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कपल्स ध्यान दें! अब शादी के तुरंत बाद नहीं, 45 दिन बाद करें हनीमून की प्लानिंग, वरना रहेंगे जीवनभर परेशान

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Honeymoon Astro Tips: क्या आप जानते हैं कि भारतीय परंपरा में ‘हनीमून’ को लेकर क्या मान्यता है? हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, विवाह के बाद नए दंपति को किसी यात्रा पर कम से कम 45 दिन बाद ही जाना चाहिए. इसके पीछे कोई अंधविश्वास नहीं, बल्कि गहरे कारण बताए गए हैं.

देवउठनी ग्यारस के बाद फिर से शुभ मांगलिक कार्य विवाह (शादिया) की शुरुआत हो चुकी है. शादी हर व्यक्ति के जीवन का बेहद महत्वपूर्ण और भावनाओं से भरा रिश्ता होता है. यह दो लोगों को एक-दूसरे के साथ जीवनभर के लिए जोड़ने वाला पवित्र बंधन है. शादियों से पहले ही कई परिवारों के लोग तैयारियां मे जुट जाते हैं. हर कोई चाहता है कि उसका यह खास दिन यादगार बने, इसलिए लोग सजावट से लेकर हर छोटी-बड़ी बात पर खास ध्यान देते हैं.

हालाँकि शादी का दिन तो अपने आप में अनमोल होता ही है, लेकिन इसके बाद आने वाले कई पल भी उतने ही मायने रखते हैं. उन्हीं में से एक है हनीमून, जो हर नए शादीशुदा जोड़े के लिए बेहद खास अनुभव माना जाता है. यह एक ऐसा समय होता है जब कपल एक-दूसरे को और करीब से समझते हैं और अपनी नई जिंदगी की शुरुआत खूबसूरत यादों के साथ करते हैं.

आज के दौर में शादी के तुरंत बाद हनीमून पर जाना एक आम ट्रेंड बन चुका है. कई जोड़े तो शादी की तारीख तय होने से पहले ही अपने हनीमून की लोकेशन, होटल और टिकट तक बुक कर लेते हैं. लेकिन क्या आपको मालूम है कि भारतीय संस्कृति में इसकी बिल्कुल अलग परंपरा बताई गई है.

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हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, विवाह के तुरंत बाद यात्रा पर निकलना उचित नहीं माना जाता है. शास्त्रों में बताया गया है कि नए विवाहित दंपति को कम से कम 45 दिन बाद ही किसी यात्रा पर जाना चाहिए. इसके पीछे केवल धार्मिक मान्यताएं ही नहीं, बल्कि कई महत्वपूर्ण कारण भी बताए गए हैं.

शास्त्रों के अनुसार विवाह के बाद विशेषकर दुल्हन के लिए शुरुआती 45 दिन बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं. यह अवधि उसे नए घर, नए वातावरण और नए रिश्तों के साथ खुद को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से ढालने का समय देती है. ग्रंथों में इस प्रक्रिया को ‘ऋतु शुद्धि’, ‘गृहस्थ व्रत’ और ‘गर्भ संयम’ के नाम से वर्णित किया गया है. आधुनिक दृष्टिकोण से देखें तो यह चरण मानसिक रूप से स्थिर होने और जीवन में आने वाले परिवर्तनों के साथ सामंजस्य बैठाने का मौका प्रदान करता है.

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, विवाह के बाद नवविवाहिता को कुछ समय तक संयम और संतुलित व्यवहार अपनाने की सलाह दी गई है, ताकि वह अपने नए जीवन की लय को समझ सके. यह अवधि केवल शारीरिक बदलावों के अनुकूल होने के लिए ही नहीं, बल्कि मन को स्थिर करने, नए रिश्तों को समझने और आने वाली जिम्मेदारियों को सही ढंग से स्वीकार करने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है.

पहले 7 दिन की इस अवधि में शरीर और मन को आराम देने पर ज़ोर दिया जाता है. यह समय पूरी तरह विश्राम और मानसिक स्थिरता प्राप्त करने के लिए माना गया है. इसके बाद 8 से 21 दिन के भीतर इस चरण का उद्देश्य मानसिक अनुकूलन है. दंपति भावनात्मक रूप से एक-दूसरे को समझते हैं और गृहस्थ जीवन में तालमेल बनाना शुरू करते हैं.

इसी के साथ अंतिम 22 से 45 दिन के बीच की यह अवधि ऊर्जा संतुलन, ग्रहों के प्रभाव से सामंजस्य और नए रिश्तों को गहराई से समझने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसी दौरान दंपति अपने नए जीवन की नींव को मजबूत करते हैं. इसलिए इस समय घर से बहार जाने के बारे मे नही सोचना चाहिए.

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