सुधांशु रंजन पांडेय/ गाज़ीपुर: चार-पांच दिन की उदासी को डिप्रेशन नहीं कहा जा सकता. डिप्रेशन एक लॉन्ग टर्म मानसिक स्थिति है. जब किसी व्यक्ति पर बार-बार दबाव डाला जाता है, जैसे गार्जियन का बच्चों को आईएएस बनने के लिए मजबूर करना, तो यह चिंता को जन्म देता है, जो धीरे-धीरे डिप्रेशन में बदल सकता है. उदाहरण के तौर पर बच्चों को बार-बार यह दबाव देना कि तुम्हें आईएएस बनना है, तुमसे और बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. यह उनकी चिंता को बढ़ा सकता है, जो धीरे-धीरे डिप्रेशन में बदल सकता है. डिप्रेशन को कैसे दूर किया जाए. क्या है इसका इलाज. आइए जानते हैं एक्सपर्ट से.
चिंता शॉर्ट टर्म है, डिप्रेशन बीमारी है
सहजानंद कॉलेज गाज़ीपुर की मनोविज्ञान विशेषज्ञ प्रो. कंचन के अनुसार, चिंता कुछ दिनों तक रहती है, लेकिन अगर यह हफ्तों तक बनी रहती है, तो यह डिप्रेशन का संकेत हो सकता है. डिप्रेशन में व्यक्ति ज्यादा सोता है, क्योंकि वह अपनी चिंताओं को भूलना चाहता है. वहीं चिंता क्षणिक होती है और दो-तीन दिन में खत्म हो सकती है. उदाहरण के रूप में, किसी छात्र को परीक्षा में खराब प्रदर्शन के बाद कुछ दिनों तक चिंता होती है, लेकिन यह अगर लंबा चले, तो यह डिप्रेशन का रूप ले सकता है.
थेरेपी और समाधान: योग, मेडिटेशन और गहरी सांसों का जादू
प्रो. कंचन सिंह सलाह देती हैं कि रोज़ाना 10 मिनट का मेडिटेशन, योगा और उल्टी गिनती (रिवर्स काउंटिंग) दिमाग को शांत रख सकता है. गहरी सांस लेने से ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है. सर्दियों में डिप्रेशन के मामले बढ़ जाते हैं, जिसे ‘विंटर ब्लूज़’ कहा जाता है. इस दौरान फिजिकल एक्टिविटी कम होने से दिमाग में नकारात्मक विचार बढ़ते हैं. उदाहरण के तौर पर आजकल के युवा जो मोबाइल और इंटरनेट की लत में फंसे हुए हैं, वे अपनी शारीरिक गतिविधियों को कम कर देते हैं, जिससे वे डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. ऐसे में स्मार्टफोन की लत से छुटकारा पाने के लिए कुछ समय के लिए उसका इस्तेमाल कम करना फायदेमंद हो सकता है.
FIRST PUBLISHED : January 8, 2025, 13:52 IST
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