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dev diwali vrat katha in hindi | Why is Dev Deepawali celebrated | how lord shiva killed tripurasura on kartik purnima | देव दिवाली व्रत कथा

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Dev Diwali Vrat Katha: देव दिवाली कार्तिक पूर्णिमा को मनाते है. इस साल देव दिवाली 5 नवंबर बुधवार को है. देव दिवाली के अवसर पर भगवान शिव की पूजा करते हैं, गंगा स्नान करते हैं और शाम के समय में दीप जलाते हैं. देव दिवाली की कथा बेहद रोचक है. ​त्रिपुरासुर नामक राक्षस था, जिसका वध करना असंभव जैसा था. वह तीन राक्षसों से मिलकर बना था, कहने का अर्थ है कि वे 3 राक्षस थे, जिनको त्रिपुरासुर कहा जाता है. उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था कि उसे कोई भी व्यक्ति एक ही बाण से मार सकेगा, जब वे तीनों एक सीध में होंगे. भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कैसे किया? इसकी कथा बहुत ही रोचक है. आइए जानते हैं देव दिवाली की व्रत कथा.

देव दिवाली कथा

पौराणिक क​था के अनुसार, तारकासुर के 3 बेटे थे, जिनका नाम तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली था. इन तीनों ही राक्षसों को त्रिपुरासुर नाम से जाना जाता था. उन तीनों के पिता तारकासुर को भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय ने युद्ध में मार डाला था. उसे वरदान प्राप्त था कि वह ​शिव पुत्र के हाथों ही मारा जाएगा. तारकासुर के वध से उसके तीनों बेटे दुखी और बदले की भावना से भरे हुए थे.

उन तीनों तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने ब्रह्म देव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की. ब्रह्म देव प्रकट हुए तो इन तीनों ने उनसे अमरता का वरदान मांगा. इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है. ये वरदान नहीं दे सकते. कुछ और मांग लो.

इस पर तीनों भाइयों ने कहा कि जब वे तीनों एक सीध में हों, अभिजीत नक्षत्र हो और एक ही बाण से कोई तीनों को एक साथ मारे, तभी उनकी मृत्यु हो. ब्रह्म देव ने उनको यह वरदान दे दिया.

य​ह वरदान मिलने के बाद तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली यानि त्रिपुरासुर अत्यंत शक्तिशाली हो गया. उसके तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया. ​त्रिपुरासुर का अत्याचार हर दिन बढ़ने लगा. उसने देवताओं को भी नहीं छोड़ा. उनको भी प्रताड़ित करने लगा. तीनों लोकों में सभी त्राहिमाम करने लगे.

फिर देवी और देवता भगवान शिव की शरण में गए. उन्होंने त्रिपुरासुर के अत्याचार से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के वध का आश्वासन दिया.

कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने पृथ्वी को अपना रथ बनाया, सूर्य और चंद्रमा जिसके पहिए बने. भगवान विष्णु बाण बनें, मेरु पर्वत धनुष और वासुकी नाग उसकी डोरी बने. अभिजीत नक्षत्र में जब त्रिपुरासुर यानि तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली एक सीध में आए तो महादेव ने उस धनुष और बाण से उसका वध कर दिया. त्रिपुरासुर का वध करने की वजह से भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा गया.

तीनों लोकों को त्रिपुरासुर के अत्याचार से मुक्ति मिली. इसकी खुशी में सभी देवी और देवता शिव की नगरी काशी में गंगा में स्नान किया. शिव पूजा के बाद दीप जलाए. यही उत्सव देव दिवाली के नाम से प्रसिद्ध हुआ. मान्यताओं के अनुसार हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर सभी देवी और देवता दिवाली मनाने के लिए आते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं. आज भी हर साल काशी में गंगा के तट पर देव दिवाली मनाई जाती है.

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