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राजस्थान की पारंपरिक बिना तेल की ग्वार फली की यह स्वादिष्ट सब्ज़ी सर्दियों में खासतौर पर बनाई जाती है. इसमें ग्वार की फली, लहसुन, साबुत लाल मिर्च, जीरा, नींबू और हरा धनिया जैसे देसी मसाले इस्तेमाल होते हैं. मसाले को मोटा पीसकर ग्वार की फली में मिलाया जाता है और हाथों से मिलाने पर हर फली में चटनी का स्वाद भर जाता है. खास बात है इसमें कोयले का धुआं डालकर सब्ज़ी को अनोखा देसी स्वाद और खुशबू दी जाती है
राजस्थानी व्यंजनों का जायका अपनी सादगी और देसी स्वाद के लिए न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है. यहां का खाना न केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी होता है. ऐसे ही पारंपरिक व्यंजनों में से एक है ग्वार की फली की बिना तेल वाली सब्जी, जो स्वाद और सेहत दोनों का मेल है. इस खास सब्जी की सबसे बड़ी बात यह है कि इसे बनाने में एक बूंद तेल का भी इस्तेमाल नहीं होता.
राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में यह सब्ज़ी खासतौर पर सर्दियों के मौसम में बनाई जाती है. हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. अंजू चौधरी ने बताया कि ग्वार की फली में फाइबर और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जिससे यह शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होती है. उन्होंने बताया कि बिना तेल के बनने के कारण यह पाचन के लिए भी हल्की रहती है. यही वजह है कि बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग तक हर कोई इसे बड़े चाव से खाता है.
गृहणी शारदा देवी ने बताया कि इस सब्ज़ी को बनाने के लिए बहुत ही साधारण, लेकिन सुगंधित देसी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है. इसके लिए ग्वार की फली, लहसुन की कलियां, साबुत लाल मिर्च, जीरा, नमक, नींबू, हरा धनिया और धुएं के लिए कोयला लिया जाता है. ये सारी चीज़ें आसानी से हर घर में मिल जाती हैं और इनके मेल से बनता है लाजवाब देसी स्वाद.
इसे बनाने के लिए सबसे पहले सिलबट्टे पर लहसुन, साबुत लाल मिर्च, जीरा, नमक, नींबू और हरा धनिया डालकर मोटा पीस लिया जाता है. इसे बहुत बारीक नहीं पीसा जाता ताकि इसका देसी टेक्सचर बना रहे, यह मसाला इस रेसिपी का मुख्य स्वाद देने वाला हिस्सा होता है, जो ग्वार की फली में जान डाल देता है.
इसके बाद ग्वार की फली को पानी में डालकर उबाला जाता है, जब यह नरम हो जाए, तो इसका साइड वाला छिलका हटा लिया जाता है. फिर हल्का नमक डालकर इसे तैयार किए गए मसाले के साथ अच्छे से मिलाया जाता है. इसे हाथों से मिलाने पर चटनी का स्वाद हर फली में बराबर तरीके से समा जाता है.
सबसे खास प्रक्रिया होती है इसमें कोयले का धुआं देना, उबली और मसालेदार ग्वार की फली के बीच में एक मिट्टी का छोटा दिया रखकर उसमें जलता हुआ कोयला रखा जाता है. जैसे ही कोयला धुआँ छोड़ता है, बर्तन को तुरंत ढक दिया जाता है. इससे सब्ज़ी में एक देसी धुआंधार खुशबू और अनोखा स्वाद भर जाता है.
करीब 15 मिनट बाद जब ढक्कन हटाया जाता है, तो तैयार होती है राजस्थान की पारंपरिक बिना तेल की ग्वार फली की स्वादिष्ट सब्ज़ी. इसे रोटी या बाजरे की रोटी के साथ परोसा जाए तो इसका स्वाद दोगुना बढ़ जाता है. इस देसी और हेल्दी रेसिपी को एक बार चखने के बाद कोई भी इसके स्वाद का दीवाना हो जाता है.
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