lead poisoning harmful effects: शीशा बेहद खतरनाक धातु है. आप सोच रहे होंगे कि शीशा तो हम खाते नहीं तो यह खतरनाक कैसे हो गया. दरअसल, हमारे घरों में, हमारे आसपा हजारों चीजों में लेड या शीशे का इस्तेमाल किया जाता है जिसके बारे में हमें पता नहीं है. मसलन कई तरह के पैंट में शीशे का इस्तेमाल होता है, इस पैंट से हमारे घर में हर जगह कुछ न कुछ रंगा होता है. बच्चों के खिलौने में शीशे का इस्तेमाल होता, इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं में जो कोटिंग होती है, उसमें शीशे का इस्तेमाल होता है. ऐसे में जब यही शीशा रिसकर बहुत सूक्ष्म कण में तब्दील हो जाता है तब यह विभिन्न माध्यमों से हमारे शरीर में घुस जाता है. जब यह शरीर में घुसने लगता है तो लिवर, किडनी, दांतों, हड्डियों आदि में जमने लगता है और भयंकर बीमारी को जन्म देता है. यहां तक कि अगर प्रेग्नेंसी में लेड का एक्सपोजर ज्यादा हुआ तो होने वाला बच्चा एकदम अपंग भी पैदा ले सकता है.
शीशे से होने वाला नुकसान
विषाक्तता के खिलाफ काम करने वाली संस्था टॉक्सिक लिंक के वैज्ञानिक अलका दुबे बताती हैं कि शीशे का जहर जब बॉडी में घुसता है तो यह लिवर, किडनी, हड्डियां में चिपकने लगता है और यहां से यह दिमाग तक में घुस जाता है. इन सबसे शरीर में एनीमिया, हाई ब्लड प्रेशर, किडनी की खराबी, इम्यूनोटॉक्सिसिटी, प्रजनन संबंधी बीमारी, पेट में दर्द, ज्वांइट पेन, मसल्स पेन, सिर दर्द, मूड स्विंग, स्पर्म काउंट की कमी, मिसकैरिज जैसी समस्याएं हो सकती है. यानी अगर लेड का एक्सपोजर ज्यादा हुआ तो इससे इंसान नपुंसक भी हो सकता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 2021में शीशे की विषाक्तता के कारण पूरी दुनिया में 15 लाख लोगों की मौत हो चुकी है. अगर गर्भवती महिलाओं में लेड घुस जाए तो इससे बच्चे के विकास पर खतरनाक असर पड़ता है. जन्म लेने के बाद बच्चे बौद्धिक रूप से अपंग हो सकता है.
किन-किन चीजों से शीशे का एक्सपोजर
मायो क्लीनिक के मुताबिक हमारे आसपास की कई चीजों से लेड का एक्सपोजर हो सकता है. कार में कई ऐसी चीजें हैं जिनमें लेड का इस्तेमाल किया जाता है. शीशा जंग नहीं लगने देता और विद्युत का कुचालक होता है इसलिए जहां-जहां जंग से बचाने की बात होती है या बिजली के करंट से बचने की बात होती है, उन चीजों में शीशे से कोटिंग किया जाता है. कारों में इस्तेमाल होने वाले लेड एसिड बैटरीज, पैंट्स, पिग्मेंट, शोल्डर, स्टेन गिलास, लेड क्रिस्टल ग्लास, एमुनिशन, सेरामिक, ज्वैलरी, खिलौने, कुछ कॉस्मेटिक्स, कुछ दवाइयां आदि बनाने शीशे का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा केबल शीथिंग, लोहे और स्टील के लिए जंग-रोधी कोटिंग, सौंदर्य प्रसाधन, लेड क्रिस्टल ग्लास, पॉटरी ग्लेज, पॉलीविनाइल प्लास्टिक उद्योग में स्टेबलाइज़र के रूप में और विकिरण सुरक्षा के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाने लगा. बच्चों में शीशे का एक्सपोजर बेहद नुकसानदेह होता है. कई तरह के खिलौने में शीशे का इस्तेमाल होता है जिसके एक्सपोजर में हमेशा बच्चे रहते हैं.
कैसे घुसता है यह शरीर में
जब इन इस्तेमाल की चीजों से शीशे के सूक्ष्म कण रिसते हैं तो यह हवा या अन्य प्रदूषण के माध्यम से इंसान के अंगों तक पहुंच जाता है. जो लोग इन चीजों को बनाने में जुड़े रहते हैं, उन लोगों को इसका ज्यादा खतरा है. इन चीजों को रीसाइक्लिंग, मेल्टिंग आदि किया जाता है. वहीं प्लास्टिक केबल को कोटेट करने में भी लेड की जरूरत होती है. इस तरह यह रिसकर धरती, मिट्टी, फूड, जल और आकाश में चले जाते हैं और फिर इनसे हमारे शरीर में घुस जाता है.
लेड एक्सपोजर के लक्षण
अगर लेड एक्सपोजर बच्चों में होता है तो उसके शरीर का विकास रूक जाता है. वहीं चिड़चिड़ापन, सीखने में दिक्कत, भूख में कमी, वजन में कमी, आलसपन, पेट में दर्द, कॉन्स्टिपेशन, बालों का झड़ना, सुनने में दिक्कत आदि लक्षण दिखते हैं. अगर यह वयस्क में हो तो इसमें हाई ब्लड प्रेशर, ज्वाइंट पेन, मसल्स पेन, सिर दर्द, पेट में दर्द, मूड डिसॉर्डर, स्पर्म काउंट में कमी, खराब स्पर्म, मिसकैरिज, प्रीमेच्योर बर्थ जैसी समस्याएं होती हैं.
कैसे लेड एक्सपोजर से बचे
अलका दुबे कहती हैं कि भारत सहित कई देशों ने घरेलू सजावटी पेंट में लेड की मात्रा को 90 पीपीएम तक सीमित कर दिया है. हालांकि टॉक्सिक्स लिंक द्वारा किए गए अध्ययनों में भारतीय बाजार में उपलब्ध पेंट में लेड की उच्च मात्रा पाई गई है. खासकर छोटे और मध्यम स्तर के निर्माताओं द्वारा बनाने वाली चीजों में इसकी मात्रा का ख्याल नहीं रखा जाता है. इसे लेकर चौतरफा प्रयासों की आवश्यकता है, क्योंकि कई छोटे और मध्यम स्तर के भारतीय निर्माता भारत में लेड-मुक्त पेंट भी बना रहे हैं. वहीं छोटे स्तरों पर तैयार खिलौने में लेड का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है, इसे लेकर भी प्रयास किया जाना चाहिए. इसके लिए सरकार और हम सबको मिलकर काम करना चाहिए.
FIRST PUBLISHED : October 30, 2024, 15:41 IST
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