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AC हुए Fail! प्लास्टिक ड्रम से बना कूलर बना गर्मियों का हीरो, कम बिजली में देगा बेमिसाल ठंडक, हो रही बंपर कमाई

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सूर्य प्रकाश सूर्यकांत/बिलासपुर. गर्मियों की चिलचिलाती धूप और तपिश से राहत पाने के लिए लोग एसी और कूलर जैसे महंगे साधनों का सहारा लेते हैं, जो हर किसी के बजट में फिट नहीं बैठते. लेकिन, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के ग्राम बसिया निवासी शिवचरण सूर्यवंशी ने इस आम समस्या का अनोखा और किफायती समाधान निकाला है. उन्होंने अपनी सोच और नवाचार से एक ऐसा देसी कूलर तैयार किया है, जिसे प्लास्टिक ड्रम से बनाया गया है. ये देसी कूलर न केवल बेहद कम खर्च में तैयार होता है, बल्कि शानदार ठंडक भी देता है. शिवचरण की यह पहल ग्रामीणों को राहत पहुंचा रही है, वहीं, अब यह उनके लिए आय का एक स्थायी जरिया भी बन चुकी है.

कोरोना काल में की शुरुआत
बिल्हा जनपद के बसिया गांव निवासी शिवचरण सूर्यवंशी ने कोरोना काल के दौरान देसी कूलर बनाने की शुरुआत की थी. पहले उन्होंने इसे सिर्फ अपने घर के इस्तेमाल के लिए तैयार किया था, लेकिन जैसे ही लोगों ने इसकी ठंडक और उपयोगिता को देखा, इसकी मांग तेजी से बढ़ने लगी. अब तक शिवचरण 200 से अधिक देसी कूलर बेच चुके हैं और इस छोटे से नवाचार से लाखों की कमाई कर चुके हैं.

कैसे बना यह अनोखा देसी कूलर?
इस देसी कूलर को तैयार करने में शिवचरण एक बड़े प्लास्टिक ड्रम का उपयोग करते हैं, जो आमतौर पर पानी या राशन रखने के काम आता है. ड्रम के भीतर एक मोटर, वायरिंग और कंट्रोल बोर्ड लगाया जाता है. ड्रम के पिछले हिस्से में गोलाकार छेद करके उसमें खस की परत फिट की जाती है, जिससे बाहर निकलने वाली हवा ठंडी और ताजगी भरी होती है. कूलर के नीचे वाले हिस्से में करीब 55 लीटर पानी भरा जा सकता है, जिससे यह पूरे दिन ठंडक देता है और बार-बार पानी भरने की जरूरत नहीं पड़ती. ये डिजाइन सरल, किफायती और बेहद असरदार है.

सुरक्षा के साथ बेहतर कूलिंग
शिवचरण सूर्यवंशी को इस देसी कूलर को बनाने की प्रेरणा तब मिली, जब उनके बच्चे को एक टीन के बने कूलर से करंट लग गया. इसी घटना ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर कूलर को प्लास्टिक से बनाया जाए, तो यह न सिर्फ हल्का और टिकाऊ होगा, बल्कि करंट लगने के खतरे से भी पूरी तरह सुरक्षित रहेगा. इसी सोच से जन्म लिया इस देसी कूलर ने, जो आज गांव से लेकर शहर तक लोगों को राहत देने के साथ-साथ शिवचरण के लिए आमदनी का भी मजबूत जरिया बन गया है.

सस्ती तकनीक और शानदार मुनाफा
इस देसी कूलर की कीमत महज 3,000 से 7,000 रुपए के बीच है, जो आम कूलरों की तुलना में न सिर्फ किफायती है, बल्कि कम बिजली में शानदार ठंडक भी देता है. इसकी बढ़ती डिमांड ने शिवचरण को एक सफल उद्यमी बना दिया है. अब वह इस नवाचार से लाखों की कमाई कर रहे हैं और साथ ही अपने गांव के कई लोगों को रोजगार का मौका भी दे रहे हैं.

नवाचार और आत्मनिर्भरता की नई मिसाल
शिवचरण सूर्यवंशी की यह सफलता इस बात का प्रमाण है कि अगर इरादे मजबूत हों तो एक छोटा सा आइडिया भी बड़ी क्रांति ला सकता है. उनका देसी कूलर आज नवाचार, आत्मनिर्भरता और ग्रामीण उद्यमिता की मिसाल बन चुका है. आने वाले समय में यह इनोवेशन न सिर्फ और बड़े स्तर पर सफल हो सकता है, बल्कि देशभर में किफायती और सुरक्षित कूलिंग सिस्टम के रूप में पहचान भी बना सकता है.


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