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Palhna Devi Temple in Azamgarh : ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से भी ये जगह अनूठे स्थलों का साक्षी रही है. यहां कई ऐसे धार्मिक स्थान हैं जो दूर-दराज के क्षेत्र के लिए भी आस्था का केंद्र हैं.
पल्हना देवी
हाइलाइट्स
- आजमगढ़ में स्थित है पल्हनेश्वरी माता का मंदिर.
- मंदिर में माता सती के शरीर का एक टुकड़ा गिरा था.
- नवरात्रि में यहां विशेष मेले का आयोजन होता है.
आजमगढ़. यूपी के इस शहर को ऋषियों की धरती कहा जाता है. ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से भी आजमगढ़ अनूठे स्थलों का साक्षी रहा है. इस जिले में कई ऐसे धार्मिक स्थान हैं जिनकी पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताओं के कारण ये स्थान दूर-दराज के क्षेत्र के लिए भी आस्था का केंद्र है. इन्हीं स्थलों में से एक है पल्हनेश्वरी माता का पल्हना देवी मंदिर. ये आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर है. ये मंदिर काफी प्राचीन है और दूर-दूर से भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर यहां आते हैं. मंदिर प्रांगण हमेशा भक्तों से भरा रहता है. यहां दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
पौराणिक मान्यताओं का इतिहास
आजमगढ़ के मेहनगर क्षेत्र में स्थित पल्हनेश्वरी माता का ये मंदिर जिसे पल्हना देवी के नाम से जाना जाता है, अत्यंत प्राचीन है. पुराणों के अनुसार, इस मंदिर की विशेष मान्यता है. मंदिर के पुजारी राधेश्याम मिश्रा बताते हैं कि जब राजा दक्ष ने यज्ञ में अपनी पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया, तो माता सती ने अपमानित महसूस करते हुए यज्ञ कुंड में अपने आप को भस्म कर लिया. इसके बाद भगवान शिव ने क्रोधित होकर माता सती के शरीर को उठाकर तीनों लोकों में भ्रमण किया. इस घटना से तीनों लोकों में अराजकता फैल गई, जिसे रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के चार टुकड़े कर दिए. इनमें से एक टुकड़ा आजमगढ़ के महानगर स्थित पल्हना में गिरा, जहां माता पल्हनेश्वरी देवी का ये मंदिर शक्तिपीठ के रूप में विराजमान है.
अश्वमेध यज्ञ का साक्षी
पाल्हमेश्वरी धाम का उल्लेख वेद, पुराण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है. पद्म पुराण के द्वितीय खंड के सातवें अध्याय में भी इस धाम का जिक्र है. रामचरितमानस के बालकांड में महर्षि विश्वामित्र ने भी माता की महिमा का वर्णन किया है. इसके अतिरिक्त, महाराजा सगर ने यहां अश्वमेध यज्ञ किया था. महाभारत के वन पर्व में वर्णित है कि जब पांडव वनवास में थे, तब नारद जी ने धर्मराज युधिष्ठिर को इस स्थान के बारे में बताया था और वे यहां आए थे.
भगवान बुद्ध के पड़े पैर
भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ यहां आए थे. पालि भाषा में लिखित ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है. ग्रंथ ‘भोजप्रबंध’ के अनुसार, राजा भोज ने यहां यज्ञ किया था. ये स्थल प्राचीन काल से ही धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण रहा है. मंदिर के पुजारी राधेश्याम मिश्र ने Bharat.one से कहते हैं कि मंदिर में सालभर भक्तों की भीड़ रहती है. नवरात्रि में यहां विशेष मेले का आयोजन किया जाता है, जिससे भक्तों की संख्या और भी बढ़ जाती है. ये मंदिर चार प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है, जहां दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
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