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Bhai Dooj significance in Mathura। भैया दूज पर मथुरा के विश्राम घाट का महत्त्व

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Mathura Vishram Ghat Story : भारत एक ऐसा देश है जहां हर पर्व के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा या आस्था जुड़ी होती है. भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित “भैया दूज” का त्योहार भी ऐसा ही एक पर्व है, जिसमें स्नेह, विश्वास और सुरक्षा की भावना झलकती है. इस खास दिन का एक और अनोखा पहलू है, जो इसे और भी खास बना देता है – वह है मथुरा के “विश्राम घाट” का महत्व. मथुरा, जो भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मानी जाती है, न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से खास है, बल्कि अपने घाटों और मंदिरों के कारण भी लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई है. इन्हीं घाटों में से एक है विश्राम घाट, जो भैया दूज के दिन खास तौर पर लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है. कहा जाता है कि इस दिन यहां यमुना में स्नान करने से मृत्यु के बाद यमराज के भय से मुक्ति मिलती है और आत्मा को शांति प्राप्त होती है. यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक गहरी मान्यता है जो हजारों वर्षों से चली आ रही है.

भगवान श्रीकृष्ण और विश्राम घाट की कथा
विश्राम घाट का नाम यूं ही नहीं पड़ा. यह वही स्थान है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध करने के बाद कुछ समय विश्राम किया था. कंस, जो श्रीकृष्ण की माता देवकी का भाई था, उसने अत्याचार की हर सीमा पार कर दी थी. श्रीकृष्ण ने जब उसका अंत किया, तब वे थक चुके थे और इसी घाट पर रुके. तभी से इस घाट को “विश्राम घाट” कहा जाने लगा. यह स्थान कृष्ण-लीला से जुड़ी कई घटनाओं का साक्षी रहा है, लेकिन भैया दूज के दिन इसकी एक अलग ही छवि देखने को मिलती है.
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यमराज और यमुना की कथा
भैया दूज की शुरुआत एक खास घटना से जुड़ी हुई है. पुरानी कथा के अनुसार, इस दिन यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे. बहन यमुना ने उन्हें स्नेह से भोजन कराया और उनके सुख-स्वास्थ्य की कामना की. इस पर प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना से कोई वर मांगने को कहा. यमुना ने अपने भाई से यह वचन मांगा कि जो भी भाई-बहन इस दिन यमुना नदी में स्नान करेंगे, उन्हें यमराज के भय से मुक्ति मिलेगी और मृत्यु के बाद उन्हें किसी प्रकार की पीड़ा नहीं झेलनी पड़ेगी. यमराज ने यह वरदान सहर्ष स्वीकार किया. तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि भैया दूज के दिन भाई-बहन मिलकर यमुना में स्नान करते हैं.

भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक
भैया दूज सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि उस रिश्ते की मिसाल है जिसमें एक भाई अपनी बहन की रक्षा करता है और बहन उसके लंबे जीवन की कामना करती है. मथुरा का विश्राम घाट इस रिश्ते को और भी मजबूत बनाने का स्थान बन चुका है. यहां हजारों भाई-बहन एक साथ स्नान करते हैं, पूजा करते हैं और एक-दूसरे की भलाई की कामना करते हैं.

पवित्र स्नान की परंपरा
हर साल भैया दूज पर लाखों श्रद्धालु विश्राम घाट पर एकत्र होते हैं. सुबह से ही लोग यमुना में डुबकी लगाने के लिए पहुंच जाते हैं. उनका विश्वास होता है कि यमुना में स्नान करने से पापों का नाश होता है और यमराज के प्रकोप से छुटकारा मिलता है. यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मिक शांति का अनुभव भी होता है.

यमराज और यमुना का मंदिर
विश्राम घाट पर स्थित प्राचीन मंदिर भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र होता है. यहां यमुना माता और यमराज दोनों के दर्शन किए जाते हैं. पहले स्नान, फिर पूजा और उसके बाद मंदिर में जाकर दर्शन करने की परंपरा है. यह पूरी प्रक्रिया एक आध्यात्मिक अनुभव का अहसास कराती है.

-भैया दूज पर मथुरा का विश्राम घाट केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करने वाला एक ऐसा स्थान है जो सदियों से आस्था और श्रद्धा का प्रतीक बना हुआ है. यहां आकर लोग सिर्फ एक पर्व नहीं मनाते, बल्कि अपने जीवन में शांति, सुरक्षा और स्नेह का संचार करते हैं.

यदि आपने कभी मथुरा का यह दृश्य नहीं देखा है, तो एक बार भैया दूज के दिन विश्राम घाट पर अवश्य जाएं. वहां की भीड़, आस्था, यमुना का पवित्र जल और भक्तों का विश्वास – ये सब मिलकर एक ऐसा माहौल बनाते हैं जिसे जीवन भर भुलाया नहीं जा सकता.

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