Home Dharma त‍िरुपत‍ि के लड्डू छोड़िए… आप घर के पराठों में लगा-लगा तो नहीं...

त‍िरुपत‍ि के लड्डू छोड़िए… आप घर के पराठों में लगा-लगा तो नहीं खा रहे ‘सस्‍ता घी’, उसमें भी हो सकती है पशु चर्बी?

0


तिरुपति बालाजी के लड्डू प्रसादम विवाद के बाद सभी के मन में ये सवाल उठने लगा है कि बाजार में मिल रहा घी कितना शुद्ध है. बालाजी का प्रसादम बनाने में जानवरों की चर्बी वाला घी इस्तेमाल करने की लैबोरेटरी से पुष्टि हुई है. घी सप्लाई करने वाली एक कंपनी ने ये भी कह दिया है कि उस समय की वाईएसआर सरकार उनसे सस्ती कीमत वाला घी खरीद रहा था. तो अब ये सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सस्ती कीमत वाले घी में जानवरों की चर्बी होती है. इसी लिहाज से मन में ये शक भी घुमड़ने लगता है कि क्या घरों के लिए कम कीमत में खरीदे जाने वाले घी में भी सचमुच एनिमल फैट है.

इस सावल को कायदे से समझने से पहले ये जान लेना होगा कि गाय या कोई भी जानवर जो दूध देता है दरअसल वो उसकी ग्रंथियों का स्राव होता है. वैज्ञानिक तौर पर समझा जाय तो निश्चित तौर पर दूध में उसकी वसा ( वसा को अंग्रेजी में फैट कहा जाता है) रहती ही है. लेकिन दूध को हम धार्मिक आस्था के मुताबित पवित्र मानते हैं. इससे बने दूसरे उत्पाद भी उतने ही पवित्र होते हैं. जब तक इसमें बाहर से कोई फैट न मिलाया जाय तब तक ये इतना पवित्र माना जाता है कि इसका प्रयोग कोई भी शाकाहारी, व्रत जैसी पवित्र स्थिति में भी करता है. लिहाजा दूध में फैट होने से इसकी पवित्रता पर भारतीय संदर्भ मे कोई संदेह नहीं है.

घी कैसे बनाते हैं?
अब रही दूध से निकलने वाले घी की बात. तो दूध से घी निकालने की पारंपरिक विधि ये रही है कि हम दूध को उबालते हैं. या गांवों में उपलों की धीमी आंच पर बहुत देर तक पकाते हैं. फिर उसे निश्चित तापमान पर ला कर बहुत थोड़ा सा दही डाल कर पूरे को दही बनाते हैं. दही बनने में आठ से दस घंटे तक समय लग जाता है. समय को टेंपरेचर बैगरह घटा- बढ़ा कर कम किया जा सकता है. लेकिन अभी दूध से घी नहीं बना. घी बनाने के लिए दही को देर तक बिलोया यानी मथा जाता है. बहुत अधिक फेंटने और थोड़ा पानी डालने पर इसमें की वसा एक साथ जमा हो जाती है. अब जो निकलता है उसे क्रीम कहा जाता है. यही वो नवनीत या मक्खन है, जो भगवान श्रीकृष्ण को बहुत पसंद आता था. अब भी इस सफेद मक्खन या नैंनू (लैंनू) को हरियाणा के मुरथल वाले पराठे के साथ परोसने का दावा करते हैं. जिसे खाने बड़ी संख्या में लोग जाते हैं. मक्खन को गर्म करके उससे घी निकाला जाता है. बिलोअन विधि से दही से निकाल कर घी बनाने का दावा करने वाले घी को 2.5 से 3 हजार रुपये प्रति किलोग्राम तक खुदरा में बेंचते हैं. कम से कम महानगरों में तो ये अमीर परिवारों में चलन में है. उनकी दलील है कि इस तरह के घी में दूध की लागत के साथ समय, श्रम और संसाधन बहुत अधिक लगता है.

