Dussehra 2025 Kab Hai?: दशहरा का त्योहार आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को होता है. दशहरा के दिन विजय मुहूर्त में शस्त्र पूजा करते हैं और शाम के समय में रावण दहन करते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार प्रभु राम के साथ रावण की लड़ाई 10 दिनों तक चली थी. 10वें दिन प्रभु राम ने रावण का वध किया था, उस दिन आश्विन शुक्ल दशमी तिथि थी. इस वजह से हर साल दशमी तिथि पर दशहरा मनाते हैं और रावण दहन करते हैं. महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन के ज्योतिषाचार्य डॉ मृत्युञ्जय तिवारी से जानते हैं कि दशहरा कब है? दशहरा पर शस्त्र पूजा मुहूर्त और रावण दहन का समय क्या है?
दशहरा कब है?
पंचांग के अनुसार, इस साल 1 अक्टूबर की शाम 7 बजकर 1 मिनट से आश्विन शुक्ल दशमी तिथि शुरू होगी, जो 2 अक्टूबर की शाम 7 बजकर 10 मिनट तक रहेगी. ऐसे में उदयातिथि के आधार पर दशहरा का त्योहार 2 अक्टूबर दिन गुरुवार को है. उस दिन शाम के समय रावण दहन होगा.
रवि योग और उत्तराषाढ़ नक्षत्र में दशहरा
इस बार दशहरा के दिन रवि योग बन रहा है. उस दिन पूरे समय तक रवि योग बनेगा. इस योग में सूर्य का प्रभाव अधिक होता है, जिसकी वजह से सभी प्रकार के दोष मिट जाते हैं. उस दिन सुकर्मा योग प्रात:काल से लेकर रात 11 बजकर 29 मिनट तक है, उसके बाद से धृति योग होगा.
दशहरा के दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्र है, जो प्रात:काल से लेकर सुबह 09:13 ए एम तक है. उसके बाद श्रवण नक्षत्र है. रावण दहन के समय सुकर्मा योग, श्रवण नक्षत्र और रवि योग होगा.
दशहरा शुभ मुहूर्त
दशहरा के दिन का शुभ मुहूर्त यानि अभिजीत मुहूर्त दिन में 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 34 मिनट तक है. दशहरा पर विजय मुहूर्त दोपहर में 02:09 पी एम से 02:56 पी एम तक है. इस दिन का निशिता मुहूर्त 11:46 पी एम से देर रात 12:35 ए एम तक है.
दशहरा पर शस्त्र पूजा समय
दशहरा के दिन शस्त्र पूजा का समय दोपहर में 02 बजकर 09 मिनट से है, जो दोपहर 02 बजकर 56 मिनट तक रहेगा. इस समय में आपको शस्त्र पूजा कर लेनी चाहिए.
दशहरा पर रावण दहन का मुहूर्त
दशहरा के दिन प्रदोष काल में रावण का दहन किया जाता है. प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद से प्रारंभ होता है. दशहरा पर सूर्यास्त का समय 06:06 पी एम है. इस समय के बाद जब अंधेरा होने लगे तो आप रावण दहन करें.
दशहरा का महत्व
दशहरा को बुराई पर अच्छाई या अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक मानते हैं. इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध करके धर्म की स्थापना की थी और सीता जी को अशोक वाटिका से वापस अयोध्या ले गए थे.