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True Worship in Daily Life। गृहस्थ जीवन की पूजा

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Household Devotion Ideas: हमारे समाज में पूजा का मतलब अक्सर घंटों बैठकर मंत्र जाप करना, घंटियां बजाना और बड़े-बड़े अनुष्ठान करना माना जाता है, लेकिन अगर गहराई से समझें तो पूजा केवल आसन पर बैठकर करने का नाम नहीं है. असली पूजा तो वही है जिसमें इंसान अपने रोज़मर्रा के कामों में भी भगवान का भाव देखे. गृहस्थ जीवन जीने वाले इंसान के लिए सबसे बड़ी पूजा यही है कि वह अपने परिवार का ख्याल रखे, उन्हें खुश रखे और उनके चेहरे पर मुस्कान बनाए, अगर पति भूखे ऑफिस चला जाए या बच्चा बिना नाश्ता किए स्कूल निकल जाए तो भले ही हम घंटों आरती करें, वह पूजा अधूरी रह जाएगी. असली भक्ति तो सेवा और प्यार में ही छिपी है.

गृहस्थ जीवन हर इंसान के लिए जिम्मेदारियों से भरा होता है. सुबह से लेकर रात तक एक गृहणी या गृहस्थ पुरुष का दिन परिवार को संभालने में ही गुजरता है. यही जिम्मेदारियां वास्तव में पूजा का सबसे अहम हिस्सा हैं. जब कोई पत्नी सुबह-सुबह उठकर अपने पति के लिए टिफिन तैयार करती है, बच्चों को समय पर नाश्ता कराती है और रसोई में पूरे मन से भोजन पकाती है, तो यह भी एक तरह की पूजा ही है. फर्क बस इतना है कि इसमें भगवान की तस्वीर सामने नहीं होती, बल्कि भगवान भाव के रूप में दिल में बसे होते हैं.

सच्ची पूजा वही है जिसमें परिवार का संतुलन और सुख सबसे ऊपर हो. भगवान भी यही चाहते हैं कि उनके भक्त अपने परिवार का ध्यान रखें, उन्हें भूखा या असंतुष्ट न जाने दें, अगर परिवार के सदस्य संतुष्ट और प्रसन्न हैं, तो यही भगवान की सबसे बड़ी सेवा है.

एक गृहणी जब रसोई में भोजन बना रही होती है और वह मन ही मन भगवान का स्मरण कर रही होती है, तो समझ लीजिए कि यह भी पूजा ही है. जब वह अपने बच्चे को प्यार से भोजन कराती है, उसमें भी भगवान का भाव छिपा होता है. पति के लिए टिफिन लगाते समय, उसे यह भावना रखनी चाहिए कि जैसे वह भगवान को भोग लगा रही है. यही भक्ति की असली पहचान है.

सोचिए, अगर आप दिन में एक घंटे पूजा करें लेकिन बाकी समय चिड़चिड़े और गुस्से में रहें, तो उस पूजा का कोई फायदा नहीं. जबकि अगर आप अपने काम, अपने रिश्तों और अपने परिवार में प्यार और समर्पण बनाए रखते हैं, तो वही पूजा सबसे सुंदर बन जाती है.

गृहस्थ जीवन में पूजा का असली रूप परिवार के सुख-दुख में साथ खड़ा रहना है. बच्चे को समय पर पढ़ाई में मदद करना, पति या पत्नी को सहारा देना, घर के बुजुर्गों की सेवा करना – यह सब भगवान की सेवा ही है. क्योंकि भगवान वहां प्रकट होते हैं जहां प्यार, सेवा और संतुलन मौजूद होता है. भक्ति का मतलब सिर्फ भजन गाना या मंदिर जाना नहीं है, बल्कि अपने कर्मों में भगवान को महसूस करना है. जब हम घर के कामों को सेवा भाव से करते हैं, तो वही काम पूजा का रूप ले लेते हैं. यही वजह है कि कहा जाता है – कर्म ही पूजा है.


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https://hindi.news18.com/astro/astro-tips-true-worship-in-daily-life-how-to-do-puja-in-household-life-jane-premanand-maharaj-ne-kya-kaha-ws-ekl-9660606.html

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