गृहस्थ जीवन हर इंसान के लिए जिम्मेदारियों से भरा होता है. सुबह से लेकर रात तक एक गृहणी या गृहस्थ पुरुष का दिन परिवार को संभालने में ही गुजरता है. यही जिम्मेदारियां वास्तव में पूजा का सबसे अहम हिस्सा हैं. जब कोई पत्नी सुबह-सुबह उठकर अपने पति के लिए टिफिन तैयार करती है, बच्चों को समय पर नाश्ता कराती है और रसोई में पूरे मन से भोजन पकाती है, तो यह भी एक तरह की पूजा ही है. फर्क बस इतना है कि इसमें भगवान की तस्वीर सामने नहीं होती, बल्कि भगवान भाव के रूप में दिल में बसे होते हैं.
एक गृहणी जब रसोई में भोजन बना रही होती है और वह मन ही मन भगवान का स्मरण कर रही होती है, तो समझ लीजिए कि यह भी पूजा ही है. जब वह अपने बच्चे को प्यार से भोजन कराती है, उसमें भी भगवान का भाव छिपा होता है. पति के लिए टिफिन लगाते समय, उसे यह भावना रखनी चाहिए कि जैसे वह भगवान को भोग लगा रही है. यही भक्ति की असली पहचान है.
गृहस्थ जीवन में पूजा का असली रूप परिवार के सुख-दुख में साथ खड़ा रहना है. बच्चे को समय पर पढ़ाई में मदद करना, पति या पत्नी को सहारा देना, घर के बुजुर्गों की सेवा करना – यह सब भगवान की सेवा ही है. क्योंकि भगवान वहां प्रकट होते हैं जहां प्यार, सेवा और संतुलन मौजूद होता है. भक्ति का मतलब सिर्फ भजन गाना या मंदिर जाना नहीं है, बल्कि अपने कर्मों में भगवान को महसूस करना है. जब हम घर के कामों को सेवा भाव से करते हैं, तो वही काम पूजा का रूप ले लेते हैं. यही वजह है कि कहा जाता है – कर्म ही पूजा है.
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