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गरुड़ पुराण, शिव पुराण, काशी खंड आदि में वर्णन है कि काशी में मृत्यु होने से शिव स्वयं आत्मा को मोक्ष–मंत्र का उपदेश देते हैं. इसलिए काशी को मोक्षभूमि कहा गया है. यहां हजारों वर्षों से ऋषि–मुनि, योगी और तांत्रिकों ने साधना की. सदगुरु का काशी को लेकर एक बयान सोशल मीडिया पर काफी समय से वायरल चल रहा है. आइए जानते हैं सद्गुरु महाराज ने क्या कहा है…
भगवान शिव की नगरी काशी का महत्व वेद–पुराण, ज्योतिर्विज्ञान, शैव–शक्ति परंपरा तथा आध्यात्मिक सिद्धांतों में अत्यंत उच्च बताया गया है. यह स्थान केवल एक नगर नहीं, बल्कि ऊर्जा का द्वार और मोक्ष का क्षेत्र माना गया है. शिवपुराण में कहा गया है कि काशी भगवान शिव की प्रत्यक्ष भूमि है, ब्रह्माजी ने इसे बनाया नहीं, बल्कि शिवजी ने इसे धारण किया है. इसी कारण काशी को अविमुक्त क्षेत्र भी कहते हैं, जहां से शिव कभी अलग नहीं होते. काशी का महत्व बताते हुए सोशल मीडिया पर जग्गी वासुदेव (सद्गुरु) का एक वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो में सद्गुरु बता रहे हैं कि काशी धरती का हिस्सा नहीं है. आइए जानते वायरल वीडियो में सदगुरु काशी के बारे में क्या कह रहे हैं.
जब कुछ नहीं था तब काशी थी
सद्गुरु काशी का महत्व बताते हुए कहते हैं कि जब एथेंस की कल्पना भी नहीं की गई थी, तब भी काशी थी. जब रोम और इजिप्ट जैसे शहरों का कहीं कोई अस्तित्व नहीं था, तब भी काशी थी. यह एक साधन था, जो एक नगर के रूप में बनाया गया था और जो सूक्ष्म का विराट के साथ मेल कराता है. ये दिखाता है कि छोटा सा मनुष्य ऐसी अद्भुत संभावना रखता है कि वह ब्रह्मांडीय स्वभाव के साथ एक होने के आनंद, उल्लास और उसकी सुंदरता को जान सके. ज्योमेट्रिकली यह एक परफेक्ट उदाहरण है कि कॉसमॉस या मैक्रोकॉसम और माइक्रोकॉसम कैसे मिल सकते हैं. उन्होंने एक शहर के रूप में एक इंस्ट्रूमेंट बनाया.
ब्रह्मांडीय शरीर के साथ संपर्क
सद्गुरु ने कहा कि हमारे देश में कई ऐसे साधन हैं, पर एक पूरा शहर बनाने को तो एक पागल महत्वाकांक्षा ही कहा ही जाएगा और उन्होंने यह सपना 1000 साल पहले ही पूरा कर लिया था. काशी शहर में 72 हजार मंदिर थे और ये संख्या वही है जो हमारे शरीर में नाड़ियों की होती है. इस शहर की रचना एक विशाल मानव शरीर की अभिव्यक्ति है, जिसके जरिए ब्रह्मांडीय शरीर के साथ संपर्क किया जा सके.
भोलेनाथ के त्रिशूल पर बसी काशी
सद्गुरु वीडियो में आगे बता रहें हैं कि आपने बहुत से लोगों को कहते सुना होगा कि काशी भोलेनाथ के त्रिशूल पर बसी है, पृथ्वी पर नहीं. एक ऐसा शहर बनाना, जो पृथ्वी का होकर भी पृथ्वी का हिस्सा नहीं है और यह शहर ही पूरे ब्रह्मांड और उससे आगे की ऊर्जा का केंद्र है. यह शहर इसी तरह से बनाया गया है. काशी का एनर्जी स्ट्रक्चर जमीन पर नहीं बल्कि ऊपर है इसलिए कहा जाता है कि काशी पृथ्वी पर नहीं बल्कि भोलेनाथ के त्रिशूल पर बसी है. इस शहर को बनाने का मुख्य उद्देश्य ही यही था कि इंसान को परमात्मा की ऊर्जा से महसूस कराया जा सके. इसलिए कहा जाता है कि अगर आप काशी में चले जाते हैं तो फिर आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं.
Legend says, “Kashi is on Shiva’s Trishul, not on the ground.” In my experience, the energy structure of Kashi is about 33 feet above the ground, and it could extend up to 7200 feet. This is why they called Kashi a “Tower of Light” – it gave you access to what is beyond. The idea… pic.twitter.com/DHBq7ui0mZ
