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दादी-नानी का नुस्खा आज भी कारगर! सर्दी-जुकाम, बंद नाक और गले की खराश का एकमात्र इलाज है ये काढ़ा – Uttarakhand News

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Giloy Health Benefits: सर्दियों में सर्दी-जुकाम, गले में खराश और नाक बंद जैसी परेशानियों से बचने के लिए पहाड़ों में गिलोय का काढ़ा एक पारंपरिक और असरदार उपाय माना जाता है. इसे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी मौसम में सेवन करते हैं. जानिए इसके इस्तेमाल का तरीका.

सर्दियों में सर्दी-जुकाम, नाक बंद होना और गले में खराश जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं, खासकर पहाड़ों में जहां तापमान अचानक गिरता है.‌ ऐसे समय में लोग किसी त्वरित और सुरक्षित नुस्खे की तलाश करते हैं. ऐसे में दादी-नानी के जमाने से इस्तेमाल होने वाला गिलोय का काढ़ा आज भी उतना ही प्रभावी माना जाता है. पहाड़ी परिवारों में इसे रोजमर्रा की घरेलू दवा की तरह उपयोग किया जाता है. इसके नियमित सेवन से शरीर की गर्मी संतुलित रहती है, और इम्युनिटी बढ़ती है, जिससे मौसम बदलने से होने वाली बीमारियों का जोखिम कम हो जाता है.

कुमाऊं और गढ़वाल के गांवों में गिलोय, जिसे अमृता भी कहा जाता है. हर घर के आंगन या देवदार के पेड़ों पर लिपटी हुई आसानी से मिल जाती है. स्थानीय लोग इसे प्रकृति का उपहार मानते हैं क्योंकि यह बिना विशेष देखभाल के पूरे साल हरी-भरी रहती है. सदियों से पहाड़ी परिवार इसे बुखार, सर्दी-जुकाम, बदन दर्द और ऊर्जा की कमी जैसी समस्याओं के लिए उपयोग करते आए हैं. गिलोय केवल दवा नहीं, बल्कि जीवनशैली का हिस्सा है. जिसे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी मौसम के अनुसार सेवन करते हैं.

बागेश्वर के चिकित्सक डॉ. ऐजल पटेल ने Bharat.one को बताया कि गिलोय में एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-वायरल और इम्युनिटी-बूस्टिंग गुण पाए जाते हैं. इसकी तासीर गर्म मानी जाती है, इसलिए ठंड में इसका प्रभाव और बढ़ जाता है. इसके सेवन से शरीर में जमा बलगम ढीला पड़ता है. जिससे नाक खुलती है और सांस लेने में राहत मिलती है. गले की सूजन कम होती है और सिरदर्द भी कम हो जाता है. यह शरीर की रक्षा प्रणाली को सक्रिय कर बीमारी को शुरुआती स्तर पर ही रोक सकती है. यही कारण है कि इसे ‘अमृता’ यानी अमृत तुल्य औषधि कहा गया है.

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गिलोय का काढ़ा बनाने की विधि बेहद सरल है, और गांवों में यह रोजमर्रा की प्रक्रिया का हिस्सा है. इसके लिए गिलोय के एक-दो ताजे डंठल को साफ करके छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है. फिर इन्हें पानी में उबालकर आधा होने तक पकाया जाता है. कई लोग इसे स्वाद और प्रभाव बढ़ाने के लिए हल्का कूट भी लेते हैं. 15–20 मिनट का उबाल पर्याप्त माना जाता है. तैयार काढ़ा हल्का पीला और सुगंधित दिखाई देता है. ग्रामीण इसे सुबह खाली पेट या शाम को गर्म पानी की तरह पीते हैं, जिससे शरीर जल्दी असर लेता है.

गिलोय को अकेले उबालकर भी काढ़ा बनाया जा सकता है, लेकिन पहाड़ों में इसे अधिक प्रभावी बनाने के लिए तुलसी की पत्तियां, अदरक के टुकड़े और काली मिर्च मिलाई जाती है. तुलसी एंटी-सेप्टिक है, अदरक शरीर की गर्मी बढ़ाता है और काली मिर्च बलगम को टूटने में मदद करती है. इन तीनों के साथ गिलोय का संयोजन एक शक्तिशाली घरेलू औषधि बन जाता है, जो सर्दी के सभी लक्षणों-नाक बंद, खराश, छींके, सिरदर्द और थकान-पर एक साथ काम करता है. स्थानीय वैद्य भी इस मिश्रण को बहु-उपयोगी काढ़ा कहते हैं.

गिलोय का काढ़ा नाक खोलने में इतना प्रभावी माना जाता है कि पहाड़ी लोग इसे ठंड भगाने वाला पहला नुस्खा कहते हैं. इसके सेवन से नाक की भीतरी नसों में सूजन कम होती है. जिससे सांस लेने में तुरंत राहत मिलती है. साथ ही गले की जलन और खराश में भी यह बेहद कारगर है. अगर शरीर में जकड़न या दर्द हो तो काढ़ा शरीर को गर्माहट देता है और रक्त प्रवाह बढ़ाता है. यही कारण है कि पहाड़ों में लोग किसी भी तरह की संक्रमण-संबंधी शुरुआत में सबसे पहले गिलोय काढ़ा ही लेते हैं.

सिर्फ सर्दी-जुकाम ही नहीं, बल्कि संपूर्ण प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए भी गिलोय के काढ़े का उपयोग किया जाता है. पहाड़ी इलाकों में मौसम तेजी से बदलता है, जिससे छोटी-मोटी बीमारियां सामान्य हैं. ऐसे में गिलोय शरीर को अंदर से मजबूत बनाती है. इसके तत्व सफेद रक्त कोशिकाओं को सक्रिय करके संक्रमण से लड़ने की क्षमता बढ़ाते हैं. यही कारण है कि बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को मौसम बदलने पर गिलोय देने की परंपरा आज भी जारी है. कई परिवार तो इसे रोज सुबह एक चम्मच काढ़ा के रूप में लेते हैं.

गिलोय को पहाड़ों में हर बीमारी की दवा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह सिर्फ एक समस्या का नहीं, बल्कि पूरे शरीर के संतुलन का इलाज करती है. ठंड में जहां यह सर्दी-जुकाम में राहत देती है, वहीं गर्मियों में यह शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करती है. इसके एंटी-ऑक्सीडेंट गुण उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करते हैं. यही वजह है कि आयुर्वेद में भी इसे महत्वपूर्ण औषधि माना गया है. ग्रामीण का मानना है कि किसी भी बीमारी की शुरुआत पर यह शरीर को खुद-ब-खुद ठीक होने की शक्ति देता है और लंबे समय तक बीमारी रोकता है.

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दादी-नानी का नुस्खा आज भी कारगर! सर्दी-जुकाम का एकमात्र इलाज है ये काढ़ा


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