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भारत में आयुर्वेद का महत्व प्राचीन काल से रहा है. आज हम जिस पौधे की बात कर रहे हैं, उसकी जड़ें मूली जैसी दिखती हैं, लेकिन इसके औषधीय गुण शरीर को कई रोगों से मुक्ति दिलाते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं शतावर की. जानिए इसके सेवन के फायदे और इसे उगाने का सही तरीका.
Bharat.one से बातचीत में मेडिकल कॉलेज सुल्तानपुर के चिकित्सक डॉक्टर संतोष कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि यदि भूख नहीं लग रही है, पाचन तंत्र गड़बड़ है या मानसिक तनाव है, तो सतावर का प्रयोग करना चाहिए. सतावर में कई ऐसे गुण पाए जाते हैं जो शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाए रखते हैं.
सतावर की जड़ों से पतली छिलके को हटाने पर सफेद, दुधिया और गद्देदार जड़ प्राप्त होती है. इसे सुखाकर पीसने के बाद सतावर का चूर्ण तैयार किया जाता है. इसका प्रतिदिन 2-3 ग्राम चूर्ण गर्म दूध के साथ लेने से गैस जैसी परेशानी भी नहीं होती.
पारंपरिक तौर पर सतावर का प्रयोग लंबे समय से होता आ रहा है. यह खासतौर पर उन महिलाओं के लिए फायदेमंद है जो स्तनपान कराती हैं, क्योंकि इसमें ऐसे गुण पाए जाते हैं जो दुग्ध उत्पादन बढ़ाने में मदद करते हैं. यह स्तन में दूध बढ़ाने के लिए कारगर साबित होता है.
सतावर में मौजूद सैपोनिन प्रतिरक्षा कोशिकाओं को सक्रिय करते हैं, जिससे शरीर की रोगाणुरोधी क्षमता और संक्रमण से लड़ने की शक्ति बढ़ती है. यह तनाव, चिंता और थकान को कम करके मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है. साथ ही, सतावर सोने की समस्या और मूड स्विंग्स को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकता है.
पुरुषों में सतावर वीर्य की गुणवत्ता और शक्ति बढ़ाने में मदद कर सकता है. इसके अलावा, यह एक प्राकृतिक मूत्रवर्धक भी है, जो मूत्र पथ के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है और गुर्दे की पथरी के जोखिम को कम करने में सहायक होता है. साथ ही, यह गैस्ट्रिक और पेप्टिक अल्सर के इलाज में भी मदद कर सकता है.
सतावर की खेती करने वाले किसान योगेश कुमार पांडेय Bharat.one से बताते हैं कि सतावर की खेती के लिए उचित तापमान 10 से 50 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए. खेती शुरू करने से पहले जुलाई-अगस्त में खेत की दो-तीन बार पहली जुताई कर लेनी चाहिए.
सतावर के पौधों की रोपाई से पहले कुछ जरूरी तैयारी करनी चाहिए. जैसे, प्रति एकड़ खेत में 10 टन गोबर की खाद मिलाना आवश्यक है. इसके बाद दूसरी जुताई नवंबर के शुरुआती दिनों में कर दी जाती है.
सतावर के पौधों को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती. पौधे लगाने के एक सप्ताह के भीतर हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए, जो उनके लिए पर्याप्त होती है. पौधों के बड़े होने के बाद दूसरी हल्की सिंचाई थोड़ी मात्रा में करनी चाहिए.
जोते गए खेत में 10 मीटर लंबी क्यारियां बनानी चाहिए और इसमें 4:2 के अनुपात में मिट्टी और गोबर की खाद मिलाकर डालनी चाहिए. प्रति एकड़ खेती के लिए पांच किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. अगस्त में ही क्यारियों में बीजों की बुआई कर देनी चाहिए.
आपको बता दें कि सतावर की खेती करने से धान और गेहूं की तुलना में किसानों को अच्छी कमाई हो सकती है, क्योंकि इसका दाम बाजार में 1000 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच सकता है. इसे आप ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी बेच सकते हैं.
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https://hindi.news18.com/photogallery/lifestyle/health-satavar-farming-reveals-farmers-earning-up-to-1000-rupees-per-kilo-shatavar-fayde-aur-ugane-ka-sahi-tarika-local18-ws-kl-9830735.html