कितने दूध से कितना घी ?
इस पूरी प्रक्रिया में एक किलोग्राम गाय का घी निकालने में 22 से 25 लीटर दूध की जरुरत पड़ सकती है. हो सकता है 22 लीटर में भी एक किलोग्राम घी निकल जाय. ये दूध में वसा की मात्रा पर निर्भर करता है. भैस के दूध में अधिक फैट होता है लिहाजा कम दूध की जरूरत पड़ेगी. जबकि गाय के दूध में कम होता है और उसके ज्यादा दूध की जरूरत पड़ती है. ये तो हो गया पारंपरिक तरीका से बना हुआ घी. अगर 25 लीटर दूध अगर एक किलोग्राम दूध में लगता है तो दूध की लागत 30 रुपये के हिसाब से एक किलोग्राम घी में 750 रुपये हो जाती है.

क्या है व्यावसायिक तरीका?
घी बनाने की एक और भी विधि है. इसी विधि से ज्यादातर डेयरी संस्थाएं घी बनाती है. मोटे तौर पर समझे तो इसमें सीधे दूध से मक्खन निकाल लिया जाता है. फिर उसे गर्म करके उसमें से घी निकाल लिया जाता है. और भी कुछ थोड़ी प्रक्रियाएं करनी होती हैं. लेकिन उस बारीकी में जाने की जरूरत नहीं है. इस विधि से अधिक दूध से कुछ अधिक घी निकलता है. इसके जानकारों के मुताबिक एक किलोग्राम घी निकालने में 10 से 12 लीटर दूध की जरुरत होती है. ये भी पूरी तरह शुद्ध घी होता है. हां, इसके और पारंपरिक विधि वाले घी के स्वाद में जरूर कुछ अंतर हो सकता है. लेकिन डॉक्टर दोनों को बिल्कुल एक सा ही मानते हैं. यहां भी अगर दूध की लागत 30 रुपये मानी जाय तो कम से कम 300 रुपये में एक किलोग्राम घी बनेगा.

वनस्पति से भी बनता है घी?
इसके अलावा घी बनाने के कुछ और भी तरीके हैं. मसलन अलग-अलग वनस्पति तेलों को लेकर उनमें जरूरी केमिकल प्रक्रिया से उन्हें घी जैसा बनाया जा सकता है. इसे वनस्पति घी कहा जाता है. लेकिन लोगों के दिमाग में एक ब्रांडनेम इस कदर चस्पा हुआ है कि बिना लिखे आप उसका नाम पढ़ सकते हैं. जी, हां ये डालडा ही है. जबकि बहुत सारे ब्रांड नेम से वनस्पति घी बाजार में उपलब्ध हैं. इस घी पर साफ साफ लिखना होता है कि ये वनस्पति से बना घी है. और भी इसके कंपोजिसन की जानकारी पैकेट या डब्बे पर लिखनी होती है.

तेल और घी एक जैसे क्यों?
तेल और घी दोनों को मोटे तौर पर फैट कह दिया जाय तो गलत नहीं होगा. यही वजह है कि डॉक्टर जब किसी को परहेज बताते हैं तो दोनों मना करते हैं. कोई अगर डाइबिटिज का मरीज डाइटिसियन के पास जाय तो वे उससे ये नहीं पूछते कि मरीज कितना घी और कितना तेल खाता है. वे दोनों की मात्रा जोड़ कर ही देखते और आंकते हैं. वजह ये है कि दोनो फैट ही हैं. इस लिहाज से एनिमल फैट यानी जानवरों के फैट से भी घी बनाया जा सकता है.

किन जानवरों के फैट से घी बन सकता है?
घी बनाने के लिए सबसे मुफीद गाय-बैल या भैस-भैसे का फैट होता है. इसकी भी एक वजह है. बकरे का तमाम फैट बकरा खाने वाले मांस के साथ ही डकार लेते हैं. लिहाजा बचे ये बड़े जानवर. इनमें बड़ी मात्रा में फैट निकलता भी है. इनके फैट को प्रॉसेस करके बडे आराम से घी बनाया जा सकता है. बाजार में ऐसे सुंगधित एसेंस मौजूद हैं जो किसी भी तरह की खुशबू इसमें मिला सकते हैं.

