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Herbal village in Uttarakhand, where treatment is done with herbs and not doctors – Uttarakhand News

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देवभूमि उत्तराखंड में कई तरह की जड़ी बूटियां हिमालय की गोद में पाई जाती है, जिनसे बड़ी-बडी फार्मा कम्पनियों द्वारा दवाइयां तैयार की जाती है. लेकिन उत्तराखंड के दुर्गम गांव में स्वास्थ्य सुविधा ज्यादा बेहतर न होने के कारण पुराने समय से लोग जड़ी- बूटियों से ही अपना इलाज करते हैं.

उत्तराखंड का एक ऐसा गांव है जो हर्बल विलेज कहा जाता है. उच्च हिमालय में एक गांव है जो टिहरी जनपद की घनसाली तहसील का अंतिम गांव हैं जहाँ न सिर्फ जड़ी- बूटियों का उपयोग होता है बल्कि यहां अधिकतर लोग इन्हें उगाते भी हैं. यह है गंगी गांव.

यहां के लोग हर्बल प्लांट की खेती कर उन्हें बाजार में बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं. सर्दियों में बर्फबारी से गांव का नजारा अत्यंत सुंदर दिखाई देता है. प्राकृतिक सौंदर्य और औषधीय पौधों की उपज ने इसे पर्यटकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए खास बना दिया है. गंगी गांव की यह परंपरा न केवल ग्रामीणों की रोज़मर्रा की जिंदगी में सहारा है, बल्कि हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता को भी संजोए रखती है.

उच्च शिखरीय पादप शोध केंद्र (HAPPRC), श्रीनगर गढ़वाल के डायरेक्टर डॉ. विजयकांत पुरोहित ने बताया कि हेप्रेक उच्च हिमालयी क्षेत्रों के गांवों में जड़ी-बूटियों की खेती और संरक्षण के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है. इसके तहत ग्रामीणों को तकनीकी प्रशिक्षण, पौध उपलब्ध कराना और बाजार तक पहुंचाने में मदद दी जा रही है. इसका उद्देश्य स्थानीय लोगों की आय बढ़ाना और हिमालयी जैव विविधता को संरक्षित करना है.

साल 2022 से गंगी गांव को भी हेप्रेक ने सम्मिलित किया है. इसके तहत विशेषज्ञों द्वारा यहां के लोगों को जड़ी-बूटियों के उत्पादन के लिए ट्रेनिंग दी गई. यहां के ग्रामीण पहले से जड़ी-बूटी की खेती किया करते थे लेकिन वह सीमित मात्रा में होती थी.

हेप्रेक ने गंगी गांव में जड़ी-बूटियों की खेती को व्यवसाय के रूप में विकसित किया. संगठन ग्रामीणों को विभिन्न जड़ी-बूटियों की पौध उपलब्ध कराता है और उनके उत्पादन के लिए तकनीकी ज्ञान प्रदान करता है. इसके साथ ही, हेप्रेक किसानों को उनके उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने में मदद करता है. इससे न सिर्फ स्थानीय लोगों की आय बढ़ रही है, बल्कि जड़ी-बूटियों की खेती को भी एक स्थायी और लाभदायक व्यवसाय के रूप में बढ़ावा मिल रहा है.

डॉ पुरोहित ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्र होने और होने से हिमपात के चलते गंगी गांव जड़ी-बूटियों की खेती में भी फायदा कमा सकता है. यहां की आबोहवा जड़ी-बूटी की खेती के लिए बेस्ट है. यहां कुटकी, चोरू, जटामासी सहित अन्य बेशकीमती जड़ी-बूटियों की खेती की जाती है.

उन्होंने कहा कि गंगी गांव में अच्छी संख्या में प्राकृतिक संसाधन हैं. पहले यहां सड़क नहीं थी, लेकिन अब सड़क पहुंचने के बाद यहां कनेक्टिविटी की परेशानी भी दूर हो गई है. प्राकृतिक रूप से खूबसूरत होने के कारण यहां अब टूरिस्ट भी बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं. इसके अलावा ग्रामीणों द्वारा यहां होमस्टे में भी पर्यटक सीजन के दिनों में पहुंचते हैं.

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पहाड़ का हर्बल विलेज, जहां डॉक्टर नहीं, जड़ी-बूटियां देती हैं सेहत और कमाई


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