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Madhusudan Mukunda Das News: मधुसुदन मुकुंद दास जी को रांची का अमोघ महाराज कहा जाता है. वह आईआईटी और आईआईएम से पढ़कर करोड़ों की नौकरी छोड़कर कृष्ण भक्ति में रांची इस्कॉन मंदिर का नेतृत्व कर रहे हैं.
झारखंड की राजधानी रांची के कांके स्थित इस्कॉन रांची के प्रबंधक मधुसुदन मुकुंद दास जी हैं. जिन्हें रांची का अमोघ महाराज जी भी कहा जाता है. इन दोनों का जहां एक तरफ पर्सनालिटी बिल्कुल मैच होता है. अमोघ महाराज जी व मधुसुदन मुकुंद जी इन दोनों की पढ़ाई लिखाई भी बिल्कुल सेम है और दोनों ने आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्था से पढ़ाई करके फिर भक्ति मार्ग को चुना. मधुसुदन मुकुंद जी बताते हैं कि शुरू से ही कृष्ण भगवान की भक्ति में काफी आनंद आता था. समाज के प्रेशर की वजह से एग्जाम तो पास कर ली.
उनका मन हमेशा भक्ति में ही लगता है. जब भक्ति में आना चाहा, तो परिवार ने भी पूरा सपोर्ट किया और आज आलम ये है की पूरा शहर ही हमारी भक्ति में डूब गया है. हमने करोड़ का जॉब भी किया, लेकिन वह सुकून नहीं मिला जो सुकून कृष्ण के भक्ति में मिला.
दरअसल, बचपन से ही घर में बड़ा ही भक्ति वाला माहौल था. पिताजी, दादा सब कृष्ण भगवान के बहुत बड़े भक्त थे. उनका पूजा पाठ करते हुए मैं भी देखा था, लेकिन हमारे साथ क्लास के सहपाठी काफी परीक्षा निकाल रहे थे, तो तो मैंने सोचा चलो करियर बनाते हैं और मैंने भी एग्जाम दिया.
कृष्ण भगवान की कृपा रही कि मेरा आईआईटी भी निकला और उसके बाद मैंने आईआईएम से एमबीए किया. मल्टीनेशनल कंपनी में करोड़ों के पैकेज में जॉब किया, लेकिन काम के दौरान मन में विचार आता व ऐसा लगता कि एक दिन तो सब कुछ छोड़ कर जाना है. यहां क्या लेकर आए थे. फिर यह सब 9 से 5 के चक्कर में क्यों पड़े हुए हैं.
पैसा यह करोड़ यह दौलत सब कुछ यहीं रह जाना है. जिंदगी का परपज कृष्ण की भक्ति में लगाकर खुद को पहचाना और आत्मज्ञान को पार करना है. यह सारी चीज और यह सारे विचार मेरे मन को बार-बार कचोटते थे. जिस वजह से काम करना थोड़ा मुश्किल हो गया था. एक दिन निर्णय लिया कि ये सब नहीं करूंगा और सीधा भारत आकर इस्कॉन से जुड़ गया.
हालांकि, परिवार वाले थोड़ा आश्चर्य जरूर हुए. क्योंकि मैं काफी यंग था. ऐसे में इतना बड़ा डिसीजन भी था, लेकिन परिवार वालों ने बातों को समझा और सपोर्ट किया. आज मैं रांची के इस्कॉन का महाप्रबंथन की जिम्मेदारी संभाल रहा हूं. साथ ही पूरे शहर में कृष्ण भक्ति का प्रचार प्रसार करता हूं.
5 साल की उम्र से ही माला जप, सुबह 4:00 बजे उठ जाना, सुबह शाम प्रभु को भोग लगाना. यह सारे काम मैं करते आ रहा हूं, लेकिन एक बार मन में लगा कि शायद सुख जो है. वह भौतिक चीजों में होगा, तो करोड़ों कमा कर देख लिया. पर वह समझ गया कि कृष्ण की भक्ति के आगे करोड़ों भी कुछ नहीं है. उसके बाद सब कुछ त्याग दिया.
