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राजस्थान के इस मंदिर में प्रसाद की जगह चढ़ाते हैं कॉपी और पेन, भेट की जाती है चांदी की जीभ

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Agency:Bharat.one Rajasthan

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बसंत पंचमी पर मां सरस्वती का प्राकट्योत्सव मनाया‎ जाता है. इस दिन मंदिर में खास धार्मिक अनुष्ठान होते हैं. मां शारदा‎ को 7 क्विंटल पीली बूंदी का भोग‎ लगाया जाता है और गन्ने के रस से विशेष‎ अभिषेक किया जाएगा.

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अजारी का प्राचीन सरस्वती मंदिर

हाइलाइट्स

  • बसंत पंचमी पर सरस्वती मंदिर में विशेष पूजा होती है.
  • विद्यार्थी मिठाई की जगह कॉपी और पेन चढ़ाते हैं.
  • मन्नत पूरी होने पर भक्त चांदी की जीभ चढ़ाते हैं.

सिरोही. बसंत पंचमी पर विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. राजस्थान में एक सरस्वती मंदिर ऐसा है, जहां भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर चांदी की जीभ चढ़ाते हैं. स्कूल कॉलेज के विद्यार्थी भी यहां प्रसाद के रूप में कोई मिठाई नहीं बल्कि कॉपी और पेन चढ़ाते हैं.

सिरोही जिले के पिंडवाड़ा शहर से करीब 5 किलोमीटर दूरी पर अजारी गांव के मार्कंडेश्वरधाम स्थित सैकडों वर्ष पुराना सरस्वती मन्दिर भक्तों की आस्था का केंद्र है. यहां जिले के अलावा अन्य जिलों और राज्यों से भी भक्त दर्शन करने आते हैं. मां सरस्वती का एक ऐसा ही मंदिर है, जिसके दर्शन के लिए काफी दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं और माता के दर्शन करते हैं. मंदिर का जीर्णोद्धार 628 ईस्वी‎ में बसंतगढ़ के तत्कालीन राजा‎ ब्रह्मदत्त चावड़ा ने करवाया था. वैसे तो‎ साल भर यहां विद्या उपासक पहुंचते हैं,‎ लेकिन बसंती पंचमी पर भक्तों का तांता‎ लगा रहता है.

मन्नत पूरी होने पर चढ़ाई जाती है चांदी की जीभ
मंदिर में भक्त पढ़ाई, सरकारी नौकरी के अलावा कई प्रकार की मन्नत लेकर आते हैं. यहां स्कूल कॉलेज या सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहे छात्र प्रसाद में मां सरस्वती को मिठाई की जगह कॉपी और पेन चढ़ाते हैं. मंदिर के बाहर ही दुकानों पर प्रसाद के लिए कॉपी पेन बिकती है. वहजन जिन बच्चों को बोलने में परेशानी होती है या फिर हकलाने या तुतलाने की समस्या होती है, तो वह यहां मन्नत लेकर आते हैं. ये मन्नत पूरी होने पर भक्त खास तौर से तैयार करवाई गई चांदी की जीभ चढ़ाते हैं.

कालिदास ने भी यहां की थी मां सरस्वती की आराधना
मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां महाकवि कालिदास ने भी मां सरस्वती की आराधना की थी. पुजारी मुकेश रावल ने बताया कि महाकवि कालिदास ने मां सरस्वती को ज्ञान अर्चन करने के लिए अपनी जीभ काट कर चढ़ा दी थी. मां ने कालिदास को दर्शन देकर आशीर्वाद दिया था. जिसके बाद कालिदास ने महाकवि के रूप में पहचान बनाई थी. ये स्थान सरस्वती नदी का उद्गम भी माना जाता है. पूरे साल यहां कई कवि, लेखक, अधिकारी और शिक्षाविद दर्शन करने आते और मां सरस्वती के दर्शन करते हैं.

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राजस्थान के इस मंदिर में प्रसाद की जगह चढ़ाते हैं कॉपी और पेन, ये है मन्याता

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