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जनेऊ में सिर्फ तीन ही धागे क्यों होते हैं? क्या इसमें छुपा है जीवन का सबसे बड़ा रहस्य!

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हम सबने हिंदू धर्म में पुजारियों, ब्राह्मणों या उपनयन संस्कार के समय लड़कों को एक सफेद धागा पहने देखा है, जिसे “जनेऊ” या “यज्ञोपवीत” कहा जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उस जनेऊ में हमेशा तीन ही धागे क्यों होते हैं? न दो, न चार… सिर्फ तीन! क्या ये सिर्फ एक परंपरा है या इसके पीछे कोई गहरा मतलब छिपा है? चलिए आज हम इसे आसान भाषा में समझते हैं.

जनेऊ क्या होता है?
जनेऊ एक पवित्र धागा होता है जो हिंदू धर्म में खासतौर पर उपनयन संस्कार (जिसे “जनेऊ संस्कार” भी कहते हैं) के समय पहनाया जाता है. इसे पहनने का मतलब है कि अब व्यक्ति धार्मिक रूप से तैयार हो गया है, उसने अपने जीवन में एक नया चरण शुरू किया है जहाँ उसे ज्ञान, कर्तव्य और संयम को अपनाना होगा.

यह धागा बाईं तरफ कंधे के ऊपर से पहनकर दाईं तरफ नीचे ले जाया जाता है. लेकिन खास बात यह है कि इस धागे में हमेशा तीन लच्छे (धागे) होते हैं. अब सवाल उठता है, कि आखिर ये तीन धागे ही क्यों होते हैं?

तीन धागों का मतलब क्या होता है?
इन तीन धागों का संबंध सिर्फ शरीर से नहीं, बल्कि हमारे कर्मों, सोच और जिम्मेदारियों से होता है. हिन्दू धर्म में माना जाता है कि हर इंसान जन्म लेते ही तीन “ऋणों” के साथ आता है. ये हैं:

  • देव ऋण – मतलब, हमें भगवान और प्रकृति के प्रति अपना कर्तव्य निभाना है. जैसे कि पूजा-पाठ, सत्य का पालन और दूसरों की मदद करना.
  • ऋषि ऋण – इसका मतलब है कि हमें उन गुरुओं और ऋषियों का कर्ज चुकाना है जिन्होंने हमें ज्ञान दिया. इसका सबसे अच्छा तरीका है – पढ़ना, सीखना और जो सीखा है वो दूसरों को सिखाना.
  • पितृ ऋण – ये हमारे माता-पिता और पूर्वजों का ऋण है. उनका आदर करना, उनकी सेवा करना और उनका नाम रोशन करना इस ऋण को चुकाने का तरीका है.

तो इन तीन धागों से यह याद दिलाया जाता है कि तुम्हारे जीवन का मकसद सिर्फ खुद के लिए जीना नहीं है, बल्कि तुम्हें अपने कर्तव्यों को भी निभाना है.

एक और नजरिए से समझें – हमारे अंदर के तीन गुण
हिन्दू दर्शन में हर इंसान के भीतर तीन गुण होते हैं:

  • सत्त्व – जो शांति, ज्ञान और अच्छे विचारों से जुड़ा होता है
  • रजस् – जो जोश, इच्छाओं और मेहनत से जुड़ा होता है
  • तमस् – जो आलस, अज्ञान और नकारात्मकता से जुड़ा होता है

ये तीनों धागे हमें यह भी याद दिलाते हैं कि हमें अपने भीतर संतुलन बनाए रखना है. न ज़्यादा आलसी बनना है, न ज़्यादा क्रोधित. और सच्चे ज्ञान की ओर बढ़ना है.

जनेऊ सिर्फ धागा नहीं, एक जिम्मेदारी है
जब कोई लड़का जनेऊ पहनता है, तो वो सिर्फ एक रस्म पूरी नहीं कर रहा होता, बल्कि यह एक वादा होता है कि अब वह अपने विचारों, शब्दों और कर्मों को शुद्ध रखेगा. यानी जो सोचेगा वो अच्छा होगा, जो बोलेगा वो सच और भला होगा, और जो करेगा वो धर्म के रास्ते पर होगा.

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