटिक्स पेट के लिए फायदेमंद हैं. वहीं सरसों का तड़का शरीर को गर्माहट और ऊर्जा देता है. यह डिश गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में स्वाद दोनों का संतुलन बनाए रखती है.

आज यह रायता सिर्फ घरेलू डिश नहीं रहा, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन चुका है. कई होटल और होमस्टे इसे पारंपरिक थाली में शामिल करते हैं, ताकि सैलानी पहाड़ी स्वाद का आनंद ले सकें. सोशल मीडिया पर भी यह रेसिपी तेजी से लोकप्रिय हो रही है. बागेश्वर और आसपास केइ क्षेत्रों में इसे हर दावत में जरूर परोसा जाता है, यही इसे पहाड़ की सबसे प्रिय डिश बनाता है.

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इस पहाड़ी डिश के बिना अधूरी है दावत, सरसों के दानों का तड़का बनाता है इसे खास


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