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राजस्थान के पाली और जोधपुर में भी निकली इन झांकियों ने लोगों को काफी आकर्षित किया. साथ ही पुष्पा से लेकर भगवान शिव और अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर की तरह ही हूबहू जो झांकी निकली, वह सबसे आकर्षण का केन्द्र…और पढ़ें
झूलेलाल देव की निकली विशेष झांकियां
हाइलाइट्स
- पाली और जोधपुर में धूमधाम से मनाया गया चेटीचंड पर्व.
- भगवान झूलेलाल के जन्मदिवस पर निकली आकर्षक झांकियां.
- इस दिन से सिंधी समाज में नव वर्ष की शुरुआत होती है.
पाली:- सिंधी समाज के ईष्ट देवता झूलेलाल भगवान के अवतरणा दिवस के रूप में मनाए जाने वाले चेटीचंड पर्व को लेकर समाज के लोगों में गजब का उत्साह देखा गया. राजस्थान भर में बात करें, तो समाज के लोगों द्वारा जिस तरह से आकर्षक झांकिया निकाली गई, वह देखते ही बन रही थी. राजस्थान के पाली और जोधपुर में भी निकली इन झांकियों ने लोगों को काफी आकर्षित किया. साथ ही पुष्पा से लेकर भगवान शिव और अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर की तरह ही हूबहू जो झांकी निकली, वह सबसे आकर्षण का केन्द्र रही.
भगवान झूलेलाल के जन्मदिवस के रूप में मनाए जाने वाले इस पर्व की बात करें, तो इसके पीछे की एक कहानी है, जिसको लेकर इस पर्व को सिंधी समाज बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं. साथ ही इस दिन के बाद नव वर्ष की शुरूआत भी हो जाती है. आइए आपको भी समझाते हैं कि इस पर्व का महत्व क्या है.
इस तरह अवतरित हुए थे भगवान झुलेलाल
सिंधी समाज के प्रमुख लक्ष्मण खेतानी ने Bharat.one से खास बातचीत करते हुए कहा कि सिंधी समाज के ईष्ट देव झूलेलाल देव आज ही के दिन अवतरित हुए. इसलिए सभी समाज को साथ लेकर इस त्यौहार को हम मनाते है. हिंदू धर्म को बचाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा. जल और ज्योत की जो पूजा होती है, यह ज्योत दरिया में निकली थी.
वरूण देव ने राजा से कहा था कि अग्नी में जलने से ही तुम्हारी मौत होगी. अग्नी में जलने से अम्बा बाई निकली थी और उनको अम्बे माता का नाम दिया गया. आज हमारा सनातन धर्म बचा हुआ है, तो उनकी वजह से बचा. कृष्ण भगवान को 16 कलाएं मिली थी और इनको 18 कलाएं मिली थी. इसलिए इनके जन्मदिवस को धूमधाम के साथ मनाया जाता है.
कौन हैं भगवान झूलेलाल?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सिंध क्षेत्र में मिरखशाह नामक शासक के जबरन धर्म परिवर्तन का आदेश देने के बाद सिंधियों ने नदी देवता से प्रार्थना की और उनकी पूजा करने लगे. चालीस दिनों बाद नदी से एक देवता प्रकट हुए और लोगों को उनकी रक्षा का वचन दिया. फिर जल के देवता ने सिंधी लोगों की उस शासक से रक्षा की. जल देवता होने की वजह से ही भगवान झूलेलाल वरुण देव के अवतार माने जाते हैं. झूलेलाल जयंती के दिन सिंधी विधि-विधान से उनकी पूजा करते हैं.
इस परपंरा का इसलिए समाज कर रहा निर्वहन
बताया जाता है कि प्राचीन समय में सिंधी समाज के लोगों को कारोबार के लिए जलमार्ग से यात्रा करनी पड़ती थी. उनकी यात्रा सफल रहे, इसलिए सिंधी समाज के लोग जल देवता झूलेलाल से प्रार्थना करते थे. यही नहीं, यात्रा के सफल हो जाने के बाद सिंधी समाज के लोग जल देवता झूलेलाल के प्रति आभार जताते थे. सिंधी समाज आज भी इस पंरपरा का निर्वहन करता है. इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए सिंधी लोग चेटीचंड का त्योहार मनाते हैं.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.