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Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति के दिन क्यों खाई जाती है खिचड़ी, जानें इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

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ऋषिकेश: मकर संक्रांति का त्यौहार हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है. इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे उत्तरायण भी कहा जाता है. यह त्योहार पूरे भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. वहीं, उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी खाने की परंपरा है.

मकर संक्रांति पर क्यों खाई जाती है खिचड़ी

उत्तराखंड के ऋषिकेश के ग्रह स्थानम के ज्योतिष अखिलेश पांडेय ने कहा कि मकर संक्रांति भारत में हर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है. यह पर्व सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने की खुशी में मनाया जाता है. क्योंकि इस दिन से सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ने लगता है. यह बदलाव सर्दी के मौसम के कम होने और दिन के बढ़ने का संकेत देता है. वहीं, उत्तर भारत में मकर संक्रांति का खास महत्व है. इस दिन खिचड़ी बनाने और खाने की परंपरा है.

उन्होंने कहा कि खिचड़ी एक ऐसा व्यंजन है, जो दाल, चावल और सब्जियों से तैयार किया जाता है. इसे न केवल स्वादिष्ट बल्कि सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद माना जाता है. यह हल्का और पौष्टिक भोजन है, जिसे आसानी से पचाया जा सकता है. खिचड़ी खाने की परंपरा के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही कारण हैं. धार्मिक दृष्टि से इसे शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. वहीं, वैज्ञानिक रूप से ठंड के मौसम में हल्का और पौष्टिक भोजन शरीर को ऊर्जा और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है.

मकर संक्रांति पर तिल-गुड़ का महत्व 

मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ का भी विशेष महत्व है. तिल सर्दी से बचाव के लिए शरीर को गर्मी देता है. जबकि गुड़ पाचन शक्ति बढ़ाने और शरीर को ऊर्जा देने में मदद करता है. तिल-गुड़ का सेवन न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है. बल्कि इसे शुभ भी माना जाता है. इसे खाने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. मकर संक्रांति का एक और पहलू सामूहिकता और प्रेम है.

इस दिन लोग परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं. गंगा स्नान, पतंगबाजी और सांस्कृतिक कार्यक्रम इस पर्व को और भी खास बनाते हैं. मकर संक्रांति न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह मौसम, स्वास्थ्य और समाज को जोड़ने का संदेश भी देता है.

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