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दिल्ली से आदि कैलाश यात्रा, बिना गाइड के ऐसे करें प्लान, जानें आसान रूट और जरूरी टिप्स

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अगर आप दिल्ली की भीड़भाड़ से दूर किसी शांत, दिव्य और रोमांचकारी जगह की तलाश में हैं, तो आदि कैलाश यात्रा आपके लिए एक परफेक्ट अनुभव हो सकती है. पिथौरागढ़ जिले में स्थित यह पर्वत न सिर्फ आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता और ट्रैकिंग रोमांच से भी भरपूर है. अब बिना किसी गाइड के भी आप इस यात्रा को सही जानकारी और योजना के साथ आसानी से पूरा कर सकते हैं.

दिल्ली की भागदौड़ भरी ज़िंदगी से कुछ दिनों का विराम लेकर अगर आप शांति, दिव्यता और रोमांच की तलाश में हैं, तो आदि कैलाश यात्रा आपके लिए एक आदर्श विकल्प हो सकती है. कैलाश पर्वत जैसा दिखने वाला यह पवित्र स्थल उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में स्थित है और पंच कैलाशों में से एक माना जाता है.

इस यात्रा की शुरुआत दिल्ली से सड़क मार्ग द्वारा काठगोदाम या हल्द्वानी तक की जा सकती है. इसके बाद हल्द्वानी से धारचूला होते हुए आदि कैलाश तक का सफर तय किया जाता है। यह यात्रा न सिर्फ रोमांच से भरपूर है, बल्कि रास्ते में मिलने वाले पहाड़ी नज़ारे और आध्यात्मिक ऊर्जा हर पल को एक नई अनुभूति में बदल देते हैं.

पिथौरागढ़ ज़िले में स्थित धारचूला, आदि कैलाश यात्रा का प्रमुख बेस कैंप माना जाता है. नेपाल सीमा से सटे इस छोटे से शहर को अंतिम बाज़ार और जरूरी तैयारियों के केंद्र के रूप में जाना जाता है. यहीं से यात्रियों के इनर लाइन परमिट बनते हैं और यहीं से गूंजी, कालापानी और नाबी गांव जैसे ट्रैकिंग स्टेशनों की ओर यात्रा शुरू होती है. चूंकि धारचूला के आगे का क्षेत्र सैन्य नियंत्रण में है और ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए यात्रियों को कुछ दिन यहां रुककर खुद को वातावरण के अनुसार ढालना आवश्यक होता है.

धारचूला से आगे की यात्रा व्यास घाटी के माध्यम से होती है, जो प्राकृतिक सौंदर्य और रोमांच से भरपूर है. घने जंगल, बर्फ से ढकी चोटियाँ और ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ते इस यात्रा को चुनौतीपूर्ण और यादगार बना देते हैं. रास्ते में एक दिन विश्राम के बाद यात्री ज्योलिंगकांग की ओर बढ़ते हैं, जहां से आदि कैलाश पर्वत और गौरीकुंड के दिव्य दर्शन होते हैं। इस मार्ग पर भारतीय सेना की मौजूदगी सुरक्षा और मार्गदर्शन दोनों के रूप में भरोसा देती है. ज्योलिंगकांग वह विशेष पड़ाव है, जहां से श्रद्धालु आदि कैलाश को नज़दीक से देख सकते हैं और उसकी दिव्यता का अनुभव कर सकते हैं.

गौरीकुंड, आदि कैलाश पर्वत की तलहटी में स्थित एक पवित्र झील है, जो समुद्र तल से लगभग 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां की सर्द हवाएं और ऑक्सीजन की कमी इसे एक साहसिक और आध्यात्मिक स्थल बनाती हैं। पौराणिक मान्यता है कि देवी पार्वती यहां स्नान करती थीं, इसलिए इस जल को अत्यंत पवित्र माना जाता है- हालांकि यहां स्नान करना वर्जित है, श्रद्धालु केवल जल भरकर अपने साथ ले जाते हैं. झील के आसपास का शांत वातावरण, हिमालय की गोद में बसी इसकी सुंदरता और आध्यात्मिक आभा हर यात्री को भीतर तक छू जाती है, जो इसे सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि गहरी श्रद्धा का केंद्र बनाती है.

गौरीकुंड तक की 3 किलोमीटर की ट्रैकिंग आसान नहीं है- यह ऊंचाई, ठंडी हवाओं और कम ऑक्सीजन वाली जलवायु में एक कठिन सफर होता है. ज्योलिंगकांग से शुरू होने वाली यह चढ़ाई हर किसी के बस की बात नहीं होती. खासकर बुजुर्गों और शारीरिक रूप से कमजोर यात्रियों के लिए यह एक बड़ी चुनौती हो सकती है. ऐसे में घोड़े और खच्चरों की सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, जिनका किराया लगभग ₹3000 होता है। ये सवारी न सिर्फ सफर को आसान बनाती है, बल्कि ऊंचाई पर चलने का एक रोमांचक अनुभव भी देती है.

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