Govardhan Puja Kadhi Annakut: गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है, दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है. यह दिन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की याद में मनाया जाता है, जब उन्होंने इंद्र देव के क्रोध से लोगों और पशुओं को बचाया था. इस दिन भगवान कृष्ण की विशेष पूजा की जाती है और उनके सामने विविध प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं. इन व्यंजनों में कढ़ी और अन्नकूट की सब्जी का खास स्थान होता है. यह सिर्फ खाने का हिस्सा नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक संदेश छिपा है. आइए जानते हैं कि गोवर्धन पूजा पर कढ़ी और अन्नकूट की सब्जी क्यों बनाई जाती है और इसका क्या महत्व है. इस बारे में बता रहे हैं ज्योतिषाचार्य अंशुल त्रिपाठी.
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है अन्न का पर्वत. यह पर्व प्रकृति, कृषि और अन्न की कृतज्ञता व्यक्त करने का प्रतीक है. भगवान कृष्ण ने स्वयं ब्रजवासियों को समझाया था कि इंद्र देव की पूजा के बजाय हमें प्रकृति और अन्नदाता यानी धरती माता का सम्मान करना चाहिए. इसी भाव से इस दिन अलग-अलग तरह के अनाज, दाल, सब्जियां और मिठाइयां बनाकर भगवान को भोग चढ़ाया जाता है. इस दिन कढ़ी और अन्नकूट की सब्जी बनाना इसी अन्नकूट परंपरा का हिस्सा है.
अन्नकूट की सब्जी का महत्व
अन्नकूट का मतलब है कई तरह की सब्जियों का मिश्रण. इस दिन बनने वाली अन्नकूट की सब्जी में मौसमी सब्जियों का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे बैंगन, आलू, लौकी, टिंडा, मटर, भिंडी, सीजनल बीन्स आदि. यह सब्जी बहुत ही सादा लेकिन स्वादिष्ट बनाई जाती है और बिना प्याज-लहसुन के तैयार की जाती है.

कहा जाता है कि अन्नकूट की सब्जी बनाने का उद्देश्य प्रकृति की विविधता का सम्मान करना है. जैसे हर सब्जी का स्वाद और गुण अलग होता है, वैसे ही जीवन में हर अनुभव की अपनी महत्ता होती है. यह सब्जी एकता, समरसता और संतुलन का संदेश देती है कि जब सब चीजें साथ आती हैं, तभी सच्चा स्वाद और समृद्धि बनती है.
कढ़ी का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
गोवर्धन पूजा पर कढ़ी बनाने की परंपरा बहुत पुरानी है. माना जाता है कि यह व्यंजन संतुलन और पवित्रता का प्रतीक है. दही और बेसन से बनी कढ़ी को सात्विक भोजन कहा गया है. यह न केवल पाचन के लिए हल्की होती है बल्कि पूजा के दिन उपवास के बाद शरीर के लिए बेहद फायदेमंद भी होती है.
कहा जाता है कि कढ़ी भगवान श्रीकृष्ण को बहुत प्रिय थी. इसी वजह से इसे गोवर्धन पूजा में विशेष रूप से तैयार किया जाता है. साथ ही, बेसन और दही का संयोजन संपन्नता और शुद्धता दोनों का प्रतीक माना जाता है- बेसन धरती की उपज और दही जीवन की ताजगी दर्शाता है.
कढ़ी और अन्नकूट का एक साथ बनना क्यों खास है
इन दोनों व्यंजनों को साथ में तैयार करने के पीछे धार्मिक और प्रतीकात्मक अर्थ है. अन्नकूट की सब्जी प्रकृति की विविधता का संदेश देती है, जबकि कढ़ी संतुलन और पवित्रता का. जब ये दोनों व्यंजन साथ में बनते हैं, तो यह जीवन में विविधता और संतुलन दोनों बनाए रखने का प्रतीक बन जाता है.
इसके अलावा, ग्रामीण परंपराओं में गोवर्धन पूजा को “अन्न धन्यवाद दिवस” की तरह भी देखा जाता है. खेतों से नई फसल आने से पहले किसान भगवान को धन्यवाद देते हैं. इस दिन बनी सब्जियों और व्यंजनों में खेत की हर फसल का थोड़ा-थोड़ा अंश शामिल किया जाता है, ताकि धरती माता को सम्मान मिले.
अन्नकूट पूजा का आयोजन और भोग
गोवर्धन पूजा के दिन घरों और मंदिरों में गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाया जाता है- यह आमतौर पर गोबर, मिट्टी या आटे से तैयार किया जाता है. इसके बाद उस पर विभिन्न तरह के व्यंजन चढ़ाए जाते हैं. खासकर कढ़ी और अन्नकूट की सब्जी को बड़े थाल में रखकर भगवान कृष्ण को भोग लगाया जाता है. पूजा के बाद यही भोग प्रसाद के रूप में सबको बांटा जाता है.
कुछ जगहों पर 56 प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं, जिन्हें छप्पन भोग कहा जाता है. लेकिन सबसे जरूरी होता है कि भोजन सात्विक हो, यानी बिना प्याज और लहसुन के, क्योंकि यह दिन पूरी तरह भक्ति और पवित्रता को समर्पित है.
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https://hindi.news18.com/news/dharm/govardhan-puja-2025-why-kadhi-annakut-ki-sabji-are-prepared-significance-bhog-offered-to-lord-krishna-ws-kl-9751124.html