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Udaipur Sah-Bahu Temple: उदयपुर के निकट नागदा गांव में स्थित सास-बहू मंदिर सहस्त्रबाहु मंदिर के नाम से जाना जाता था. यह मंदिर 10वीं शताब्दी की गुर्जर-प्रतिहार स्थापत्य शैली का अनमोल नमूना है. यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित था, लेकिन स्थानीय कहानियों के कारण इसे सास-बहू मंदिर कहा जाता है. भव्य नक्काशी और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध, यह मंदिर आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है और पूजा की अनुमति नहीं है.
उदयपुर से करीब 22 किलोमीटर दूर नागदा गांव में स्थित सास-बहू मंदिर इतिहास, कला और संस्कृति का अद्भुत संगम है. बागेलों के दौर की राजधानी रहे इस क्षेत्र में स्थित यह मंदिर अपने अनूठे नाम और उत्कृष्ट स्थापत्य शैली के लिए जाना जाता है. हालांकि इस मंदिर में आज पूजा नहीं होती, फिर भी दूर-दराज से लोग इसकी भव्यता को देखने और इसके पीछे की रोचक कथाओं को जानने पहुंचते हैं.
सास-बहू मंदिर असल में सहस्त्रबाहु मंदिर के नाम से प्रसिद्ध था, जो भगवान विष्णु को समर्पित था. समय के साथ स्थानीय लोगों ने इसे सास-बहू मंदिर कहना शुरू कर दिया, क्योंकि मंदिर का एक भाग विशाल और दूसरा अपेक्षाकृत छोटा था. मान्यता के अनुसार एक सास और बहू की पूजा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए दो अलग-अलग मंदिर बनाए गए थे. धीरे-धीरे यह नाम ही आम हो गया.
वर्तमान में यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है. यहां आने वाले पर्यटक इसकी कलात्मक भव्यता को निहारते हैं और फोटो व वीडियोग्राफी करते हैं, लेकिन पूजा-पाठ की अनुमति नहीं है. मंदिर के चारों ओर हरे-भरे खेत, पहाड़ों की पृष्ठभूमि और शांत वातावरण इसे और भी आकर्षक बनाते हैं.
मंदिर की खास बात इसकी बारीक नक्काशी और स्थापत्य शैली है. मंदिर की दीवारों, स्तंभों और छतों पर सुंदर आकृतियां उकेरी गई हैं, जिनमें देवी-देवताओं, अप्सराओं और पौराणिक दृश्यों की झलक मिलती है.
गुर्जर-प्रतिहार शैली में निर्मित यह मंदिर 10वीं शताब्दी का माना जाता है और इसकी रचना में बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है.
यह मंदिर ना केवल स्थापत्य प्रेमियों बल्कि इतिहास और संस्कृति से जुड़ने की चाह रखने वाले पर्यटकों के लिए भी खास आकर्षण है. हर साल सैकड़ों पर्यटक उदयपुर भ्रमण के दौरान नागदा जाकर इस मंदिर को देखने पहुंचते है.
सास-बहू मंदिर उदयपुर के समीप स्थित एक अनमोल धरोहर है, जो यह साबित करता है कि पूजा के बिना भी श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र बना जा सकता है. यह मंदिर राजस्थानी संस्कृति, शिल्पकला और ऐतिहासिक गौरव का जीवंत प्रमाण है.
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