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Mahakal Bhasm Aarti Niyam: बाबा महाकाल, जो स्वयं भगवान शिव के रौद्र स्वरूप माने जाते हैं, उनके दर्शन और पूजा का अत्यंत गूढ़ आध्यात्मिक और ज्योतिषीय महत्व है. वे कालों के भी काल हैं अर्थात् समय, मृत्यु और पुनर्जन्म के नियंता. इसलिए महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा को जन्म-मरण के भय से मुक्ति देने वाला कहा गया है. लेकिन क्या आपको पता है कि महाकाल बाबा के दर्शन करने से पहले इन देवता की आज्ञा लेनी पड़ती है. आइए जानते हैं महाकाल बाबा की भस्म आरती के इन नियमों के बारे में…
Mahakaleshwar Jyotirlinga Bhasma Aarti Niyam: अगहन मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि दिन शनिवार के लिए उज्जैन स्थित बाबा महाकाल का अद्भुत शृंगार किया गया. मंदिर में शनिवार को भस्म आरती के दौरान भक्तों का तांता देखने को मिला. पूरा मंदिर परिसर बाबा की झलक देखकर हर हर महादेव के जयकारे से गूंज उठा. अगहन मास कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर शनिवार के दिन रोज की तरह प्रात 4 बजे बाबा की भस्म आरती की गई. इस दौरान बाबा के दरबार में देर रात से ही भक्त लाइन लगाकर भस्म आरती के लिए जुटना शुरू हो गए. आपको जानकर हैरानी होगी कि बाबा महाकाल के कपाट खुलने से पहले आज्ञा लेनी पड़ती है और भस्म आरती शुरू होती है. आइए जानते हैं महाकाल बाबा की भस्म आरती के नियम के बारे में…
महाकाल बाबा की भस्म आरती बहुत खास – महाकाल की आराधना से कालदोष, ग्रहदोष और अकाल मृत्यु के योग शांत होते हैं. शनिदोष या राहु-केतु दोष वाले जातकों को महाकाल पूजन से अद्भुत शांति मिलती है. शास्त्रों में महाशिव की उपासना को सर्वग्रह पीड़ा नाशक कहा गया है. महाकाल के क्षेत्र में काल का प्रभाव समाप्त हो जाता है. इसका अर्थ है कि मनुष्य के कर्मों का बंधन धीरे-धीरे क्षीण होता है और आत्मा में स्थिरता आती है.
दिन में 6 बार होती है महाकाल की आरती – महाकाल की पूरे दिन में 6 बार आरती होती है, जिसमें सबसे खास भस्म आरती है. भस्म आरती को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में भक्त आते हैं. ब्रह्म मुहूर्त में होने वाली इस आरती में भगवान शिव को घटा टोप स्वरूर दिया जाता है. भस्म आरती के लिए एक सूती कपड़ा लिया जाता है और उसे बांधकर शिवलिंग पर बिखेरते हुए आरती की जाती है. महाकाल बाबा के दर्शन करने के बाद जूना महाकाल के दर्शन करना जरूरी होता है. आज शनिवार की महाकाल बाबा की भस्म आरती बहुत खास रही, क्योंकि बाबा महाकाल ने आरती के बाद किए शृंगार में मस्तक पर ॐ लगाकर भक्तों को दर्शन दिए. बाबा के माथे पर लगा ॐ शांति का प्रतीक है, जिससे पूरे विश्व में शांति का संदेश दिया गया.
बाबा की भस्म आरती के नियम – बाबा की भस्म आरती के कुछ नियम होते हैं. श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी के अनुसार, सबसे पहले सुबह 4 बजे भगवान वीरभद्र से आज्ञा लेकर मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, जिसके बाद गर्भगृह में मौजूद सभी देवी-देवताओं की नियमानुसार आरती होती है और बाबा की भस्म आरती भी होती है. बाबा की भस्म आरती के लिए महानिर्वाणी अखाड़े की तरफ से भस्म भेजी जाती है. भस्म आरती में बाबा का निराकार रूप दिखता है, जिसमें वो सिर्फ भस्म से स्नान करते हैं.
इस तरह की गई भस्म आरती – भस्म आरती करने से पहले शनिवार के दिन बाबा पर दूध, दही, घी, शक्कर पंचामृत और फलों के रस से अभिषेक किया गया और श्वेत वस्त्र ओढ़ाकर भस्म आरती की गई, जिसके बाद बाबा को शृंगार से सजाया जाता है. शृंगार स्वरूप उनके माथे पर ॐ लगाकर मुकुट धारण कराया गया. जब बाबा का शृंगार पूरा हो जाता है, तो भक्त उनके अद्भुत रूप के दर्शन करते हैं. बाबा के इस रूप को साकार स्वरूप माना जाता है. हर दिन बाबा भस्म आरती के बाद अनोखा शृंगार करते हैं. शुक्रवार को बाबा ने अपने शृंगार में मस्तक पर चांद धारण किया था और नवीन मुकुट पहनकर भक्तों को दर्शन दिए थे.
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