वैसे तो दुनिया में हर धर्म में उपवास और व्रत की परंपरा है लेकिन एक व्रत या उपवास ऐसा है कि उसको दुनिया में सबसे मुश्किल मानते हैं, इसमें लंबे समय तक कोई खाना पीना नहीं करते हैं
ये व्रत को संथारा या सल्लेखना कहा जाता है. ये जैन धर्म से ताल्लुक रखता है. जैन धर्म में साधु और साध्वी बहुत सादगी वाला जीवन जीते हैं. उनकी जीवनशैली ऐसी है कि वही बहुत कठिन लगती है. वो हमेशा जमीन पर सोते हैं. नंगे पैर चलते हैं. खाने में थाली और कटोरी का इस्तेमाल कभी नहीं करते. उनका हाथ ही उनका पात्र है, जिससे वो खाते और पानी पीते हैं. बाल जैसे ही बड़ा होता है, उसको नुचवा देते हैं. इसमें खून भी निकल आता है.
“संथारा” या “सल्लेखना” व्रत में साधु-साध्वियां या अनुयायी लगातार कई हफ्तों व महीनों तक भोजन और कभी-कभी पानी भी छोड़ देते हैं, केवल सूक्ष्म जल या केवल पानी पीते हैं. ऐसे व्रत में 68 दिन से लेकर 423 दिन तक के ऐतिहासिक उदाहरण हैं, जिसमें केवल पानी या कम पानी सेवन से ये व्रत रखा गया.
क्यों इसे सबसे कठिन व्रत मानते हैं
– एक तरह से इस व्रत को रखने की वजह ये मानी जाती है कि आप शरीर छोड़ने को स्वैच्छा से तैयार हैं और उसी वजह से ऐसा कठिन व्रत रख रहे हैं.

– इस व्रत को एक आध्यात्मिक प्रक्रिया मानते हैं. यानि शरीर अपना काम पूरा कर चुका है, तब इस व्रत में स्वेच्छा से भोजन पानी छोड़कर मृत्यु की ओर बढ़ते हैं. इस व्रत को मोक्ष की ओर कदम माना जाता है.
– इस प्रक्रिया में व्यक्ति धीरे-धीरे भोजन और फिर पानी का त्याग करता है. यह एक लंबी और दर्दनाक प्रक्रिया हो सकती है जहां शरीर क्रमिक रूप से कमजोर होता जाता है.
– इसमें केवल भूख-प्यास का ही नहीं, बल्कि शरीर में उठने वाले दर्द, पीड़ा और मोह-माया के बंधनों का भी सामना करना पड़ता है.
– यह केवल शारीरिक उपवास नहीं है. इसके लिए अत्यधिक आत्म-अनुशासन, विवेक, और आध्यात्मिक शक्ति की जरूरत होती है.
– व्यक्ति को मृत्यु के भय पर विजय पानी होती है और सभी प्रकार के कष्टों को सहर्ष सहने की तैयारी करनी होती है।
– इस पूरे व्रत के दौरान ध्यान, प्रार्थना, और आत्म-चिंतन जारी रहता है.
– व्यक्ति को न केवल भोजन बल्कि दुनिया की सभी सांसारिक इच्छाओं और मोह-माया को छोड़ना होता है.
क्या इससे भी कठिन कोई व्रत है?
– जैन परंपरा में सल्लेखना को अंतिम और सर्वोच्च तपस्या माना गया है. यह जीवन की अंतिम साधना है.
– अगर “कठिन” का अर्थ “शारीरिक कष्ट” या “लंबी अवधि” से लिया जाए, तो अन्य परंपराओं में भी ऐसे कठोर साधनाएं हैं जिनकी तुलना की जा सकती है.
– कुछ योगी महासमाधि लेते हैं, जहां वे ध्यान की एकाग्र अवस्था में शरीर का त्याग कर देते हैं. यह भी एक प्रकार का स्वैच्छिक मृत्यु-व्रत है.
तिब्बती योगियों का तुकदम व्रत, जिसमें बैठे बैठे वो मृत्यु तक जाते हैं लेकिन मृत्यु के बाद भी ध्यान अवस्था में बैठे रहते हैं
– तिब्बती बौद्ध धर्म में तुकदम में एक योगी मृत्यु के बाद भी ध्यानमग्न अवस्था में रहता है. उसका शरीर तुरंत विघटित नहीं होता. यह मृत्यु पर अद्भुत नियंत्रण दिखाता है.
– विभिन्न परंपराओं में खड़े रहकर तप करना, हिमालय में नग्न रहकर तपस्या या मौन व्रत जैसी कठिन साधनाएं भी हैं.
ये भी हैं दुनिया के कठिन व्रत
– हिंदू धर्म में “निर्जला एकादशी” व्रत बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें भोजन और जल दोनों के बगैर दिनभर रहना होता है.
– ईसाई धर्म में शुरुआती परंपराओं के अनुसार ब्लैक फास्ट में दिनभर कोई भोजन व पानी नहीं लिया जाता. सूर्यास्त के बाद केवल एक शाकाहारी भोजन मिलता है.खासतौर पर कॉप्टिक ऑर्थोडॉक्स चर्च के लोग इसका पालन सख्ती से करते हैं.
– यहूदी धर्म का “योम किप्पुर” उपवास में 25 घंटे तक कोई भोजन या पानी नहीं लिया जाता और यह सभी वयस्कों के लिए जरूरी होता है.
– इस्लाम में रमजान बहुत कठिन है, खास तौर पर उत्तरी देशों में जहां दिन की अवधि 20-21 घंटे तक हो सकती है, जिसमें खाना और पानी दोनों वर्जित रहते हैं.
किस देश के लोग रखते हैं सबसे ज्यादा व्रत
दुनिया में सबसे ज्यादा व्रत रखने वाले और धार्मिक लोग भारत में पाए जाते हैं जबकि आस्था और धार्मिकता के प्रतिशत के हिसाब से भी इंडोनेशिया, मालदीव, सऊदी अरब, पाकिस्तान, और कई अफ्रीकी देशों के लोग भी बहुत धार्मिक माने जाते हैं. भारत में हिंदू धर्म, जैन धर्म, और अन्य धर्मों में पूरे साल अनेक व्रत और उपवास की परंपरा है – साप्ताहिक, मासिक, सालाना, व धार्मिक त्योहारों के समय पर.