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दो शापित नदियां, एक जो प्रभु श्री राम के इंतजार में रही…दूसरी जो सूखी होकर भी है मोक्षदायिनी

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गंगा यमुना की तरफ सरयू और फल्गु नदी को बेहद पवित्र और मोक्षदायिनी कहा जाता है लेकिन ये दोनों नदियां ही शापित हैं. एक नदी को भगवान शिव ने श्राप दिया तो एक नदी को माता सीता ने. लेकिन शापित होने के बाद भी ये नदियां लोगों का कल्याण कर रही है. आइए जानते हैं सरयू और फल्गु नदी को आखिर क्यों श्राप मिला…

सनातन धर्म में ऐसे कई पवित्र स्थान बताए गए हैं, जो अपने चमत्कार की वजह से काफी प्रसिद्ध हैं. हिंदू धर्म में गंगा-यमुना की तरह सरयू और फल्गु नदी को भी बेहद पवित्र माना जाता है. सरयू नदी अयोध्या से होकर बहती है और फल्गु नदी बिहार के गया से होकर बहती है. पितृपक्ष में इन दोनों नदियों का महत्व बढ़ जाता है. लेकिन, क्या आपको पता है कि ये दोनों ही नदियां शापित हैं? जी हां, आपने सही पढ़ा. सरयू और फल्गु नदी के शापित होने की कहानी हिन्दू धर्म के महाकाव्य रामायण से जुड़ी हुई है. आइए जानते हैं सरयू और फल्गु नदी को किन वजहों से शाप मिला था…

सरयू नदी उत्तराखंड के बागेश्वर जिले से निकलती है और घाघरा नदी में मिलती है. अयोध्या इसी नदी के किनारे स्थित है. सरयु नदी जो श्री राम के होने का सबूत मानी जाती है, वह शापित है और आज भी अपने श्री राम के चरण पखार रही है. यह नदी प्रभु राम के जन्म, वनवास, विजय प्राप्ति और अंततः जल-समाधि की साक्षी रही है. लेकिन जब प्रभु श्री राम ने जल समाधि ली, तब भगवान शिव क्रोधित हुए और इसे श्राप दे दिया कि इसका जल किसी भी धार्मिक कार्य में उपयोग नहीं किया जाएगा. लेकिन सरयु नदी भगवान शिव की चरणों में गिरकर विनती करने लगी कि यह विधि का विधान था, इसमें उसकी कोई गलती नहीं है. इस पर भगवान शिव ने श्राप को कम करते हुए इस नदी में केवल स्नान की अनुमति दी. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इससे कोई पुण्य नहीं मिलेगा. ऐसे में आज भी किसी धार्मिक कार्य में इसके जल का उपयोग नहीं किया जाता और ना ही इसकी आरती की जाती है.

वहीं एक दूसरी शापित नदी, जो पवित्र तो है लेकिन माता सीता के क्रोध ने उसे भी प्रायश्चित के लिए मजबूर कर दिया. वह है बिहार के गया से होकर गुजरने वाली फल्गु नदी. यह वह नदी है जो मोहन और लीलाजन नदियों के संगम से बनती है. फल्गु के तट पर बसा गयाजी, पितरों के श्राद्ध और तर्पण के लिए बेहद महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है. मान्यता है कि यहां श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और जातकों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. रामायण में भी गयाजी और फल्गु नदी का जिक्र मिलता है.

इसके बारे में वर्णित है कि प्रभु श्री राम की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी माता सीता ने इसी नदी के किनारे दशरथ का पिंड दान किया था. उन्होंने अक्षय वट, फल्गु नदी, एक गाय, एक तुलसी का पौधा और एक ब्राह्मण को इसका गवाह बनाया था. लेकिन, जब श्री राम लौटे तो अक्षय वट को छोड़कर सभी गवाहों ने झूठ बोला. इस पर माता सीता को गुस्सा आ गया और उन्होंने सभी को श्राप दे दिया. उन्होंने फल्गु नदी को श्राप दिया कि इसमें कभी जल नहीं रहेगा, जिसके बाद से आज भी फल्गु नदी सूखी पड़ी है. यहां लोग रेत हटाकर पिंड दान करते हैं. गाय को उन्होंने श्राप दिया कि उसकी पूजा आगे से नहीं की जाएगी. गया में तुलसी का पौधा नहीं होगा और यहां के ब्राह्मण कभी तृप्त नहीं होंगे. वहीं, अक्षय वट को माता सीता ने आशीर्वाद दिया कि लोग अक्षय वट में भी पिंडदान करेंगे.

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दो शापित नदियां, एक रामजी के इंतजार में रही…दूसरी सूखी होकर भी मोक्षदायिनी


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