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असुर कुल में जन्म लेने के बाद भी इन राक्षसों ने क्यों की भगवान की पूजा?, बड़ी रोचक हैं इनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं

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Why These Demons Worship Lord : पौराणिक कथाओं में असुरों और देवताओं के बीच शत्रुता का जिक्र किया जाता है. आमतौर पर असुरों को भगवान शिव का भक्त माना जाता है, जबकि भगवान विष्णु को देवताओं का संरक्षक कहा गया है. लेकिन कुछ असुर ऐसे भी थे जिन्होंने भगवान विष्णु की पूजा की और उनकी भक्ति में लीन हो गए. इन असुरों ने विष्णु भक्ति को क्यों अपनाया, यह जानना दिलचस्प है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.

1. असुर घोरा ने क्यों की थी भगवान विष्णु की पूजा?
घोरा नामक एक राक्षस असुर कुल में जन्मा था, लेकिन उसकी निष्ठा भगवान विष्णु के प्रति थी. उसका उद्देश्य पृथ्वी पर शासन करना था, लेकिन जब उसने देखा कि पृथ्वी तो शेषनाग के फनों पर टिकी हुई है और शेषनाग स्वयं भगवान विष्णु के अधीन हैं, तो उसने सोचा कि अगर उसे पृथ्वी पर राज करना है तो विष्णु को प्रसन्न करना होगा.

घोरा ने हजारों वर्षों तक घोर तपस्या की और आखिरकार भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया. जब भगवान विष्णु प्रकट हुए, तो घोरा ने उनसे पृथ्वी का राजा बनने का वरदान मांगा. विष्णु ने उसे यह वरदान तो दिया, लेकिन घोरा अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगा और अत्याचार करने लगा. तब मां विंध्यवासिनी ने उसका वध कर पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराया.

2. राजा बलि-असुर होते हुए भी भगवान विष्णु के भक्त
असुर राज बलि महाबली दैत्य थे, लेकिन वे भगवान विष्णु के परम भक्त भी थे. जब भी वे कोई यज्ञ या अनुष्ठान करते, तो सबसे पहले भगवान विष्णु को समर्पित करते.

एक बार, राजा बलि ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया. इससे घबराए देवताओं ने अपनी माता अदिति से मदद मांगी. अदिति ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की, जिससे वे वामन अवतार में प्रकट हुए.

भगवान वामन एक ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि के पास गए और उनसे तीन पग भूमि दान में मांगी. बलि ने सहर्ष स्वीकृति दे दी. तब भगवान वामन ने अपना विराट स्वरूप धारण कर लिया और एक पग में धरती, दूसरे पग में आकाश को नाप लिया. जब तीसरा पग रखने के लिए स्थान नहीं बचा, तो बलि ने स्वयं अपना सिर आगे बढ़ा दिया.

बलि के इस समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया और उनकी रक्षा का वचन भी दिया.

3. शंखचूड़-भगवान विष्णु के भक्त लेकिन शिव के हाथों मारे गए
शंखचूड़ नाम का दैत्य दैत्यराज दंभ का पुत्र था. दंभ ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या कर अजेय पुत्र का वरदान पाया था. इसके बाद शंखचूड़ का जन्म हुआ, जो अत्यंत बलशाली और पराक्रमी था.

शंखचूड़ की विशेष भक्ति भगवान श्रीकृष्ण के प्रति थी. उसने कठिन तपस्या कर श्रीकृष्ण से “कृष्ण कवच” प्राप्त किया, जो उसे अजेय बनाता था. लेकिन जब उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग देवताओं के विरुद्ध किया, तो देवताओं ने भगवान शिव से उसकी हत्या की प्रार्थना की.

भगवान शिव ने युद्ध में शंखचूड़ को हराया, लेकिन उसकी सुरक्षा के लिए श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया “कृष्ण कवच” बाधा बना हुआ था. तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ से उसका कवच दान में ले लिया. इसके बाद भगवान शिव ने उसका वध कर दिया. इसी कारण से शिव पूजा में शंख बजाना वर्जित माना जाता है.


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