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Congenital Heart Disease: कॉनजेनाइटल हार्ट डिजीज बच्चों में जन्मजात बीमारी है जो मां के गर्भ में ही शुरू हो जाती है लेकिन क्या इसका पता पहले लगाया जा सकता है. अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली में कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. चिन्मय गुप्ता ने इसके बारे में विस्तार से बताया है.

क्या होती है बच्चों की यह बीमारी
डॉ. चिन्मय गुप्ता ने बताया कि सीएचडी का मतलब होता है जन्मजात हृदय रोग. यह हार्ट से संबंधित बीमारी है. दरअसल, प्रेग्नेंसी के शुरुआती 6 महीनों में गर्भस्थ शिशु में हार्ट की संरचना का विकास होता है और वह धड़कने लगता है. सीएचडी बीमारी में इसी समय हार्ट की संरचना में कुछ गड़बड़ियां हो जाती है. यह बीमारी मुख्य रूप से दो तरह की होती है. साइनोटिक सीएचडी औ एसाइनोटिक सीएचडी. साइनोटिक सीएचडी में ऑक्सीजन का लेवन बहुत कम हो जाता है. एसाइनोटिक सीएचडी में ऑक्सीजन का लेवल कम तो होता लेकिन यह इतना कम नहीं होता. आप इसे इस तरह समझ सकते हैं कि हार्ट का काम खून को पंप कर पूरे शरीर में पहुंचाना है. हार्ट में दो तरह का खून होता है एक शुद्ध और दूसरा अशुद्ध. जिस खून में ऑक्सीजन मिला होता है वह शुद्ध होता है और इसी शुद्ध खून को हार्ट पंप कर शरीर के हर हिस्से में पहुंचा देता है. दूसरा शरीर के हिस्से से जो खून आता है उसमें से ऑक्सीजन खर्च हो जाता है. इसलिए वह खून अशुद्ध होता है और उसे वह लंग्स में भेज देता है. इस काम को करने के लिए हार्ट में चार चैंबर होते हैं. इन चैंबरों के बीच में एक दीवाल होती है जिसे सेप्टम कहा जाता है. सीएचडी की बीमारी में यही दीवाल कमजोर हो जाता है या यह पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता है जिसके कारण हम लोग कहते हैं कि इसमें छेद या गैप हो गया. चूंकि दो चैंबर के बीच में जब गैप हो जाए तो शुद्ध और अशुद्ध खून मिक्स हो जाएगा. उस स्थिति में ऑक्सीजन की कमी हो जाएगी. यही यह बीमारी है.
इसकी पहचान कैसे करें
अब सवाल उठता है कि इस बीमारी की पहचान कैसे करें. डॉ. चिन्मय गुप्ता बताते हैं कि चूंकि यह जन्मजात बीमारी है, इसलिए इसकी पहचान गर्भ के समय ही करना होता है लेकिन खुद से इसका पता नहीं लगा सकते हैं. इसके लिए फर्स्ट या सेकेंड लेवल वाला अल्ट्रासाउंड होता है. इस अल्ट्रासाउंड की मदद से गर्भस्थ शिशु में इसकी पहचान हो सकती है. इस अल्ट्रासाउंड में डॉक्टर यह देखते हैं कि यह छेद कितना बड़ा है. कई बार छेद इतना छोटा होता है कि यह अपने आप बंद हो जाता है. ऐसे में इसे यूं ही छोड़ दिया जाता है. लेकिन अगर छेद बड़ा होता है तो इसकी सर्जरी करानी पड़ती है. ध्यान देने वाली बात यह है कि गर्भ में इस अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट को हर डॉक्टर नहीं भांप पाते हैं. इसके लिए स्पेशलिस्ट डॉक्टर की जरूरत होती है. गाइनेकोलॉजिस्ट, पेडिएट्रिशियन और हार्ट स्पेशलिस्ट इस बीमारी को पकड़ सकते हैं.
कैसे पता करें कि बच्चे को सीएचडी है
अगर बच्चे के बच्चे के दिल में छेद है और बच्चा पैदा ले लिया है तो अब इसका पता कैसे करें. डॉ. चिन्मय गुप्ता बताते हैं कि अगर छेद होता है और यह भरने वाला होता है एक से डेढ साल में अपने आप भर जाता है लेकिन अगर यह नहीं भरता है तो इस उम्र के बाद लक्षण दिखने लगता है. अगर किसी बच्चे के दिल में छेद बड़ा है तो इसमें उसे थोड़ा सा तेज चलने पर सांसें फूलने लगेगी, उसे बहुत ज्यादा नींद आएगी, हमेशा थका रहेगा, सांसें बहुत तेज या जोर-जोर से लेगा, स्किन और नाखूनों के रंग बदरंग होने लगेंगे, एक्सरसाइज करने में तो सांसों की बहुत ज्यादा दिक्कत हो जाएगी. ऐसे बच्चों में ब्लड सर्कुलेशन बहुत कमजोर होने लगेगा. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है ये लक्षण और कठिन होते जाते हैं. ऐसे में तुरंत डॉक्टरों से दिखाना जरूरी हो जाता है. इस कंडीशन में बच्चों को सर्जरी की जरूरत होती है.
Excelled with colors in media industry, enriched more than 19 years of professional experience. Lakshmi Narayan is currently leading the Lifestyle, Health, and Religion section at Bharat.one. His role blends in-dep…और पढ़ें
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https://hindi.news18.com/news/lifestyle/health-41000-children-in-karnataka-suffer-from-congenital-heart-disease-dr-chinmay-gupta-explain-how-to-detect-chd-ws-en-9658034.html