Delhi Couple Donates Fetus: दिल्ली के पितमपुरा इलाके के आशिष और वंदना जैन के लिए दूसरी संतान का स्वागत खुशी का पल होना चाहिए था, लेकिन उनका जीवन एक दर्दनाक मोड़ पर बदल गया. डॉक्टरों ने बताया कि उनके पांच महीने के भ्रूण में अब हृदय की धड़कन नहीं है. इस अनकहे दुख के बीच, इस दंपति ने एक असाधारण कदम उठाया है और अपने नन्हे भ्रूण को मेडिकल शिक्षा और शोध के लिए एआईआईएमएस(AIIMS) को दान कर दिया है.
परिवार की प्रेरणा और मार्गदर्शन

सबसे छोटा बॉडी डोनेशन
समिति के उपाध्यक्ष सुधीर गुप्ता ने बताया कि यह उनके 28 साल के इतिहास में अब तक का सबसे छोटा बॉडी डोनेशन है. “हमने अब तक 1,732 आंखों के डोनेशन, लगभग 550 पूरे शरीर के डोनेशन और 42 त्वचा के डोनेशन देखे हैं, लेकिन कभी भ्रूण नहीं. परिवार का साहस असाधारण था. हम केवल एक सेतु का काम कर सके, सच्ची सराहना जैन परिवार को जाती है.”
समिति के उपाध्यक्ष सुधीर गुप्ता ने बताया कि यह उनके 28 साल के इतिहास में अब तक का सबसे छोटा बॉडी डोनेशन है. “हमने अब तक 1,732 आंखों के डोनेशन, लगभग 550 पूरे शरीर के डोनेशन और 42 त्वचा के डोनेशन देखे हैं, लेकिन कभी भ्रूण नहीं. परिवार का साहस असाधारण था. हम केवल एक सेतु का काम कर सके, सच्ची सराहना जैन परिवार को जाती है.”
गुप्ता ने यह भी कहा कि जैन समुदाय के 100 से अधिक परिवार समिति के माध्यम से अंग और शरीर का योगदान कर चुके हैं, लेकिन यह मामला इतिहास रचने वाला है. “यह साबित करता है कि अंधकारमय समय में भी परिवार मानवता चुन सकता है.”
अचानक घटी घटना
दंपति की नियमित जांच 19 सितंबर को तय थी, लेकिन वंदना की तबियत अचानक खराब होने पर तुरंत डॉक्टर के पास गए. “जांच के दौरान हमें बताया गया कि भ्रूण में कोई धड़कन नहीं है,” आशिष ने बताया. डॉक्टर ने भ्रूण को हटाने की सलाह दी. पहले दवा का प्रयास किया गया, लेकिन जब कुछ असर नहीं हुआ, तो सर्जरी करनी पड़ी.
मानव जीवन रक्षा के लिए दान
एआईआईएमएस के एनाटॉमी विभाग के प्रमुख प्रो. सुभ्रत बसु राय ने कहा, “ऐसे डोनेशन भविष्य के डॉक्टरों को सीखने और मानव जीवन की समझ बढ़ाने में मदद करते हैं.” आशिष ने कहा, “हमने कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा होगा. लेकिन अगर हमारा बच्चा भविष्य में डॉक्टरों और शोधकर्ताओं की मदद कर सकता है, तो कम से कम उसका जीवन अर्थपूर्ण हुआ.”
एआईआईएमएस के एनाटॉमी विभाग के प्रमुख प्रो. सुभ्रत बसु राय ने कहा, “ऐसे डोनेशन भविष्य के डॉक्टरों को सीखने और मानव जीवन की समझ बढ़ाने में मदद करते हैं.” आशिष ने कहा, “हमने कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसा होगा. लेकिन अगर हमारा बच्चा भविष्य में डॉक्टरों और शोधकर्ताओं की मदद कर सकता है, तो कम से कम उसका जीवन अर्थपूर्ण हुआ.”
इस कदम ने मानवता और साहस की मिसाल पेश की है, जो कठिन समय में भी परिवारों को सही निर्णय लेने की प्रेरणा देता है.
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