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Hyderabad Best Tourist Place: हैदराबाद से 130 किलोमीटर दूर कोइलकोंडा किला ट्रेक इतिहास, चुनौतीपूर्ण रास्तों और शानदार दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है, जुलाई से फरवरी तक यात्रा का सबसे अच्छा समय है.
महा कोइलकोंडा किले तक जाने वाला यह ट्रेक शहरवासियों के लिए एक यादगार वीकेंड ट्रिप साबित हो सकता है. कोइलकोंडा किला ट्रेक हैदराबाद से करीब 130 किलोमीटर दूर एक शांत गाँव से शुरू होता है. यह गाँव आधुनिक शोर-शराबे से दूर है और यहां आकर ऐसा लगता है जैसे समय थम गया हो. यहीं से असली साहसिक यात्रा की शुरुआत होती है.
कोइलकोंडा को महा कोइलकोंडा या ग्रेट कोइलकोंडा के नाम से भी जाना जाता है. यह किला विजयनगर साम्राज्य के समय का है और बाद में कुतुब शाही शासकों के अधीन रहा. कहा जाता है कि हैदराबाद शहर बसाने से पहले कुतुब शाही राजाओं ने कोइलकोंडा को अपनी राजधानी बनाने पर विचार किया था. किले की बनावट इसे एक दुर्जेय गढ़ बनाती थी, जो अपने ऊंचे स्थान और सुरक्षात्मक डिजाइन के लिए प्रसिद्ध रहा है.
वाइल्डनेस ट्रेक
कोइलकोंडा ट्रेक का रास्ता ही इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती है. यह कोई आसान या पक्का रास्ता नहीं है बल्कि पूरी तरह जंगली और चुनौतीपूर्ण पथ है. ट्रेकर्स को घने जंगलों से गुजरना पड़ता है, चट्टानों पर पैर जमाने होते हैं और कई बार हाथ-पैर का सहारा लेकर कठिन रास्तों से पार पाना होता है. यही जंगलीपन इस ट्रेक को तेलंगाना के सबसे रोमांचक अनुभवों में से एक बनाता है.
यह ट्रेक मध्यम से कठिन श्रेणी का माना जाता है और इसे पूरा करने में लगभग तीन से चार घंटे का समय लग सकता है. लेकिन जैसे ही आप शिखर पर पहुंचते हैं, सारी थकान पलभर में दूर हो जाती है. शीर्ष पर पहुंचने के बाद खंडहर हो चुके किले के विशाल प्राचीन दरवाजे, बारूद घर और मंदिरों के अवशेष सैकड़ों साल पुराने इतिहास को जीवंत कर देते हैं. असली इनाम है 360 डिग्री का मनोरम दृश्य. हरियाली से ढकी पहाड़ियों का समुद्र आंखों के सामने फैल जाता है. सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा यहां से बेहद मनमोहक दिखता है और फोटोग्राफरों के लिए यह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है.
यात्रा से पहले जानने योग्य बातें
कोइलकोंडा ट्रेक का आनंद लेने का सबसे अच्छा समय मानसून के बाद जुलाई से सितंबर और सर्दियों में अक्टूबर से फरवरी के बीच है. गर्मियों में यहां आने से बचना चाहिए क्योंकि तापमान काफी अधिक होता है. ट्रेक पर जाते समय पानी, एनर्जी बार, सूखे मेवे, मजबूत ट्रैकिंग शूज़, कैप, सनस्क्रीन और फर्स्ट-एड किट जरूर साथ रखें. ट्रेक के बाद नीचे स्थित छोटे से गाँव में स्थानीय लोगों से बातचीत का अनुभव भी बेहद खास होता है, जहां उनकी सादगी भरी जिंदगी का अहसास मिलता है.
नाम है आनंद पाण्डेय. सिद्धार्थनगर की मिट्टी में पले-बढ़े. पढ़ाई-लिखाई की नींव जवाहर नवोदय विद्यालय में रखी, फिर लखनऊ में आकर हिंदी और पॉलीटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया. लेकिन ज्ञान की भूख यहीं शांत नहीं हुई. कल…और पढ़ें
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