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देहरादून. गर्मियों में जहां मैदानी इलाकों में दाल-चावल रोज़मर्रा का साधारण भोजन माना जाता है, वहीं पहाड़ों में यही दाल-चावल पारंपरिक भोजन का अहम हिस्सा है. खासकर ऐसी पहाड़ी दाल, जो खाने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर होती है. हम बात कर रहे हैं गहत की दाल की, जो स्वाद में लाजवाब होने के साथ-साथ सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद मानी जाती है.
पहाड़ों में सर्दियों के दिनों में कई ऐसी चीजें खाई जाती हैं जो शरीर को गर्म रखने और ऊर्जा देने का काम करती हैं. इन्हीं में से एक है गहत की दाल. यह भले ही एक सामान्य दाल हो, लेकिन इसकी तासीर गर्म होने के कारण पहाड़ की अन्य दालों के बीच इसका खास महत्व माना जाता है. इसके साथ ही यह दाल बेहद औषधीय गुणों से भरपूर होती है, जिस वजह से इसे पहाड़ी खानपान का जरूरी हिस्सा माना जाता है.
गहत दाल एक पारंपरिक पहाड़ी दाल है, जिसका वैज्ञानिक नाम डॉलिकॉस बाइफ्लोरस है. सर्दियों में, खासकर नवंबर से फरवरी तक, इसका सेवन अधिक किया जाता है. आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. शालिनी जुगरान के अनुसार, गहत की दाल का उल्लेख चरक संहिता में भी मिलता है, जहां इसे कफ, सर्दी और सांस से जुड़ी समस्याओं में लाभकारी बताया गया है. इसमें प्रोटीन की भरपूर मात्रा होती है, जो शरीर को ऊर्जा देने और सर्द मौसम में ताकत बनाए रखने में मदद करती है.
आज के समय में हर चौथे इंसान को किडनी में पथरी की समस्या का सामना करना पड़ता है. ऐसे लोगों के लिए यह एक चमत्कारी दवा के समान है, क्योंकि गहत दाल का रस किडनी की पथरी को हटाने में काफी फायदेमंद है. अगर आप पथरी का इलाज नेचुरल तरीके से करना चाहते हैं, तो रात को गहत की दाल को भिगोकर रख दीजिए और सुबह उसे उबालकर छान लें और इसके पानी का सेवन करें. कुछ महीनों में ही इससे पथरी धीरे-धीरे गलकर निकल जाती है.
गहत की दाल पौष्टिक भी होती है क्योंकि इसमें मिनरल्स, फाइबर, कैल्शियम, आयरन, कार्बोहाइड्रेट और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं. इसे खाने से शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है और वह कई तरह की बीमारियों से बचा रहता है. खासकर जिन लोगों को खांसी, जुकाम और सर्दी जैसी परेशानियां विंटर सीजन में होती हैं, उनके लिए यह बेहतरीन विकल्प है.
गहत की दाल वजन घटाने में भी मददगार मानी जाती है, क्योंकि इसमें मौजूद फाइबर तृप्ति बढ़ाकर वजन नियंत्रित रखने में सहायक होता है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट की अच्छी मात्रा होती है, जो डायबिटीज को कंट्रोल रखने में मदद करती है. यही नहीं, गहत की दाल टाइप-2 डायबिटीज में भी लाभदायक मानी जाती है.
इस दाल को पकाकर आप चावल के साथ खा सकते हैं या उबालकर इसे पराठे में भरकर भी खा सकते हैं. इसके सेवन के लिए इसे रातभर भिगोकर रखना चाहिए और भिगोने के बाद ही इसका उपयोग पकाने या पराठे बनाने में किया जा सकता है. गहत की दाल यानी मैक्रोटिलोमा यूनिफ्लोरम का सेवन पहाड़ी इलाकों में ज्यादातर सर्दियों में किया जाता है क्योंकि इसकी तासीर काफी गर्म होती है और सर्दी-जुकाम में पारंपरिक तौर पर इसका सेवन किया जाता है. गहत सर्दी-जुकाम में काफी हद तक राहत देती है, लेकिन ध्यान रहे जिन्हें गर्म चीजों से नुकसान होता है, वे इसे बिल्कुल न खाएं.
गहत की दाल गर्भवती महिलाओं के लिए भी उत्तम मानी गई है क्योंकि इसमें कई पोषक तत्व मौजूद होते हैं. अगर आप उत्तराखंड आते हैं तो यह आपको बाजारों में आसानी से मिल जाएगी, जिसकी कीमत लगभग 250 से 300 रुपये तक होती है. देखा जाता है कि सर्दियां शुरू होते ही मार्केट में इसकी डिमांड बढ़ने लगती है और कीमतों में भी उछाल आना शुरू हो जाता है.
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