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हैदराबाद की वो कब्र, जहां मालिक के साथ दफन हुआ उसका जान लुटाने वाला घोड़ा – वफादारी की अनोखी मिसाल

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Hyderabad News : हैदराबाद में एक ऐसा मकबरा है जो इंसान का नहीं, बल्कि एक वफादार घोड़े का है. कहा जाता है कि अपने मालिक अब्दुल्ला बिन अबू बकर की मौत के बाद इस घोड़े ने भी खाना-पीना छोड़ दिया और टूटे दिल से अपनी जान दे दी. आज भी दोनों की कब्रें साथ-साथ हैं – इंसान और उसके वफादार साथी की अमर कहानी.

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यह कहानी है हैदराबाद के निजाम शासन काल और एक वफादार घोड़े की, जिसकी निष्ठा ने उसे इतिहास में अमर कर दिया. यह घोड़ा किसी आम व्यक्ति का नहीं, बल्कि पैगाह के अब्दुल्ला बिन अबू बकर का था. अब्दुल्ला बिन अबू बकर हैदराबाद रियासत के पैगाह वंश के एक प्रमुख सदस्य और सेनापति थे. पैगाह हैदराबाद के निजाम के सबसे शक्तिशाली और विश्वसनीय सामंतों में से एक थे. अब्दुल्ला बिन अबू बकर अपनी बहादुरी और निजाम के प्रति वफादारी के लिए जाने जाते थे.

जाहिद सरकार के अनुसार अब्दुल्ला बिन अबू बकर को उनके घोड़े से अत्यधिक लगाव था. यह घोड़ा केवल एक सवारी नहीं बल्कि युद्धक्षेत्र में उनका साथी था. कहा जाता है कि एक युद्ध या संघर्ष के दौरान अब्दुल्ला बिन अबू बकर की मृत्यु हो गई. जब उनके शव को उनके घर ले जाया जा रहा था तो उनका वफादार घोड़ा भी शोक मनाने वालों की कतार में शामिल हो गया. ऐसा माना जाता है कि अपने मालिक को मृत देखकर घोड़ा इतना दुखी हुआ कि उसने भी खाना-पीना छोड़ दिया और कुछ ही दिनों बार दिल टूटने के कारण उसकी भी मृत्यु हो गई.

एक अनोखी श्रद्धांजलि
अब्दुल्ला बिन अबू बकर के परिवार और प्रशंसकों ने इस घोड़े की अद्भुत वफादारी और भावनात्मक लगाव से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एक अनोखा फैसला किया. उन्होंने अपने स्वामी की कब्र के ठीक बगल में ही इस वफादार घोड़े को भी दफनाने और एक स्मारक बनाने का निर्णय लिया. यह एक ऐसा सम्मान था जो आमतौर पर केवल राजपरिवारों या बहुत ऊंचे दर्जे के लोगों के लिए ही सुरक्षित था. इस प्रकार कौसर बख्त तकिया कब्रिस्तान के पास अब्दुल्ला बिन अबू बकर की अपनी कब्र के समीप ही, इस घोड़े के लिए एक अलग मकबरा बनाया गया. इस मकबरे पर घोड़े की एक पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई, जो आज भी उसकी याद में खड़ी है.

घोड़े की कब्र
यह मकबरा पुराने हैदराबाद में मंगलहाट से अघापुरा रोड पर कौसर बख्त तकिया के निकट स्थित है समय के साथ यह स्थान घोड़े की खबर या घोड़े की कब्र के नाम से मशहूर हो गया. यह हैदराबाद के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का एक विचित्र लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है.

पर्यटक आकर्षण
हालांकि यह चारमीनार या गोलकोंडा जैसा भव्य स्मारक नहीं है लेकिन यह अपनी अनूठी कहानी के कारण जिज्ञासु पर्यटकों और इतिहास के प्रेमियों को आकर्षित करता है. यह उस दौर की याद दिलाता है जब वफादारी और भावनात्मक लगाव को सर्वोच्च सम्मान दिया जाता था.

Rupesh Kumar Jaiswal

रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन…और पढ़ें

रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन… और पढ़ें

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हैदराबाद में मालिक संग दफन हुआ वफादार घोड़ा, वफादारी की मिसाल


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