सूअर की चर्बी से भी घी बनता है क्या?
एक सवाल और आता है कि क्या सूअर की चर्बी से भी घी बनाया जाता है. तो इसका जवाब है -हां, लेकिन ये महंगा पड़ जाता है. एक तो बडे़ जानवरों की तुलना में सूअर के आकार के कारण उसकी चर्बी कम होती है. कई सूअर मिल कर किसी एक भैस के बराबर चर्बी देंगे. दूसरी बात ये कि इसमें एक तरह की गंध होती है जो ज्यादातर लोगों को ठीक नहीं लगेगी. इस कारण से इससे बने घी में से गंध निकालना जरूरी होता है. इससे लागत बहुत बढ़ जाती है.

फिर मछली की चर्बी ?
फिर से वही बात. मछली की चर्बी बहुत सस्ती होती है. लेकिन ये मछली वो नहीं है जो पास के बाजार में बिकती है. ये चर्बी समुद्री मछलियों की होती है. बड़े आकार वाली बहुत सारी मछलियां ऐसी हैं जिनके शरीर में बहुत सारी चर्बी होती है. वे सस्ते में मिल जाती हैं. लिहाजा बड़ी मात्रा में घी बनाने बेचने वाले इसी का इस्तेमाल करते हैं. मछली के तेल को प्रॉसेस के जरिए गोलियों में भर कर भी बेचा जाता है जो बहुत सारे रोगों में लाभकारी होती है. इसका मतलब ये नहीं है कि उसे घी में भी मिलाने की वकालात इस आधार पर की जाय.

ये भी पढें: जिम्मेदार जो भी हो… बालाजी के प्रसाद में एनिमल फैट की मिलावट श्रद्धालुओं के लिए गंभीर झटका, कानूनी कार्रवाई जरूरी

तो क्या हमेशा सस्ते घी में चर्बी ही होती है?
आप भी बाजार में अलग-अलग कीमतों का घी खरीदते होंगे. बहुत से लोग पूजा का घी, खाने ने घी की तुलना में आधी कीमत पर खरीदते हैं. ऐसा होने का मतलब ये नहीं है कि सारे सस्ते घी में चर्बी ही हो. चर्बी से मुनाफा बहुत बढ़ाया जा सकता है, लेकिन वनस्पति घी की मिलावट से भी घी सस्ता रखा जा सकता है. चर्बी की मिलावट से होने वाले मुनाफे की लालच में ही घी बनाने वाले चर्बी का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन ये कानूनी नहीं है. ऐसा घी बनाने वाले अगर लाइसेंसिंग अथारिटी से अनुमति लेते बनाते हैं तो उन्हें डिब्बे पर ये जानकारी देनी होगी. साथ में नानवेज दिखाने वाली लाल रंग की बिंदी भी डब्बे पर लगानी पड़ेगी.

भारत में रोजाना कितना दूध पैदा होता है?
अब सवाल ये उठता है कि अपने देश में कितना दूध पैदा होता है. क्योंकि आम घरों में दूध से बना घी खाने की ही रिवायत है. तो बावजूद इसके के शहरी आबादी बढ़ने के साथ ही गाय भैंस का पालन घटता दिख रहा है लेकिन दूध का उत्पादन लगातार बढ़ा है. इसकी बड़ी वजह बडे पैमाने पर डेयरी फार्मों का खुलना भी हो सकता है. बेसिक एनिमल हसबैंड्री के आंकड़ों के मुताबिक साल 2022-23 में 23 करोड़ टन दूध पैदा होता है. ये उत्पादन 1990-91 में 5.53 करोड़ टन था. उस समय देश में रोजाना देश के हर व्यक्ति को 178 ग्राम दूध मिल सकता था जबकि 2022-23 में ये बढ़ कर 459 ग्राम हो गया. यानि दूध का उत्पादन बढ़ा है.

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version