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Gita Updesh: श्रीकृष्ण ने बताए हैं पाप के 3 द्वार, जो बनते हैं मनुष्य के विनाश का कारण, पढ़ें गीता का ये श्लोक

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श्रीमद्भगवत गीता में जीवन की हर एक परेशानी का हल मिलता है. गीता में श्री कृष्ण ने जिन बातों का उल्लेख किया है वे आज के जीवन में भी व्यक्ति को आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती हैं. साथ ही हर परेशानी का हल पाने और …और पढ़ें

श्रीकृष्ण ने बताए हैं पाप के 3 द्वार, जो बनते हैं मनुष्य के विनाश का कारण

Gita Updesh: भगवान श्रीकृष्ण ने बताये हैं पाप के तीन द्वार, जो बनते हैं मनुष्य के विनाश का कारण, पढ़ें गीता का ये श्लोक

हाइलाइट्स

  • गीता में पाप के तीन द्वार बताए गए हैं.
  • वासना, क्रोध और लोभ व्यक्ति के पतन का कारण बनते हैं.
  • श्रीकृष्ण ने इन तीनों को त्यागने की सलाह दी है.

Gita Updesh: श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण द्वार दिये गए उपदेशों का वर्णन है, जो कि उन्होंने अर्जुन को महाभारत के युद्ध के दौरान दिये थे. लेकिन गीता में दिए उपदेश जितने प्रासंगिक उस समय थे उतने ही आज के समय में भी हैं, जिनका अनुसरण करने वाले व्यक्ति को जीवन में कभी कठिनाईयां नहीं आती और कठिन से कठिन मार्ग भी सहजता से पूर्ण हो जाता है. इसके साथ ही उसे जीवन में हमेशा एक उचित मार्गदर्शन ही मिलता है.

गीता में व्यक्ति को जीवन की सभी दुविधाओं और समस्याओं का हल मिल जाता है. वहीं कुछ ऐसे आचरण व आदतें भी हैं जो कि मानव जीवन में होना लाजमी है, लेकिन कुछ आदतें हमें गलत मार्ग पर ले जाती हैं और हमारा पतन होने लगता है. ऐसी ही कुछ तीन आदतों के बारे में गीता के 16वें अध्याय के श्लोक 21 में मिलता है जिसमें श्रीकृष्ण ने पाप के तीन प्रमुख द्वारों के बारे में बताया है. इस श्लोक के माध्यम से उन्होंने मनुष्य को पतन की ओर ले जाने वाले तीन मुख्य आदतें बताई हैं. तो आइए जानते हैं कौन-कौन से हैं वो द्वार, जो कि व्यक्ति के पतन का कारण बनते हैं.

श्लोक-
त्रिविधं नकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।।

इस श्लोक के अर्थ के अनुसार तीन चीजें काम (वासना), क्रोध और लोभ व्यक्ति को नरक के द्वार तक ले जाती हैं. कैसे आइए जानते हैं-

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काम (वासना)
व्यक्ति के मन में काम (वासना) का प्रभाव होने पर उसकी आसक्तियां और वासनाएं बढ़ने लगती है जो कि उसके ज्ञान को ढ़क देती है और इसी के कारण व्यक्ति पाप आचरण करने को मजबूर हो जाता है.

क्रोध (गुस्सा)
क्रोध से मनुष्य के मन में भ्रम पैदा करता है, जो कि सबसे पहसे बुद्धि को नष्ट करता है. क्रोध के समय व्यक्ति का विवेक काम नहीं करता और वो हिंसा, अपशब्द और बुरे कर्मों की तरफ बढ़ने लगता है. यही मनुष्य के विनाश का कारण बनता है. इसलिए क्रोध करने के बजाय शांत मन रखना चाहिए.

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लोभ (लालच)
श्रीकृ्ष्ण कहते हैं कि जितना आपके पास है उसी में संतुष्ट रहें, क्योंकि व्यक्ति का लालच कभी समाप्त नहीं होता और फिर वह और पाने की लालसा में अधर्म का मार्ग चुन लेता है. व्यक्ति झूठ, छल-कपट, चोरी और अन्य अधार्मिक कर्म करने लगता है. फिर यही कारण उसके पतन का बनता है और उसे विनाश की तरफ ले जाता है.

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