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Kuttu Ka Atta: नवरात्र में लोग व्रत रखते हैं और इस दौरान कुट्टू के आटे से बनी चीजें खाते हैं. मंगलवार को दिल्ली और मेरठ में कुट्टू का आटा खाने से काफी लोग बीमार हो गए. मिलावटी या एक्सपायर्ड कुट्टू का आटा खाने से फूड पॉइजनिंग हो सकती है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लोगों ने व्रत के दौरान कुट्टू के आटे से बनी चीजें खाई थीं. आशंका है कि आटे में मिलावट रही होगी, इसलिए वे फूड पॉइजनिंग के शिकार हो गए. यह पहला मामला नहीं है जब कुट्टू का आटा खाने से लोग बीमार हुए हैं. हर साल नवरात्र के समय इस तरह के मामले सामने आते रहे हैं. तो आखिर क्या है कुट्टू जिसके आटे को व्रत में चाव से खाते हैं लोग? लेकिन ये कभी-कभी खाने वाले के लिए जहरीला बन जाता है. कैसे बनता है कुट्टू का आटा, कहां होती है इसकी खेती, जानिए सब कुछ…
यह पहला मामला नहीं है जब कुट्टू का आटा खाने से लोग बीमार हुए हैं.
कुट्टू को अक्सर सुपरफूड कहा जाता है क्योंकि ये पौष्टिक तत्वों से भरपूर है. इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं. कुट्टू प्रोटीन का एक उत्कृष्ट स्रोत है. इसमें प्रति 100 ग्राम में लगभग 15 ग्राम प्रोटीन होता है. इसमें अच्छी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट और फाइबर भी पाए जाते हैं. यही कारण है कि इसे व्रत के दौरान भी इस्तेमाल किया जाता है, जहां इसकी पूड़ी और पकौड़ी बनाई जाती हैं. कुट्टू के आटे में अल्फा लाइनोलेनिक एसिड होता है, जो खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक माना जाता है. कुट्टू के आटे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, इसलिए यह डायबिटीज के रोगियों के लिए भी अच्छा माना जाता है. अमेरिकन जर्नल ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के अनुसार कुट्टू के आटे में अघुलनशील फाइबर भी मौजूद होता है, जो गॉलब्लैडर की पथरी के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है.
कुट्टू के आटे की शेल्फ लाइफ बहुत कम होती है. यह एक से डेढ़ महीने के भीतर खराब हो सकता है. एक्सपायरी के बाद इसका सेवन करने से फूड पॉइजनिंग की समस्या हो सकती है. कुट्टू के आटे में मिलावट की पहचान करने के दो आसान तरीके हैं. कुट्टू का असली आटा भूरे रंग का होता है. अगर इसमें गेहूं का आटा या कोई और चीज मिलाई जाती है, तो इसका रंग बदल जाता है. मिलावट होने पर आटा गूंथते समय बिखरने लगता है, जबकि शुद्ध आटा आसानी से गूंथ जाता है.
कुट्टू के पौधे का इतिहास
यह माना जाता है कि कुट्टू की खेती की शुरुआत लगभग 5,000-6,000 साल पहले दक्षिण पूर्व एशिया में हुई थी. वहां से यह मध्य एशिया, मध्य पूर्व और फिर यूरोप तक फैल गया. एक रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड में इसका उपयोग 5300 ईसा पूर्व से हो रहा है, जिसका लिखित प्रमाण मौजूद है. साइंस फैक्ट्स के अनुसार कुट्टू की उत्पत्ति का मुख्य स्थान चीन और साइबेरिया है. हालांकि, प्राचीन यूनान के कुछ क्षेत्रों में भी यह जंगली प्रजाति के रूप में पाया जाता था.
कुट्टू की खेती की शुरुआत लगभग 5,000-6,000 साल पहले दक्षिण पूर्व एशिया में हुई थी.
भारत में कुट्टू की खेती मुख्य रूप से 1,800 मीटर की ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है. यह जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और दक्षिण भारत के नीलगिरी क्षेत्रों में उगाया जाता है. इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में भी इसकी खेती होती है. कुट्टू की बुवाई रबी के मौसम में की जाती है और इसकी फसल केवल 30-35 दिनों में ही तैयार हो जाती है. जब फसल 80 फीसदी तक पक जाती है, तो उसे काट लिया जाता है. फिर उसे सुखाकर बीजों को अलग किया जाता है और इन्हीं बीजों को पीसकर आटा बनाया जाता है.
कहां होती है कुट्टू की सबसे ज्यादा पैदावार
दुनिया में कुट्टू के सबसे बड़े उत्पादक देशों में रूस, चीन और कजाकिस्तान शामिल हैं. अमेरिका इस सूची में चौथे स्थान पर आता है. इसके अलावा यूक्रेन और किर्गिस्तान जैसे देशों में भी बड़े पैमाने पर कुट्टू की खेती होती है और यह उनके नियमित खान-पान का हिस्सा है. दुनिया के कई हिस्सों में कुट्टू का उपयोग अलग-अलग तरह से होता है. जापान में कुट्टू के आटे से बने नूडल्स काफी प्रसिद्ध हैं. चीन में इसका उपयोग सिरका बनाने के लिए किया जाता है. अमेरिका और यूरोप में कुट्टू के आटे से बने केक और पैनकेक बहुत लोकप्रिय हैं.
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