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क्या सच में गाली देने वाला होता है भरोसेमंद, अंदर की सच्ची भावना या शातिर मंशा? वैज्ञानिकों ने खोले राज

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Abusive People More Truthful: क्या गुस्सा आने पर आपके मुंह से भी गाली निकल जाती है. आप ऐसा करने वाले अकेले नहीं है लेकिन क्या ऐसा करना ईमानदारी और भरोसा का प्रतीक है. ऐसा करने वाला आदमी ईमानदार होता है. एक रिसर…और पढ़ें

क्या सच में गाली देने वाला होता है भरोसेमंद, अंदर की सच्ची भावना या शातिर मंशा

गाली निकालना कितना सही.

Abusive People More Truthful: गुस्सा हर किसी के जीवन का हिस्सा है. गुस्से के दौरान कई लोगों के मुंह से गालियां निकल जाती है जबकि अधिकांश लोग इसे दबा लेते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि जो अंदर रहता है मैं बोल देता हूं, इसे दबाकर नहीं रखता.मेरा मन हमेशा साफ रहता है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि कौन सच्चा है कौन झूठा. क्या वाकई गालियां निकालने वाला व्यक्ति अपने अंदर की सारी बात निकाल देता है. क्या उसका मन साफ होता है. सोशल साइकोलॉजिकल एंड पर्सनैलिटी साइंस जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी में इस बात को सही माना गया है कि स्टडी में कहा गया कि जो लोग अक्सर गाली निकाल देते हैं वह लोग गाली न बकने वालों की तुलना में कम झूठ बोलते हैं.

झूठ-फरेब नहीं करता ऐसा व्यक्ति
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के इस अध्ययन से पता चला है कि जो लोग अक्सर गाली-गलौज करते हैं, वे वास्तव में उन लोगों की तुलना में अधिक ईमानदार हो सकते हैं जो ऐसा नहीं करते. इसका कारण यह है कि गाली देना अक्सर भावनाओं की स्वाभाविक और बिना फिल्टर की अभिव्यक्ति होती है. इस स्थिति में व्यक्ति झूठ-फरेब का सहारा नहीं लेता. इससे ईमानदारी की संभावना बढ़ती है. अध्यान में यह पाया गया है कि जो लोग अधिक गाली-गलौज करते हैं, वे कम धोखाधड़ी करते हैं और अधिक ईमानदार भी होते हैं. स्टडी के मुताबिक गाली-गलौज सामाजिक संबंधों को मजबूत करने का एक तरीका हो सकता है.समूहों में गाली देना समाज के साथ एकता और विश्वास की भावना को बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि इससे यह संकेत जाता है कि व्यक्ति वास्तविक हैं और अपनी सच्ची भावनाओं को छिपा नहीं पाता है. हालांकि गाली की स्वीकृति हर समाज में अलग-अलग होती है और कुछ समाज इसे बहुत बुरा मानता है. ऐसे लोगों को गलत नजरिए से देखा जाता है.

गाली-गलौज और बेईमानी के बीच जटिल रिश्ता
यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में डाटा एनालिटिक्स के प्रोफेसर डॉ. डेविड स्टीलवेल ने बताया कि गाली-गलौज और बेईमानी के बीच का संबंध एक जटिल मामला है. गाली देना अक्सर अनुपयुक्त होता है लेकिन यह इस बात का प्रमाण भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति आपको अपनी ईमानदार राय बता रहा है. जैसे वे अपनी भाषा को अधिक स्वीकार्य बनाने के लिए फ़िल्टर नहीं कर रहे हैं, वैसे ही वे अपनी विचारों को भी फ़िल्टर नहीं कर रहे हैं. हालांकि कुछ व्यक्तियों में गली देना तकियाकलाम बन जाता है. लेकिन अधिकांश मामलों में गाली अनायास ही और भावावेष में निकल जाती है. इस समय व्यक्ति के मुंह से सहज ही सच्चाई निकल जाती है. हालांकि हर समय ऐसा हो यह भी जरूरी नहीं. जो लोग आदतन ऐसा करते हैं, संभव है उसमें ऐसा न हो.

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