Doctor Tips for First Menstrual Cycle: लड़कियों में मासिक धर्म यानी मेन्स्ट्रुएशन एक नेचुरल प्रक्रिया है, जो 10-12 साल की उम्र में शुरू हो जाती है. हमारे समाज में अक्सर मेन्स्ट्रुएशन पर बात करना शर्मिंदगी भरा माना जाता है, लेकिन यह सेहत से जुड़ा मामला है. हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो बच्चियों को सही उम्र में पीरियड्स से जुड़ी जानकारी देनी चाहिए, ताकि वे इसे लेकर डर या तनाव का शिकार न हों. बच्चियों के लिए पहली बार मासिक धर्म यानी फर्स्ट पीरियड आना अलग अनुभव होता है. कई बार पीरियड्स के बारे में सही जानकारी न होने से बच्चियां डर जाती हैं या उलझन में पड़ जाती हैं. ऐसे में अगर पैरेंट्स और खासतौर पर माताएं बच्चियों को एजुकेट करें, तो फर्स्ट पीरियड आने पर बच्चियां डरेंगी नहीं और इससे डील कर सकेंगी.
इन 10 टिप्स से बच्ची को फर्स्ट पीरियड के लिए करें तैयार
समय पर जागरुकता जरूरी – जब बच्ची की उम्र 8 से 10 साल के बीच हो, तब उसे मासिक धर्म के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए. माता-पिता को चाहिए कि वे खुलकर बात करें और बच्ची के मन में उठ रहे सवालों का जवाब दें. इससे बच्ची में डर और गलतफहमियां दूर हो जाती हैं. अगर पहली बार पीरियड अचानक आ जाए और बच्ची अनजान हो, तो यह उसके लिए तनाव का कारण बन सकता है. इसलिए इसे पहले से समझाना जरूरी होता है ताकि वह इस बदलाव को नॉर्मल समझे और स्वाभाविक रूप से स्वीकार करे.
घर में सपोर्टेड माहौल बनाएं – जब पहली बार मासिक धर्म आता है, तो बच्ची को परिवार से पूरा सपोर्ट और प्यार मिलना चाहिए. यह वह वक्त होता है, जब वह भावनात्मक रूप से कमजोर महसूस कर सकती है, इसलिए घर का माहौल सपोर्टिव होना चाहिए. माता-पिता को बच्ची की बात सुननी चाहिए, उसे डांटना नहीं चाहिए और न ही यह महसूस कराना चाहिए कि यह कोई शर्म की बात है. अगर बच्ची घर पर खुलकर अपनी समस्याएं और असुविधाएं शेयर कर सके, तो उसे यह बदलाव सहज लगेगा.
हार्मोनल बदलावों को समझें – फर्स्ट पीरियड आने के बाद अगले 2 साल तक मासिक धर्म की अवधि और समय में अनियमितता हो सकती है. यह हार्मोनल बदलावों की वजह से होता है. कभी पीरियड 15 दिनों तक भी चल सकता है, तो कभी 2-3 महीने तक नहीं आ सकता. यह सामान्य है और इसके लिए घबराना नहीं चाहिए. बच्ची को भी यह बताया जाना चाहिए ताकि वह पैनिक न हो. अगर पीरियड्स में अत्यधिक दर्द या असामान्य ब्लीडिंग हो, तो डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है. सही जानकारी से बच्ची मानसिक रूप से मजबूत होती है.
पीरियड किट करवाएं तैयार – बच्ची के लिए एक छोटी पीरियड्स किट तैयार करें, जिसमें सैनिटरी पैड, वाइप्स और अंडरवियर शामिल हों. यह किट स्कूल या बाहर जाते समय हमेशा साथ रखनी चाहिए. अचानक पीरियड आने पर बच्ची को परेशान नहीं होना पड़ेगा और वह अपने आप को सुरक्षित महसूस करेगी. इससे बच्ची में आत्मविश्वास भी बढ़ता है.
पीरियड कैलेंडर बनाएं – मासिक धर्म के दिनों को ट्रैक करना जरूरी होता है. बच्ची के साथ मिलकर माताएं पीरियड कैलेंडर बनाएं, जिसमें पीरियड कब आते हैं और कब खत्म होते हैं, इसे नोट करें. इससे मासिक धर्म की रेगुलरिटी का पता चलता है और अगर कोई समस्या हो तो डॉक्टर को सही जानकारी दी जा सकती है. यह तरीका बच्ची को अपनी बॉडी को समझने में मदद करता है.
मेन्स्ट्रुअल हाइजीन समझाएं – सैनिटरी पैड को हर 5-6 घंटे में बदलना चाहिए, ताकि इंफेक्शन न हो. अगर पैड जल्दी गीला हो जाता है या बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है, तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. साथ ही बच्ची को साफ-सफाई का सही तरीका सिखाना जरूरी है, जिससे उसे संक्रमण या अन्य दिक्कतों से बचाया जा सके. यह आदत बच्ची की सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होती है.
जेनिटल एरिया की सफाई जरूरी – मासिक धर्म के दौरान जेनिटल एरिया की साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए. बच्ची को रोजाना गर्म पानी से इस क्षेत्र को साफ करने की सलाह दें. वी वॉश या किसी तरह के साबुन का इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है. बच्ची को यह समझाएं कि स्वच्छता से संक्रमण से बचाव होता है और इसके बारे में खुलकर बात करना जरूरी है.
पेट दर्द की समस्या – मासिक धर्म के दौरान पेट दर्द कॉमन है. घरेलू उपाय जैसे गर्म पानी से सिकाई करने से आराम मिलता है. अगर दर्द बहुत ज्यादा हो या लंबे समय तक बना रहे तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. जरूरत पड़ने पर डॉक्टर पेनकिलर भी दे सकते हैं. बच्ची को समझाएं कि यह दर्द सामान्य है, लेकिन ज्यादा तकलीफ होने पर इलाज जरूरी है.
सही खानपान और हाइड्रेशन – पीरियड्स के दौरान पोषण का विशेष ध्यान रखना चाहिए. बच्ची को प्रोटीन से भरपूर आहार जैसे दाल, अंडा, दूध और हरी सब्जियां खानी चाहिए. पानी खूब पीना चाहिए, ताकि शरीर हाइड्रेटेड रहे. जंक फूड, तली-भुनी चीजों से बचाव करना चाहिए क्योंकि ये सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं और पीरियड के दर्द को बढ़ा सकते हैं. अच्छा खानपान शरीर को ताकत देता है और पीरियड के दौरान कमजोरी को कम करता है.
फिजिकल एक्टिविटी बनाए रखें – पीरियड्स के दौरान हल्की फुल्की एक्सरसाइज, योग या स्ट्रेचिंग करने से शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है और दर्द कम होता है. नियमित फिजिकल एक्टिविटी से हार्मोन संतुलित रहते हैं, जिससे पीरियड्स नियमित होते हैं और बच्ची की सहनशीलता भी बढ़ती है. बच्ची को ज्यादा देर तक बैठे रहने से बचाएं और उसे एक्टिव रहने के लिए प्रोत्साहित करें.
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