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दिल्ली की इस दरगाह पर 700 सालों से मनाई जा रही है बसंत पंचमी, देखें लेटेस्ट वीडियो

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Agency:NEWS18DELHI

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Hazrat Nizamuddin Auliya Dargah: कहा जाता है कि हजरत निजामुद्दीन की कोई संतान नहीं थी. उन्हें अपने भांजे से बेहद लगाव था, लेकिन किसी कारणवश उसकी मृत्यु हो गई. भांजे की मौत के बाद हजरत निजामुद्दीन सदमे में रहने …और पढ़ें

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सकल बन पर झूम उठे लोग, 700 सालों से ऐसे मनाई जा रही है निजामुद्दीन पर बसंत पंचमी

 दिल्ली: बसंत पंचमी का त्योहार हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन विद्या, वाणी, कला और संगीत की देवी सरस्वती प्रकट हुईं थीं. बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर उन्हें पीले रंग के फूल और पीले रंग का भोग लगाया जाता है और इसके साथ ही शिक्षा सामग्री की भी पूजा की जाती है. मुस्लिम समुदाय के भी कई लोग हर साल बसंत पंचमी मनाते हैं. दिल्ली स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर हर साल बसंत पंचमी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. दरगाह पर हर समुदाय के बच्चे, बुजुर्ग, पुरुष, महिला और किन्नर सभी पीले रंग में रंगे नजर आते हैं.

700 से अधिक वर्षों से इस तरह हुई वसंत पंचमी की शुरुआत
कहा जाता है कि दरगाह पर ये त्योहार एक या दो साल नहीं, बल्कि पूरे 700 साल पहले से अब तक मनाया जा रहा है. कहा जाता है कि हजरत निजामुद्दीन की कोई संतान नहीं थी. उन्हें अपने भांजे से बेहद लगाव था, लेकिन किसी कारणवश उसकी मृत्यु हो गई. भांजे की मौत के बाद हजरत निजामुद्दीन सदमे में रहने लगे. हजरत निजामुद्दीन के शिष्य थे अमीर खुसरो. भांजे की मृत्यु से दुखी हजरत निजामुद्दीन के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए अमीर खुसरो ने उपाय खोजा. इसके लिए खुसरो ने एक बार बसंत पंचमी पर गांव में पीले रंग की साड़ी और सरसों के फूल लेकर गीत गाती हुई मंदिर जाने वाली महिलाओं से इसकी वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि ऐसा करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं. इसके बाद अमीर खुसरो बसंती चोला पहनकर सरसों के फूल लेकर ‘सकल बन फूल रही सरसों’ गीत गाते हुए हजरत निजामुद्दीन के सामने पहुंच गए. अमीर खुसरो को इस तरह देख हजरत निजामुद्दीन के चेहरे पर मुस्कान आ गई. तभी से यह पर्व अब तक मनाया जाता रहा है.

हर साल इस समय शुरू होता है समारोह
हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर बसंत पंचमी समारोह की शुरुआत अस्र की नमाज (दोपहर की नमाज) के बाद होती है. करीबन 4 – 4:30 बजे के आसपास यह समारोह शुरू हो जाता है जो फिर देर रात तक चलता है. कव्वाल और गायक भी यहां पर पहुंच के समारोह की शुरुआत करते हैं. वह कई तरह के भजन गाते हुए पूरे दरगाह में घूमते हैं जहां उन पर पीले फूलों की वर्षा भी होती है. यदि आपको भी यह नजारा देखना है तो आपको अगले साल तक का इंतजार करना पड़ेगा.

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