Women Blow Shankh: शंख को हिंदू धर्म में बेहद पवित्र और शुभ माना जाता है. किसी भी पूजा, आरती, गृह प्रवेश, संकटनाशक अनुष्ठान या धार्मिक कार्यक्रम की शुरुआत शंखनाद के साथ होती है. ऐसा माना जाता है कि शंख की आवाज माहौल की नकारात्मक ऊर्जा को मिटाती है और आसपास एक पॉज़िटिव वाइब क्रिएट करती है. यही वजह है कि हर घर में पूजा के वक्त शंख बजाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है. शंख की ध्वनि सिर्फ धार्मिक मायनों में ही खास नहीं, बल्कि इसे ऊर्जा, साहस और विजय का प्रतीक माना गया है. महाभारत में भी युद्ध शुरू होने से पहले शंखनाद किया जाता था और इसे विजय का संकेत माना जाता था, लेकिन इस बीच एक सवाल अक्सर लोगों के मन में उठता है-क्या महिलाओं को शंख बजाने की मनाही है?-कई घरों में आज भी यह कहा जाता है कि महिलाएं शंख नहीं बजातीं, या उनके लिए ऐसा करना ठीक नहीं. कहीं इसे अंधविश्वास कहा जाता है तो कहीं इसे धार्मिक मान्यता बताकर सही ठहराया जाता है, लेकिन सच क्या है? क्या सच में शास्त्रों में महिलाओं के लिए इस पर कोई रोक बताई गई है, या यह सिर्फ एक पुरानी मान्यता भर है? आइए इस पूरे विषय को आसान भाषा में समझते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से और जानने की कोशिश करते हैं कि असलियत में बात क्या है-सच, मान्यता या फिर सिर्फ अंधविश्वास.
क्या शास्त्रों में महिलाओं को शंख बजाने की मनाही है?
अगर सीधे शास्त्रों की बात करें तो किसी भी धार्मिक ग्रंथ, वेद या शास्त्र में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है कि महिलाओं को शंख नहीं बजाना चाहिए.
ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद-किसी भी अध्याय में महिलाओं पर इस तरह की कोई रोक का जिक्र नहीं मिलता.
बल्कि शंख को भगवान विष्णु का प्रिय माना गया है और इसका इस्तेमाल हर शुभ काम में किया जाता है. इसलिए महिलाओं पर इसे लेकर प्रतिबंध बताना सिर्फ एक मान्यता-है, कोई शास्त्रीय नियम नहीं.
महिलाओं के शंख बजाने को लेकर चलने वाली मान्यताएं और मिथक
कई लोग यह कहते आए हैं कि महिलाओं के फेफड़े पुरुषों के मुकाबले कम मजबूत होते हैं, इसलिए उनके लिए शंख बजाना मुश्किल माना गया. पुराने समय में महिलाएं घर के कामों में व्यस्त रहती थीं और इस वजह से माना जाता था कि उनकी शारीरिक क्षमता कम होती है. धीरे-धीरे यह बात एक परंपरा-की तरह फैल गई कि महिलाएं शंख नहीं बजातीं, लेकिन असल में यह सिर्फ एक धारणा-है, हकीकत नहीं. आज भी कई राज्यों में महिलाएं मंदिरों और त्योहारों में बिना किसी रोक-टोक के नियमित शंख बजाती हैं. कोलकाता की दुर्गा पूजा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां महिलाएं बड़े गर्व के साथ शंखनाद करती हैं.
ज्योतिष की मानें तो क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
ज्योतिष और आयुर्वेद में कुछ अलग बातें सामने आती हैं.
ज्योतिषियों के अनुसार शंख बजाते समय पूरा जोर नाभि और उसके नीचे वाले हिस्से पर पड़ता है. कहा जाता है कि इसका प्रेशर महिलाओं के गर्भाशय पर असर डाल सकता है, इसलिए उन्हें अक्सर शंख बजाने से रोका जाता है.
इसी वजह से कुछ विद्वानों का मानना है कि महिलाओं को रोजाना शंख नहीं बजाना चाहिए, खासकर:
-अगर महिला गर्भवती है,
-या शारीरिक कमजोरी महसूस करती है.
हालांकि यह कोई धार्मिक मनाही नहीं है, बल्कि एक शारीरिक कारणों पर आधारित सलाह-है.
इतिहास क्या कहता है?
इतिहास में कई ऐसे प्रसंग मिलते हैं जहां महिलाओं ने शंख बजाया.
महाभारत में द्रोपदी द्वारा शंख बजाने का उल्लेख मिलता है.
जब भी किसी बड़े संकट या युद्ध जैसी स्थिति आई, तब महिलाओं ने भी शंखनाद किया है.
यानी इतिहास भी इस बात को गलत साबित करता है कि महिलाएं शंख नहीं बजा सकतीं.

क्या महिलाओं के लिए शंख बजाना शुभ है या नहीं?
अगर धार्मिक नजरिए से देखें तो इसमें किसी तरह का दोष नहीं बताया गया है.
अगर ज्योतिष की मानें तो रोजाना जोर लगाकर शंख बजाने से महिला के शरीर पर हल्का प्रेशर पड़ सकता है, लेकिन यह भी पूरी तरह व्यक्ति की सेहत पर निर्भर करता है.
कुल मिलाकर-शंख बजाना शुभ है या नहीं, यह पूरी तरह आपकी इच्छा और सुविधा पर निर्भर करता है.
निष्कर्ष -सच क्या है?
-शास्त्रों में कहीं भी मनाही नहीं है.
-मान्यता और मिथक ज़रूर हैं, पर यह धार्मिक आदेश नहीं.
-ज्योतिष में कुछ शारीरिक कारण बताए गए हैं, खासकर गर्भावस्था के लिए.
-आम दिनों में महिलाएं भी पुरुषों की तरह शंखनाद कर सकती हैं.
-यह पूरी तरह आपकी सुविधा, सेहत और इच्छा पर निर्भर करता है.