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इस बार नवरात्र 9 की बजाए 10 दिनों की क्यों, इसके पीछे धार्मिक वजह या खगोलीय कारण

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इस वर्ष यानि वर्ष 2025 की शारदीय नवरात्र 9 की बजाय 10 दिनों की है. इसकी वजह खगोलीय यानी पंचांग (लूनर कैलेंडर) में तिथियों की व्यवस्था है, न कि सिर्फ धार्मिक परंपरा. लिहाजा इस नवरात्र को 22 सितंबर से 1 अक्टूबर मनाया जाएगा.

इसकी वजह इस साल एक विशेष संयोग का बनना, जिसमें चतुर्थी तिथि दो दिन रहेगी यानि 25 और 26 सितंबर दोनों दिन चतुर्थी मानी जाएगी. इसी कारण दसवां दिन भी नवरात्रि में शामिल हो गया. नवमी 1 अक्टूबर होगी और विजयादशमी 2 अक्टूबर को होगी.

ऐसे संयोग बहुत कम बनते हैं. यह पूरी तरह से चंद्रमा की कलाओं और पंचांग की गिनती पर निर्भर करता है, जिससे तिथियां दो दिन तक खिंच जाती हैं, इसलिए कुल दिनों की संख्या बढ़ जाती है.

खगोलीय स्थितियों के कारण ऐसा

धार्मिक दृष्टि से तिथियों में वृद्धि को शुभ माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार देवी की पूजा इतने दिनों तक करना अधिक फलदायी होता है. परंतु दस दिन होने का फैसला मुख्य तौर पर खगोलीय और पंचांग आधारित है; धार्मिक रूप से इसे हर्ष और आध्यात्मिक लाभ से जोड़ते हैं. वैसे खगोलीय आधार पर इसे दुर्लभ संयोग माना जा रहा है जबकि एक ही दिन में दो तिथियां आ रही हैं. इसे दुर्लभ संयोग कहा जा रहा है.

अगर इसको खगोल शास्त्र और विज्ञान के आधार पर समझना हो तो ये मान सकते हैं कि ये बदलाव प्राकृतिक घटनाओं, पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर परिक्रमा और उससे जुड़ी ऋतु संधियों पर आधारित हैं.

पृथ्वी की परिक्रमा में क्यों आती है नवरात्र

एक वर्ष में सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की यात्रा के दौरान मार्च और सितंबर में ऋतु-संधियां आती हैं, जब दिन और रात लगभग बराबर होते हैं. इन संधियों के आसपास ही मुख्य नवरात्रि (चैत्र और शारदीय) पड़ती हैं. वैसे तो इस तरह से साल में चार नवरात्र आते हैं लेकिन चैत्र और शारदीय को मुख्य मानते हुए इसे शुभ मानते हैं और इस दौरान पूजा और धार्मिकता का माहौल रहता है.

क्यों बढ़ जाता नवरात्र का दिन

पंचांग में तिथियों की गणना चंद्रमा के घूमने पर आधारित होती है, लिहाजा कई बार चंद्र तिथि दो दिन तक खिंच सकती है या कोई तिथि क्रम में दो बार आ सकती है, जिससे नवरात्र का कुल दिन बढ़ जाता है. हालांकि कभी कभी ये एक दिन घट भी जाता है.

ये पूरी तरह खगोलीय गणना है. धर्माचार्य और वैज्ञानिक भी मानते हैं कि ये विस्तारण पंचांग के खगोलीय समायोजन की वजह से होते हैं, न कि केवल किसी धार्मिक रूप से.

नवरात्रि के समय शरीर और मौसम में बदलाव आ रहे होते हैं, संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है और स्वास्थ्य की दृष्टि से व्रत-उपवास, ऋतु परिवर्तन में शरीर को डिटॉक्स और सेहतमंद बनाने का काम करते हैं.

नवरात्रि की अवधि बढ़ जाने पर उपवास, साधना और जीवनशैली में बदलाव करना और भी लाभदायक माना जाता है, विज्ञान के अनुसार यह पूरे परिवार को संक्रमण एवं मौसमी बीमारियों से लड़ने का अवसर देता है.

नवरात्र का संबंध रामायण से कैसे

नवरात्र का इतिहास प्राचीन ग्रंथों, देवी पुराण और रामायण से जुड़ा है. इसकी परंपराएं भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग तरह से मनाई जाती हैं. इसमें देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का प्रावधान होता है.

रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने रावण-वध से पूर्व अश्विन शुक्ल पक्ष की नवरात्र में देवी दुर्गा की आराधना की थी. उनकी भक्ति से माता प्रसन्न हुईं और विजय का आशीर्वाद दिया.

नवरात्र तो साल में चार बार लेकिन मनाते दो ही

साल में नवरात्र कुल चार बार होती है, लेकिन केवल दो बार ही महत्त्वपूर्ण रूप में मनाई जाती है – चैत्र यानि वसंत ऋतु में और शारदीय नवरात्र यानि शरद ऋतु में आने वाली नवरात्र. बाकी दो नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है, जो तुलनात्मक रूप से कम प्रसिद्ध है.

गुप्त नवरात्र क्या होते हैं

सालभर में दो गुप्त नवरात्र आते हैं – आषाढ़ नवरात्र और माघ नवरात्र. आषाण गुप्त नवरात्रि साधना और ध्यान के लिए होता है. वहीं माघ गुप्त नवरात्रि में साधना की जाती है.

आमतौर गुप्त नवरात्र को तंत्र मंत्र साधना के उपयुक्त माना जाता है. इस समय भक्त उपवास, योग साधना, ध्यान और मंत्र जाप के द्वारा अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों को बढ़ाने का प्रयास करते हैं. यह साधना गुप्त रूप से यानी गोपनीय तरीके से की जाती है, इसलिए इसे गुप्त नवरात्र कहा जाता है.

इसमें 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है, जिनमें मां काली, तारा देवी, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी शामिल हैं. इनकी साधना से साधक को दुर्लभ और विशेष शक्तियां प्राप्त होने की मान्यता है.

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