Ewing’s Sarcoma cancer: कैंसर पहले से ही काफी खतरनाक बीमारी है लेकिन यह भी अगर दुर्लभ किस्म का हो, एक 8 साल के बच्चे को हो और रेडियोथरेपी, कीमोथेरेपी और सर्जरी जैसा पूरा इलाज करवाने के एक साल बाद और भी खतरनाक रूप में लौट आया हो तो ऐसी बीमारी से बचा पाना भगवान के ही बस की बात है. ऐसे में जिस बच्चे को इतनी कठिनाइयों के बाद नई जिंदगी मिली है, उसको देने वाले डॉक्टर भी भगवान से कम नहीं हैं.
मेडिकल हिस्ट्री में पता चला कि पहली बार बच्चे को छाती की दीवार पर ट्यूमर पाया गया था और उसने किसी दूसरे अस्पताल में कीमोथेरेपी, सर्जरी और रेडिएशन थेरेपी जैसे कैंसर के इलाज कराए थे लेकिन एक साल बाद कैंसर दोबारा लौट आया, जो कि बहुत खराब संकेत माना जाता है. तीन साल बाद, जब वह मधुकर रेनबो चिल्ड्रन हॉस्पिटल आया, तब उसके सीने में बड़ा मीडियास्टिनल (mediastinal mass) था, जिसके चलते सर्जरी करना बहुत मुश्किल हो गया था.
हालांकि पूरी जांच के बाद डॉक्टरों की टीम ने एक नया ट्रीटमेंट प्लान बनाया, जिसमें सेल्वेज कीमोथेरेपी फिर हेमेटोपॉयटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन और टारगेटेड रेडिएशन थेरेपी को शामिल किया गया. ट्रांसप्लांट से पहले भी कुछ ट्यूमर बचा हुआ था, लेकिन टीम ने बच्चे के 10 साल के होने पर HSCT करने का फैसला लिया.इसके बाद ट्यूमर काफी सिकुड़ गया और आखिरकार पूरी तरह गायब हो गया. ट्रांसप्लांट, रेडिएशन और बाद की ओरल मेंटीनेंस थेरेपी के बाद बच्चे का कैंसर पूरी तरह खत्म हो गया. आज वह बिल्कुल स्वस्थ है और किसी भी बीमारी के निशान नहीं हैं.
इस बारे में डॉ. नंदिनी चौधरी हजारिका, कंसल्टेंट मेडिकल ऑन्कोलॉजी, बीएमटी मधुकर रेनबो चिल्ड्रन हॉस्पिटल ने कहा, ‘यह हमारे लिए सबसे जटिल और हाई-रिस्क केस में से एक था. ईविंग्स सारकोमा का दोबारा लौटना बहुत मुश्किल स्थिति होती है, और जब ट्यूमर दिल और बड़ी नसों के पास हो, तो रिस्क और बढ़ जाता है लेकिन हमने सावधानीपूर्वक प्लानिंग की, और परिवार ने भी हम पर पूरा भरोसा रखा. हमने एक आक्रामक लेकिन संतुलित ट्रीटमेंट अपनाया. बच्चे की हिम्मत और जज्बा काबिल-ए-तारीफ रहा. आज उसे स्वस्थ और कैंसर-फ्री देखना हमारे लिए सिर्फ मेडिकल सफलता नहीं, बल्कि एक भावनात्मक जीत है. यह हमें याद दिलाता है कि भरोसे, कौशल और हिम्मत से हर मुश्किल जंग जीती जा सकती है.’
कितना खतरनाक है ये कैंसर
बता दें कि ईविंग्स सारकोमा एक दुर्लभ कैंसर है जो ज्यादातर बच्चों और किशोरों में 10 से 20 साल की उम्र के बीच पाया जाता है.भारत में यह सिर्फ 1-2 फीसदी बच्चों के कैंसर मामलों में होता है. जब यह दोबारा लौट आता है, तो इलाज और कठिन हो जाता है. यह सफलता दिखाती है कि समय पर सही इलाज, डॉक्टरों की कुशलता और उम्मीद की ताकत मिलकर चमत्कार कर सकती है, और यही बच्चों की कैंसर जंग में सबसे बड़ी जीत है.
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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-8-year-old-patient-defeats-rare-cancer-of-bones-ewings-sarcoma-after-rainbow-childrens-hospital-doctors-intervention-new-delhi-ws-kln-9796038.html
