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Jaisalmer Tourist Places: जैसलमेर को स्वर्ण नगरी कहा जाता है और सर्दियों में घूमने के लिए यह एक शानदार जगह है. यहां का जैसलमेर किला, सम सैंड ड्यून्स और पटवों की हवेली पर्यटकों को बेहद आकर्षित करते हैं. मरुस्थलीय संस्कृति, ऊंट सफारी और राजस्थानी लोक संगीत इस यात्रा को यादगार बना देते हैं.
चारों ओर फैले सुनहरे रेगिस्तान के बीच बसा जैसलमेर अपनी पीली बलुआ पत्थर की इमारतों और समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है. दूर से देखने पर यह शहर सुनहरे रेत के सागर में एक चमकदार मोती की तरह लगता है. बड़ी-बड़ी मूंछों और रंग-बिरंगी पगड़ियों वाले पुरुष और सितारे और शीशे लगे लहंगे पहनने वाली महिलाएं इस शहर की शान बढ़ाती हैं. पीले बलुआ पत्थर से बनी जाली और झरोखों वाली वास्तुकला, चमड़े की जूतियों की दुकानें, ब्लॉक प्रिंट वाले स्कार्फ और छोटी-छोटी कलाकृतियों से सजे बाजार अलग ही रंग बिखरते है.
थार के सुनहरे रेगिस्तान में बसा जैसलमेर का किला एक सुनहरे महल की तरह चमकता है. राजस्थानी वास्तुकला का यह अद्भुत नमूना भारत का सबसे बड़ा जीवित किला है जहां लगभग 5000 लोग आज भी निवास करते हैं. यूनेस्को की विश्व धरोहर में शुमार यह किला पीले बलुआ पत्थर से बना है और इसके चारों ओर कई भव्य द्वार हैं.
शहर के शोर-शराबे से दूर जैसलमेर की गड़ीसर झील शांति और प्रकृति के प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग जैसा है. 14वीं शताब्दी में निर्मित यह झील कभी पूरे शहर के लिए पानी का प्रमुख स्रोत हुआ करती थी. अब यहां बोटिंग का आनंद ले सकते हैं और झील के किनारे बने मंदिरों की शांत वातावरण का आनंद ले सकते हैं. जैसलमेर किले का मनमोहक दृश्य भी यहां से देखा जा सकता है.
खाबा किला जैसलमेर का एक अनोखा और रहस्यमयी स्मारक है जो कुलधरा गांव के पास मौजूद है. बताया जाता है कि इस किले और गांव में पालीवाल ब्राह्मण रहा करते थे लेकिन एक रहस्यमयी घटना के कारण वे एक रात अचानक गायब हो गए. ऐसे में आज यह किला एक फेमस टूरिस्ट स्पॉट बन चुका है जहां आप न सिर्फ किले के खंडहरों का दीदार कर सकते हैं बल्कि गांव के मनोरम दृश्य का भी आनंद ले सकते हैं.
पटवा हवेली जैसलमेर किले के बाद जैसलमेर में दूसरा सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र है. इसे ब्रोंकेड व्यापारियों की हवेली के रूप में भी जाना जाता है. पटवा हवेली का निर्माण 5 दशकों में पूरा हुआ था. इसे पांच भाइयों ने अपने-अपने हिस्से का निर्माण करवाया था. इस हवेली में प्रवेश के लिए भारतीय नागरिकों के लिए 20 रुपये प्रति व्यक्ति और विदेशी मेहमानों के लिए 100 रुपये प्रति व्यक्ति शुल्क रखा गया है.
सम सैंड ड्यून्स का जादुई नजारा सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान और भी खूबसूरत हो जाता है. यहां आप रेगिस्तान के रेत के टीलों पर जीप सफारी कर सकते हैं, ऊंट की सवारी का मजा ले सकते हैं और रात को शांत रेगिस्तान में डेरा डाल सकते हैं. शाम को आप लोक नृत्यों और संगीत की धुन पर झूम सकते हैं.
कभी जैसलमेर के दीवान रहे सालिम सिंह द्वारा बनवाई गई यह हवेली अपनी अनोखी छत और मोर के गले जैसी झुकी हुई छज्जों के लिए मशहूर है. स्थानीय लोग इसे “मोर छतरी हवेली” भी कहते है. यह बस स्टैंड से महज 5 किलोमीटर दूर है. सालिम सिंह की हवेली सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक पर्यटकों के लिए खुली रहती है. भारतीय पर्यटक के लिए प्रवेश शुल्क 20 रुपये है जबकि विदेशी मेहमानों के लिए 100 रुपये है.
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