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जानें मृत्यु के बाद क्यों कराई जाती है तेरहवीं, न कराने पर आत्मा के साथ हो जाएगा ये कांड

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Agency:Bharat.one Uttar Pradesh

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Terhavi in hindi : मृत्यु के बाद 13 दिनों तक मृतक की आत्मा उसी घर में ही रहती है. गरुड़ पुराण के अनुसार, आत्मा अपने परिवार वालों की ओर से किए जाने वाले कामों को ध्यान से देखती है.

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गरूड़ पुराण में तो यहां तक कहा गया है कि यदि मृतक की तेरहवीं न कराई जाए

हाइलाइट्स

  • तेहरवीं कराने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है.
  • तेहरवीं न कराने पर उसकी आत्मा भटकती है.
  • तेहरवीं के बाद मृतकी आत्मा को मोक्ष मिलता है.

मथुरा. जिस व्यक्ति ने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु अटल है. मनुष्य के मरने के उपरांत तेहरवीं तक अलग-अलग क्रियाएं की जाती हैं. इसका महत्त्व गरुड़ पुराण में बताया गया है. गरुड़ पुराण में यहां तक बताया गया है कि अगर मृतक की तेहरवीं न कराई जाए तो उसे किस योनी में भटकना पड़ता है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार मृत्यु के 13 दिन बाद तक शोक मनाया जाता है. तेरह दिन की इस अवधि को ही तेरहवीं के नाम से जाना जाता है. तेरहवें दिन ब्राह्मण को भोज कराने के बाद मृतक की आत्मा को शांति मिलती है. ऐसी मान्यता है कि तेरहवीं के बाद ही मृतक की आत्मा को भगवान के धाम में स्थान मिलता है.

पिंड दान के फायदे

गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद 13 दिन तक मृतक की आत्मा का घर में ही वास होता है. गरुड़ पुराण में तो यहां तक कहा गया है कि यदि मृतक की तेरहवीं न कराई जाए तो उसकी आत्मा पिशाच योनी में भटकती रहती है. 13 दिनों तक मृतक के संस्कार से जुड़ी सभी आवश्यक रीतियां निभाई जाती हैं. ऐसी मान्यता है कि आत्मा अपने परिवार वालों की ओर से किए जाने वाले कामों को ध्यान से देखती है. 13वें दिन ब्राह्मण भोज कराया जाता है और पिंडदान होता है. पिंड दान से आत्मा को बल मिलता है और वह मृत्युलोक से यमलोक तक की यात्रा संपन्न करती है.

हर क्रिया का अपना महत्त्व

Bharat.one से बातचीत में पंडित अजय कांत शास्त्री कहते हैं कि व्यक्ति की मृत्यु के उपरांत कई तरह के आयोजन किए जाते हैं. इन आयोजनों में अलग-अलग क्रियाएं की जाती हैं. हर क्रिया का अपना एक अलग महत्त्व है. पंडित अजयकांत शास्त्री के अनुसार, तेहरवीं एक महत्त्वपूर्ण क्रिया होती है, जिससे व्यक्ति को मोक्ष मिलता है. तेहरवीं की क्रिया अगर न कराई जाए तो व्यक्ति की आत्मा भटकती रहती है. वो किसी भी योनी में नहीं जाती. तेहरवीं का दिन मृतक के लिए अच्छा होता है. उसे घर के लोभ से मुक्ति मिल जाती है और उसकी आत्मा प्रभु के धाम में चली जाती है.

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