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उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में उगने वाला तिमूर अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है. यह ब्लड प्रेशर नियंत्रण, पाचन सुधार, दर्द निवारण और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है. स्थानीय लोग इसे मसाले और आयुर्वेदिक उपायों में इस्तेमाल करते हैं, जबकि कुमाऊं के कई गांवों में यह आर्थिक रूप से भी उपयोगी बन चुका है.
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मिलने वाला तिमूर का पौधा ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में काफी मददगार होता है. स्थानीय वैद्य इसकी छाल, कांटे और हल्के कटे लकड़ी से काढ़ा बनाकर हाई बीपी के मरीजों को देते हैं. यह रक्त प्रवाह को संतुलित रखने के साथ-साथ शरीर की ऊर्जा को स्थिर करता है. कुमाऊं के कई गांवों में आज भी लोग इसे औषधीय रूप में इस्तेमाल करते हैं.
बागेश्वर: तिमूर के छोटे-छोटे फलों की खुशबू और स्वाद झनझनाहट भरा होता है. पहाड़ों में लोग इसे मसाले के रूप में इस्तेमाल करते हैं, जो भोजन को स्वादिष्ट बनाने के साथ पाचन शक्ति भी बढ़ाता है. यह गैस, अपच और पेट दर्द जैसी समस्याओं में बेहद कारगर है. ग्रामीण क्षेत्रों में तिमूर को सुखाकर लंबे समय तक संरक्षित किया जाता है.
उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में तिमूर को दांत दर्द और सर्दी-जुकाम की दवा के रूप में जाना जाता है. इसकी छाल को उबालकर बनाए गए काढ़े से गरारे करने पर गले का दर्द और सूजन कम होती है. वहीं इसके फलों को चबाने से दांत दर्द और बदबू से राहत मिलती है. यह एक प्राकृतिक एंटीसेप्टिक की तरह काम करता है.
पहाड़ों में जब किसी को हल्का सिरदर्द या शरीर में थकान महसूस होती है, तो लोग तिमूर का एक दाना चबाना नहीं भूलते. इसकी तेज सुगंध और झनझनाहट दिमाग को तरोताजा करती है और रक्त संचार बढ़ाती है. यह प्राकृतिक रूप से दर्द निवारक गुणों से भरपूर है. स्थानीय लोग इसे प्राकृतिक एनर्जी बूस्टर मानते हैं.
ठंड के मौसम में पहाड़ों में तिमूर की छाल से विशेष काढ़ा तैयार किया जाता है. यह शरीर को भीतर से गर्म रखता है और सर्दी-जुकाम से बचाता है. बुजुर्ग बताते हैं कि जब दवाइयों की कमी होती थी, तब यही काढ़ा हर घर में स्वास्थ्य सुरक्षा का सबसे भरोसेमंद उपाय था. इसका सेवन सीमित मात्रा में ही किया जाता है.
आयुर्वेदिक ग्रंथों में तिमूर को त्रिदोष नाशक, यानी वात, पित्त और कफ को संतुलित करने वाला पौधा बताया गया है. इसका नियमित सेवन पाचन और रक्तचाप को नियंत्रित रखने में सहायक होता है. बागेश्वर के आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. ऐजल पटेल ने Bharat.one को बताया कि तिमूर का उपयोग शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी किया जा सकता है.
कुमाऊं क्षेत्र के जंगलों और पहाड़ियों में उगने वाला तिमूर अब आर्थिक रूप से भी उपयोगी साबित हो रहा है. कई गांवों में लोग इसके फल और छाल को सुखाकर स्थानीय मंडियों में बेचते हैं. यह घरेलू आयुर्वेदिक दवाओं और मसालों में इस्तेमाल होता है. पहाड़ी महिलाओं के लिए यह अतिरिक्त आमदनी का भी जरिया बन चुका है.
तिमूर औषधीय गुणों से भरपूर जरूर है, लेकिन इसे किसी भी बीमारी की नियमित दवा के रूप में नहीं लेना चाहिए. हाई बीपी या लो बीपी वाले मरीज इसे केवल डॉक्टर की सलाह से ही उपयोग करें. उचित मात्रा में लेने पर यह स्वास्थ्यवर्धक है, लेकिन अधिक मात्रा में सेवन नुकसानदायक भी हो सकता है.
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