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दिल्ली के चित्रगुप्त मंदिर, ट्रिनिटी चर्च, घंटेश्वर मंदिर और सेंट जॉन्स चर्च में उर्दू का ऐतिहासिक प्रभाव दिखता है, जो धार्मिक स्थलों की विविधता और सांस्कृतिक मेल को दर्शाता है.
दिल्ली में कई वर्षों तक उर्दू का एक गहरा प्रभाव रहा है और वही प्रभाव हमें दिल्ली के आर्किटेक्चर पर भी देखने को मिलता है. चाहे फिर वह धार्मिक स्थलों का आर्किटेक्चर ही क्यों ना हो. इस मंदिर का नाम चित्रगुप्त मंदिर है, जो की पुरानी दिल्ली के रोशनपुरा की नई सड़क पर करीबन 95 साल पुराना है. इस मंदिर के अंदर आप उर्दू लिखी हुई पाएंगे, कई उर्दू के शेर भी इस मंदिर की दीवारों के ऊपर लिखे गए हैं. वहीं, इस मंदिर के इतिहास के बारे में भी आपको इस मंदिर में उर्दू में लिखा हुआ मिल जाएगा.
ट्रिनिटी चर्च, ऐतिहासिक तुर्कमैन गेट क्षेत्र में स्थित है. यह चर्च 1905 में यहां बनाई गई थी. इस चर्च में आज भी आपको इस चर्च की कई जगहों पर उर्दू लिखी हुई मिल जाएगी. वहीं, यहां पर आज भी उन पुरानी धार्मिक उर्दू में लिखी गई पुस्तकों को संभाल कर रखा गया है, जो कभी एक जमाने में यहां पर मिला करती थी.
यह मंदिर पुरानी दिल्ली कटरा नील में स्थित है, जिसे मूल रूप से विद्यापुरी के नाम से जाना जाता था. घंटेश्वर मंदिर को अत्यधिक पवित्र माना जाता है और इसका प्रवेश द्वार सफेद संगमरमर से बना है जिस पर दो बड़ी घंटियां लटकी हुई हैं. यह एक प्राचीन मंदिर है, जिसके बारे में यह भी कहा जाता है कि एक समय में इस मंदिर के दरवाजों पर इस मंदिर के इतिहास को उर्दू भाषा में भी लिखा हुआ लोग पढ़ते थे.
दिल्ली में सेंट जॉन्स चर्च में अपने प्रवेश द्वार पर एक संगमरमर की पट्टिका पर एक उर्दू में लिखवाया है कि यह ‘मूकदास योहना का गिरजा’ है. यह अनोखा चर्च अपनी मुगल-प्रेरित वास्तुकला और अपनी छत पर एक शिखरा के लिए जाना जाता है. यह चर्च कुतुब मीनार और योगमाया मंदिर के पास है, और इसे 1928 में बनाया गया था.
दिल्ली के कनॉट प्लेस हनुमान मंदिर में कहीं भी उर्दू से कुछ नहीं लिखा गया है, पर इस मंदिर में बना हुआ इस्लामिक क्रिसेंट मून इस प्रचानी हनुमान मंदिर को बहुत दिलचस्प बनाता है, जिसमें सूर्य या ओम जैसे पारंपरिक हिंदू प्रतीक के बजाय एक अर्धचंद्राकार चंद्रमा है. हिंदू और इस्लामिक प्रतीकवाद का यह दुर्लभ मिश्रण मंदिर के लंबे और जटिल इतिहास के लिए एक वसीयतनामा है, जिसमें इसे महाभारत युग से जोड़ने वाली कहानियां और मुगलशासन काल से एक परोपकारी रिश्ता है.
इस मंदिर में कहीं भी कोई भी उर्दू की लिखावट नहीं है, लेकिन फिर भी यह मंदिर उर्दू मंदिर के रूप में जाना जाता है, जो दिल्ली के चांदनी चौक में श्री दिगंबर जैन लाल मंदिर के लिए दूसरा नाम है. इसे उर्दू मंदिर के रूप में जाना जाता था क्योंकि यह उर्दू बाज़ार में स्थित था. मंदिर की उत्पत्ति 1656 में एक तम्बू में एक साधारण संरचना के रूप में हुई थी और इसे मुगल सेना में जैन सैनिकों की आध्यात्मिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया था.
इतिहासकारों की मानें तो पुरानी दिल्ली के कई मंदिरों में उर्दू लिखावट से काफी कुछ लिखा गया था. उनके मुताबिक यह इसलिए था क्योंकि उसे समय उर्दू एक ऑफिशल लैंग्वेज मानी जाती थी. इतिहासकारों के मुताबिक पुरानी दिल्ली के दरीबा कल कटरा नील और अन्य के स्थान पर ऐसे मंदिर थे. जहां पर मंदिरों के अंदर दीवारों पर या फिर उनके मुख्य द्वारों के ऊपर उर्दू में लिखा हुआ था. हालांकि अब इनमें से कुछ गिने-चुने ही मंदिर रह गए हैं जहां पर आपको उर्दू देखने और पढ़ने को मिल जाएगी.