एक सर्जन को ऑपरेशन के दौरान मरीज से कैंसर हुआ.सर्जन के हाथ पर लगे कट से ट्यूमर कोशिकाएं फैलीं.सर्जन का ट्यूमर हटा दिया गया और वह कैंसर मुक्त हो गया.
लंदन. एक सर्जन ने कैंसर मरीज का ऑपरेशन करते समय खुद को इस घातक बीमारी से संक्रमित कर लिया. माना जा रहा है कि यह अपनी तरह का पहला मामला है. सर्जरी कर रहे डॉक्टर ने गलती से अपने हाथ पर कट लगने के कारण मरीज के ट्यूमर सेल्स (कोशिकाओं) को अपने शरीर में “ट्रांसप्लांट” कर लिया. यह प्रक्रिया जर्मनी के 32 वर्षीय व्यक्ति पर की जा रही थी, जो एक दुर्लभ प्रकार के कैंसर से पीड़ित था और उसके पेट से ट्यूमर को हटाया जा रहा था.
सर्जन का हाथ उस समय कट गया जब वह सर्जरी के दौरान मरीज में ड्रेन लगाने की कोशिश कर रहे थे. घाव को तुरंत ही डिसइंफेक्ट और बैंडेज कर दिया गया था, लेकिन 53 वर्षीय डॉक्टर ने लगभग पांच महीने बाद अपनी मध्यमा उंगली (मिडिल फिंगर) के बेस पर एक कठोर 1.2 इंच का गांठ बनते देखा. हाथ के एक्सपर्ट से मिलने के बाद, इस गांठ की पहचान एक घातक ट्यूमर के रूप में हुई, जो उसी पूर्व मरीज के कैंसर के सामान था. इसके बाद डॉक्टरों ने निष्कर्ष निकाला कि सर्जन को कैंसर तब हुआ जब उनके मरीज की ट्यूमर कोशिकाएं उनके कटे हुए घाव में प्रवेश कर गईं.
मामले की रिपोर्ट के लेखकों ने इस स्थिति को असामान्य बताया क्योंकि आमतौर पर शरीर किसी भी बाहरी टिश्यू को ट्रेडिशनल ट्रांसप्लांट के दौरान एक्सेप्ट नहीं करता है, और यही उम्मीद डॉक्टर के मामले में भी की गई थी. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि सर्जन के शरीर में “इन-इफेक्टिव एंटीट्यूमर इम्यून रिस्पॉन्स” थी, जो ट्यूमर के डेवलपमेंट और ग्रोथ के आधार पर थी.
यह मामला, जिसे द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित किया गया था, मूल रूप से 1996 में रिपोर्ट किया गया था, लेकिन अब फिर से चर्चा में आ गया है. डॉक्टरों ने मरीज के दुर्लभ कैंसर, मैलिग्नेंट फाइब्रोस हिस्टियोसाइटोमा, के “गलती से प्रत्यारोपण” का उल्लेख किया – यह एक अत्यंत दुर्लभ कैंसर है, जिसके हर साल केवल 1,400 मामले ही सामने आते हैं.
मरीज की प्रारंभिक सर्जरी सफल रही थी, लेकिन प्रक्रिया के बाद जटिलताओं के कारण उनकी मृत्यु हो गई. इस बीच, डॉक्टर का ट्यूमर भी हटा दिया गया और माइक्रोस्कोप के तहत जांच की गई, जिससे पता चला कि यह भी मैलिग्नेंट फाइब्रोस हिस्टियोसाइटोमा ही था. जिस डॉक्टर ने कैंसर मरीज और डॉक्टर दोनों का इलाज किया, उन्होंने “यह सवाल उठाया कि क्या ट्यूमर एक-दूसरे से जुड़े थे” इससे पहले कि सैम्पल्स से पता चला कि वे “समान” थे, उनमें एक ही प्रकार के सेल्स थे.
अपनी रिपोर्ट में, लेखकों ने लिखा: “आमतौर पर, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में एलोजेनिक टिश्यू का ट्रांसप्लांटेशन एक रिस्पॉन्स इम्यून को प्रेरित करता है जो ट्रांसप्लांटेड टिश्यू को अस्वीकार करने की ओर ले जाता है. सर्जन के मामले में, ट्यूमर के आसपास के टिश्यू में एक तीव्र सूजन प्रतिक्रिया विकसित हुई, लेकिन ट्यूमर का आकार बढ़ गया, जिससे यह संकेत मिलता है कि एंटीट्यूमर इम्यून रिस्पॉन्स असरदार नहीं थी.” ट्यूमर हटाने के बाद सर्जन में कैंसर के वापस आने या फैलने के कोई संकेत नहीं थे.
FIRST PUBLISHED : January 4, 2025, 19:45 IST
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