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Ghazipur News: गाजीपुर की दुर्गा पूजा में इस साल पांच पंडालों ने सबका दिल जीत लिया है. नखास की शिवगुफा जैसी बनावट, सकलेनाबाद की पलक झपकाती दुर्गा प्रतिमा, उत्तरौली का मंदिर-पंडाल, मिश्र बाजार का कोलकाता स्टाइल और महुआबाग की कपड़े की गोटों वाली रोशनी—हर जगह आस्था और कला का अद्भुत संगम दिख रहा है.
गाजीपुर शहर के चितनाथ घाट के पास नखास का पंडाल हमेशा से खास रहा है. कभी गुफाओं का रूप तो कभी दिव्य आकाशीय दृश्य—हर साल यहां का कॉन्सेप्ट बदलता है. इस बार पंडाल को शिव भगवान की गुफा जैसा रूप दिया गया है. अंदर सजी दुर्गा माता की प्रतिमा इतनी भावपूर्ण और विशाल है कि उनकी आंखों में शक्ति और ऊर्जा झलकती है. दर्शकों को लगता है जैसे साक्षात मां दुर्गा सामने खड़ी होकर आशीर्वाद दे रही हों.
सकलेनाबाद का पंडाल बंगाल की झलक देता है. इस बार की खासियत ने तो हर किसी को हैरान कर दिया. यहां दुर्गा मां की प्रतिमा की आंखें सचमुच पलक झपका रही थीं! इलेक्ट्रॉनिक तकनीक से बनी यह प्रतिमा आजमगढ़ से आई है. जब भक्तों ने गौर से देखा तो लगा जैसे मां जीवित होकर आशीर्वाद दे रही हों. यह अनुभव अविश्वसनीय और दिव्य था.
मिश्र बाजार का पंडाल ऊंचाई और डिज़ाइन से दर्शकों को खींचता है. यहां कपड़े से बना विशाल ढांचा है, लेकिन सबसे खास इसकी प्रतिमा है. दुर्गा मां की सफेद रंग की प्रतिमा बिल्कुल वैसी ही है जैसी कोलकाता की प्रसिद्ध दुर्गा पूजा में लगती है. इस बंगाली स्टाइल की मूर्ति देखकर लोगों को लगा मानो गाजीपुर में ही कोलकाता आ गया हो.
गाजीपुर शहर के उत्तरौली गांव का पंडाल अपनी ऊंचाई और भव्यता के लिए जाना जाता है. यहां कोई अस्थायी पंडाल नहीं, बल्कि पहले से मौजूद विशाल मंदिर ही दुर्गा पंडाल है. करीब 70 से 80 फीट ऊंचा यह मंदिर दूर से ही आस्था का दीपक बन जाता है. गांव से तीन किलोमीटर पहले से ही इसकी जगमगाहट दिखाई देती है, मानो पूरा इलाका रोशनी से सराबोर हो गया हो.
महुआबाग का पंडाल अपने यूनिक कॉन्सेप्ट के लिए प्रसिद्ध है. यहां पूरा ढांचा कपड़े की गोटों से बनाया गया है और उन पर लगी लाइट्स ऐसा एहसास देती हैं जैसे कपड़े ही जलकर रोशनी फैला रहे हों. दुर्गा मां की प्रतिमा में सभी हथियारों को बारीकी से दिखाया गया है, जो उनकी शक्ति और रियलिटी को और अधिक जीवंत बना देता है.